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Psalms 36

:
Hindi - CLBSI
1 दुर्जन के हृदय में अपराध बोलता है। उसकी आंखों में परमेश्‍वर का भय है ही नहीं।
2 वह स्‍वयं अपनी प्रशंसा करता है, कि उसका तिरस्‍कार करने के लिए उसका अधर्म प्रकट नहीं किया जा सकता है।
3 उसके मुख के शब्‍द अनिष्‍ट और कपट हैं; वह बुद्धि को छोड़ चुका है; वह भलाई नहीं करता।
4 वह अपनी शैया पर लेटे-लेटे बुराई की योजनाएं बनाता है; वह अपने को उस मार्ग पर ले जाता है, जो भला नहीं है। वह बुराई को धिक्‍कारता नहीं।
5 हे प्रभु, तेरी करुणा स्‍वर्ग तक महान है, और तेरी सच्‍चाई मेघों को छूती है।
6 तेरी धार्मिकता उच्‍च पर्वतों के समान महान है; तेरे न्‍याय-सिद्धान्‍त अथाह सागर के सदृश गहरे है; प्रभु, तू मनुष्‍य और पशु दोनों की रक्षा करता है।
7 हे परमेश्‍वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है। मनुष्‍य तेरे पंखों की छाया में शरण लेते हैं।
8 वे तेरे घर के विभिन्न व्‍यंजनों से तृप्‍त होते हैं। तू उन्‍हें अपनी सुख-सरिता से जल पिलाता है।
9 तेरे साथ ही जीवन का स्रोत्त है; तेरी ज्‍योति में हम ज्‍योति देखते हैं।
10 जो भक्‍त तुझे जानते हैं उन पर तू अपनी करुणा करता रह, और सत्‍यनिष्‍ठों पर अपनी धार्मिकता बनाए रख।
11 अहंकारी का पैर मुझे कुचल सके; और दुर्जन का हाथ मुझे दूर धकेल सके।
12 वहाँ कुकर्मी धूल-धूसरित पड़े हैं; उन पर ऐसा प्रहार हुआ है कि वे उठ नहीं सकते।