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Job 6

:
Hindi - CLBSI
1 अय्‍यूब ने एलीपज को उत्तर दिया। उसने कहा:
2 ‘काश! कोई व्यक्‍ति मेरे दु:खों की गहराई नापता; काश! मेरी विपत्तियाँ तराजू में तौली जातीं!
3 तब मेरे कष्‍ट समुद्रतट की रेत से भारी होते। एलीपज, इसी कारण मेरे मुंह से शब्‍द बिना सोच-विचार के निकल पड़े!
4 सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के जहर-बुझे तीरों ने मुझे बेधा है, मेरी आत्‍मा उनका विष-पान कर रही है, परमेश्‍वर का आतंक मेरे विरुद्ध आक्रमण के लिए पंिक्‍तबद्ध खड़ा है।
5 क्‍या जंगली गधा घास होते हुए रेंकता है? क्‍या बैल सानी खाते हुए रम्‍भाता है?
6 क्‍या स्‍वादहीन भोजन बिना नमक के खाया जा सकता है? क्‍या अण्‍डे की सफेदी में स्‍वाद होता है?
7 मेरा भूखा प्राण जिन खाद्य वस्‍तुओं को स्‍पर्श भी नहीं करना चाहता था, वे ही अब मेरा घृणित भोजन बन गई हैं।
8 काश! मुझे मुँह-मांगा वरदान मिलता! काश! परमेश्‍वर मेरी इच्‍छा को पूर्ण करता!
9 काश! वह प्रसन्न होकर मुझे रौंद देता, वह मुझ पर हाथ उठाता, और मुझे मार डालता!
10 तब मुझे शान्‍ति प्राप्‍त होती; मैं पीड़ा में भी आनन्‍दित होता; क्‍योंकि मैंने पवित्र परमेश्‍वर के वचनों को कभी अस्‍वीकार नहीं किया।
11 मुझ में बल ही क्‍या है कि मैं प्रभु के अनुग्रह की प्रतीक्षा करूं? जब मेरा अन्‍त निश्‍चित है तब मैं अपने प्राण को क्‍या धीरज दूं?
12 क्‍या मैं पत्‍थर-जैसा मजबूत हूं? क्‍या मेरा शरीर पीतल का बना है?
13 सच पूछो तो मैं असहाय हूं, मैं सर्वथा साधनहीन हूं।
14 ‘जो व्यक्‍ति अपने दु:खी मित्र पर करुणा नहीं करता, वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की भक्‍ति छोड़ देता है।
15 मेरे भाई-बन्‍धु छिछली नदी के समान विश्‍वासघाती हैं, वे बरसाती नदी के समान हैं जो ग्रीष्‍म ऋतु में सूख जाती है;
16 जो शीत ऋतु में बर्फ के कारण काली दिखाई देती है, और हिमपात के कारण छिपी रहती है।
17 पर ग्रीष्‍म ऋतु में उसका जल सूख जाता है, और वह अपने स्‍थान से लुप्‍त हो जाती है।
18 कारवां पानी की तलाश में उसकी धारा की लीक पर चलते हैं, पर वे उजाड़-खण्‍ड में पहुंचते हैं और वहाँ वे प्‍यास से मर जाते हैं।
19 तेमा के बनजारे पानी को खोजते हैं, शबा के काफिले नदी की प्रतीक्षा करते हैं।
20 पर वे निराश होते हैं, क्‍योंकि उनकी आशा झूठी निकलती है, वे नदी के समीप जाते हैं, और धोखा खाते हैं।
21 मेरे मित्रो, तुम भी मेरे लिए बरसाती नदियों के समान हो! तुम मेरी विपत्ति देखकर डर गए!
22 क्‍या मैंने तुमसे कहा था, “मुझे कुछ दो? अपनी सम्‍पत्ति में से कुछ हिस्‍सा मुझे उपहार में दो?”
23 क्‍या मैंने तुमसे निवेदन किया कि मुझे मेरे बैरी के हाथ से मुक्‍त करो? मुझे अत्‍याचारियों से छुड़ाओ?
24 ‘मित्रो, मुझे बताओ कि मेरी भूल क्‍या है। तब मैं चुप रहूंगा; मुझे समझाओ कि मैंने किस बात में गलती की है।
25 सीधे-सादे शब्‍दों में कितनी शक्‍ति होती है! किन्‍तु तुम्‍हारी डांट-फटकार से क्‍या लाभ?
26 तुम शब्‍दों की बाजीगरी दिखाते हो, तुम सोचते हो कि केवल तुम्‍हारे शब्‍द ही सच हैं, और उसके शब्‍द मात्र हवा हैं, जो निराशा में डूबा है।
27 तुम पितृहीन बच्‍चे पर, चिट्ठी डाल कर, उसको गुलाम बना सकते हो; तुम अपने मित्र तक का सौंदा कर सकते हो!
28 ‘कृपया, अब मेरी ओर देखो; मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा।
29 सच्‍चाई की ओर लौटो, और विचार करो, जिससे मेरे साथ अन्‍याय हो। कृपया पुन: सच्‍चाई से सोचो, मैंने अपने पक्ष में जो कहा है, वह सच है।
30 क्‍या मेरी जीभ छल-कपट की बातें करती है? क्‍या मेरा विवेक भले और बुरे की पहचान नहीं कर सकता?