Psalms 36
1 दुर्जन के हृदय में अपराध बोलता है। उसकी आंखों में परमेश्वर का भय है ही नहीं।
2 वह स्वयं अपनी प्रशंसा करता है, कि उसका तिरस्कार करने के लिए उसका अधर्म प्रकट नहीं किया जा सकता है।
3 उसके मुख के शब्द अनिष्ट और कपट हैं; वह बुद्धि को छोड़ चुका है; वह भलाई नहीं करता।
4 वह अपनी शैया पर लेटे-लेटे बुराई की योजनाएं बनाता है; वह अपने को उस मार्ग पर ले जाता है, जो भला नहीं है। वह बुराई को धिक्कारता नहीं।
5 हे प्रभु, तेरी करुणा स्वर्ग तक महान है, और तेरी सच्चाई मेघों को छूती है।
6 तेरी धार्मिकता उच्च पर्वतों के समान महान है; तेरे न्याय-सिद्धान्त अथाह सागर के सदृश गहरे है; प्रभु, तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है।
7 हे परमेश्वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है। मनुष्य तेरे पंखों की छाया में शरण लेते हैं।
8 वे तेरे घर के विभिन्न व्यंजनों से तृप्त होते हैं। तू उन्हें अपनी सुख-सरिता से जल पिलाता है।
9 तेरे साथ ही जीवन का स्रोत्त है; तेरी ज्योति में हम ज्योति देखते हैं।
10 जो भक्त तुझे जानते हैं उन पर तू अपनी करुणा करता रह, और सत्यनिष्ठों पर अपनी धार्मिकता बनाए रख।
11 न अहंकारी का पैर मुझे कुचल सके; और न दुर्जन का हाथ मुझे दूर धकेल सके।
12 वहाँ कुकर्मी धूल-धूसरित पड़े हैं; उन पर ऐसा प्रहार हुआ है कि वे उठ नहीं सकते।