Psalms 17
1 हे प्रभु, सत्य पक्ष को सुन; मेरी पुकार पर ध्यान दे। मेरी प्रार्थना पर कान दे, क्योंकि यह मेरी निष्कपट जीभ से निकली है।
2 तेरी उपस्थिति में मेरा न्याय हो, तेरी आंखें सच्चाई को देखें।
3 यदि तू मेरे हृदय को जांचता, यदि तू रात में मेरा निरीक्षण करता; यदि तू मुझे परखता, तो मुझमें तुझे कोई दुर्भाव नहीं मिलता। मेरी वाणी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती।
4 जहाँ तक मेरे मानवीय कार्यों का संबंध है, तेरे ओंठों के ही शब्द द्वारा मैंने हिंसको के मार्ग से स्वयं को बचाया है।
5 मेरे पग तेरे मार्गों पर दृढ़ रहे; मेरे पैर नहीं फिसले।
6 मैं तुझे ही पुकारता हूँ; क्योंकि हे परमेश्वर, तू मुझे उत्तर देगा; अपना कान मेरी ओर कर, मेरे शब्दों को सुन।
7 अद्भुत रीति से अपनी करुणा प्रकट कर, ओ शरणागतों के उद्धारकर्ता! तू अपने भुजबल द्वारा विरोधियों से उनकी रक्षा करता है।
8 आंख की पुतली जैसे मुझे संभाल, अपने पंखों की छाया में मुझे छिपा;
9 उन दुर्जनों से, जो मुझे लूटते हैं, मेरे प्राणघातक शत्रुओं से, जो मुझे घेरते हैं।
10 उन्होंने अपना हृदय पत्थर बना लिया है, वे अपने मुंह से धृष्ट वचन निकालते हैं।
11 उन्होंने पग-पग पर मेरा पीछा किया, और अब मुझ घेर लिया है। उन्होंने अपनी आंखें मुझ पर गड़ाई हैं कि वे मुझे धरती पर पटक दें।
12 वे उस सिंह के सदृश हैं, जो फाड़ने को तैयार है, वे उन युवा सिंह जैसे हैं, जो गुप्त स्थान में घात लगाए है।
13 प्रभु, उठ! उनका सामना कर; उन्हें पराजित कर। हे प्रभु, अपनी तलवार द्वारा दुर्जन से मुझे छुड़ा,
14 अपने हाथों द्वारा दुर्जनों से, पृथ्वी के उन पुरुषों से, जिनका भाग इसी जीवन में है, मेरे प्राण को मुक्त कर। उनके पेट तेरे दण्ड-भण्डार से भरे जाएं; उनके पुत्रों को यथेष्ट से अधिक दण्ड मिले; वे अपने बच्चों के लिए भी पर्याप्त दण्ड छोड़ जाएं।
15 परन्तु मैं अपनी धार्मिकता के कारण तेरे मुख का दर्शन करूंगा; जब मैं जागूंगा तब मेरे स्वरूप को देखकर सन्तुष्ट होऊंगा।