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Job 7

:
Hindi - CLBSI
1 ‘मनुष्‍य के जीवन की नियति क्‍या है? पृथ्‍वी पर कठोर श्रम! उसका जीवन मजदूर का जीवन है!
2 उसका जीवन गुलाम की तरह है, जो दिन-भर के कठोर परिश्रम के बाद संध्‍या समय बेचैनी से छाया की प्रतीक्षा करता है। मनुष्‍य का जीवन उस मजदूर के समान है, जो दिन-भर परिश्रम करता है, और संध्‍या समय अपनी मजदूरी की आशा करता है।
3 मुझे जीवन में क्‍या दिया गया? केवल निस्‍सार महीने! मेरे भाग में दु:खपूर्ण लम्‍बी रातें आयी हैं।
4 जब मैं सोता हूं तब कहता हूं, “मैं कब उठूंगा?” पर रात लम्‍बी होती है, और कटती नहीं। मैं प्रात: होने तक शैया पर करवटें बदलता रहता हूं।
5 मेरा शरीर कीड़ों का घर है, मेरी देह पर मिट्टी की परत चढ़ी है। मेरी चमड़ी कड़ी पड़ गई है, और वह फिर गलने लगी है।
6 मेरे जीवन का हर दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक तेजी से गुजरता है; वह बिना किसी आशा के यों ही बीत जाता है।
7 ‘हे परमेश्‍वर, स्‍मरण कर कि मेरा जीवन हवा का एक झोंका है। मेरी आँखें अब अच्‍छे दिन नहीं देखेंगी।
8 मुझे देखनेवाला फिर कभी मुझे नहीं देख सकेगा; प्रभु, तेरी आँखें मुझ पर हैं, पर मैं तेरे देखते-देखते खत्‍म हो जाऊंगा।
9 जैसे बादल छटकर लुप्‍त हो जाता है वैसे ही अधोलोक में जानेवाला मृतक मिट जाता है, वह पृथ्‍वी पर वापस नहीं आता।
10 वह अपने घर को नहीं लौटता, और उसका निवास-स्‍थान उसको पहचानता है।
11 ‘अत: मैं अपना मुंह बन्‍द नहीं रखूंगा; मैं अपनी आत्‍मा की वेदना के कारण बोलूंगा; मैं अपने प्राण की कटुता के कारण, हे परमेश्‍वर, तुझसे शिकायत करूंगा! क्‍या मैं समुद्री राक्षस हूं कि तू मुझे पहरे में रखता है, जिससे मैं बन्‍धन-मुक्‍त होऊं?
12 क्‍या मैं सागर हूं, कि तूने मुझ पर पहरा बिठा दिया है ताकि मैं अपनी मर्यादा लांघूं?
13 जब मैं सोचता हूं कि मुझे खाट पर आराम मिलेगा— शय्‍या पर लेटने से मेरा दु:ख हल्‍का होगा,
14 तब तू मुझे डरावने सपनों द्वारा डराता है, बुरे-बुरे स्‍वप्‍नों से मुझे आतंकित करता है।
15 मैं इतना भयभीत हो जाता हूं, कि मैं अपना ही गला घोंटना चाहता हूं। मुझे ऐसे जीवन से अधिक मृत्‍यु की कामना होने लगती है।
16 मुझे अपने जीवन से घृणा है; मैं चिरकाल तक जीवित रहना नहीं चाहता। मुझे अकेला छोड़ दे; क्‍योंकि मेरा जीवन हवा का झोंका है।
17 मानव क्‍या है कि तू उसको इतना महत्‍व दे? मनुष्‍य क्‍या है कि तू अपना हृदय उस पर लगाए?
18 तू हर सुबह उसकी सुधि लेता है; प्रत्‍येक पल तू उसको परखता है।
19 तू कब तक मुझ पर से अपनी दृष्‍टि नहीं हटाएगा? तू एक पल के लिए मुझे अकेला नहीं छोड़ता कि मैं अपना थूक भी निगल सकूं?
20 ‘ओ मनुष्‍य पर पहरा देनेवाले, यदि मैं पाप करता हूं, तो इससे तेरा क्‍या बिगड़ता है? तूने अपने तीर का निशाना मुझे क्‍यों बनाया है? मैं तेरे लिए क्‍यों भार बन गया हूं?
21 क्‍या यह तेरा धर्म नहीं है कि तू मेरे अपराध को क्षमा करे, मेरे अधर्म को दूर करे? मैं शीघ्र ही कबर में सो जाऊंगा; तू मुझे ढूंढ़ेगा, पर मैं तुझे नहीं मिलूंगा!’