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Job 5

:
Hindi - CLBSI
1 ‘अय्‍यूब, किसी को भी पुकारो; —तुम्‍हें कोई भी व्यक्‍ति उत्तर नहीं देगा! परमेश्‍वर के पवित्र जनों में से तुम किसके पास जाओगे?
2 निस्‍सन्‍देह क्रोध मूर्ख मनुष्‍य को मार डालता है; और मूढ़ आदमी ईष्‍र्या के कारण मर जाता है।
3 मैंने मूर्ख मनुष्‍य को जड़ पकड़ते हुए देखा; किन्‍तु उसके घर पर अचानक अभिशाप पड़ा।
4 उसके पुत्र सुरक्षित नहीं रहते; वे अदालत में रौंदे जाते हैं; और उनको बचानेवाला कोई नहीं होता।
5 भुखमरे लोग उसकी फसल चट कर जाते हैं, वे कंटीली बाड़ को भी तोड़कर फसल चुरा लेते हैं, उसकी सम्‍पत्ति का भूखा-प्‍यासा उसके लिए जाल बिछाता है।
6 विपत्ति का जन्‍म मिट्टी से नहीं होता, और दु:ख-कष्‍ट भूमि से उत्‍पन्न होता है।
7 जैसे चिनगारियाँ सदा ऊपर ही उड़ती हैं, वैसे ही मनुष्‍य दु:ख भोगने के लिए जन्‍म लेता है।
8 ‘यदि मुझ पर विपत्तियाँ आएं तो मैं उनके निवारण के लिए परमेश्‍वर को खोजूंगा, मैं न्‍याय के लिए परमेश्‍वर की दुहाई दूंगा;
9 क्‍योंकि परमेश्‍वर ही बड़े-बड़े आश्‍चर्यपूर्ण कर्म, अगणित भेदपूर्ण कार्य करता है।
10 वह पृथ्‍वी पर जल बरसाता है, वह खेतों को सींचता है।
11 वह गिरे हुओं को उठाकर उच्‍च स्‍थान पर प्रतिष्‍ठित करता है; वह शोक करनेवालों को निरापद स्‍थान पर पहुँचाता है।
12 वह धूर्तों की योजनाओं पर पानी फेर देता है, और उन्‍हें सफलता हाथ नहीं लगती।
13 वह चालाक को उसकी चालाकी के जाल में फंसाता है, कुटिल लोगों की योजानाएँ शीघ्र असफल हो जाती हैं।
14 वे दिन में अंधकार महसूस करते हैं, दोपहर में वे रात की तरह टटोलते हैं।
15 पर परमेश्‍वर उनके चंगुल से अनाथों की रक्षा करता है, वह निर्बलों को बलवानों के हाथ से बचाता है।
16 अत: गरीबों को आशा का सहारा है; अन्‍यायी को मुंह बन्‍द करना पड़ता है।
17 ‘धन्‍य है वह मनुष्‍य जिसको परमेश्‍वर ताड़ित करता है। अत: अय्‍यूब, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की ताड़ना को तुम स्‍वीकार करो।
18 यद्यपि वह घायल करता है, तथापि वह घावों पर पट्टी भी बांधता है। वह प्रहार करता है, पर उसके हाथ रोगी को स्‍वस्‍थ करते हैं।
19 वह तुम्‍हें छ: विपत्तियों से बचाएगा, और सातवीं विपत्ति में भी तुम्‍हारी कुछ हानि होगी।
20 अकाल में वह तुम्‍हें मृत्‍यु से बचाएगा, और युद्ध में तलवार के आघात से।
21 तुम शब्‍द-रूपी कोड़े की मार से बचे रहोगे, विनाश के आगमन पर तुम भयभीत नहीं होगे;
22 बल्‍कि तुम विनाश और अकाल पर हँसोगे; तुम्‍हें पृथ्‍वी के किसी भी जंगली पशु से डर नहीं लगेगा।
23 खेत में पड़े पत्‍थर तुमसे सन्‍धि करेंगे; और वनपशु भी तुमसे मैत्री करेंगे।
24 तब तुम्‍हें अनुभव होगा कि तुम्‍हारा शिविर सुरक्षित है, तुम अपनी पशुशाला का निरीक्षण करोगे और तुम्‍हारा एक भी पशु कम मिलेगा।
25 तुम्‍हें यह भी ज्ञात होगा कि तुम्‍हारा वंश बढ़ता जा रहा है; तुम्‍हारे वंशज पृथ्‍वी की घास के सदृश असंख्‍य होंगे।
26 तुम्‍हें पूर्ण आयु की सुखद मृत्‍यु प्राप्‍त होगी; जैसे अनाज पकने पर, अनाज का पूला खलियान में लाया जाता है, वैसे ही तुम आयु पकने पर दफनाए जाओगे।
27 देखो, हमने यह ज्ञान बहुत खोज के बाद प्राप्‍त किया है, और यही सच है। सुनो, और अपने हित के लिए इसे जानो।’