Job 4
1 तब तेमान नगर के रहनेवाले एलीपज ने कहा:
2 ‘अय्यूब, यदि कोई तुमसे इस सम्बन्ध में कुछ कहे तो क्या तुम्हें बुरा लगेगा? पर बिना बोले कोई कब तक चुप रह सकता है?
3 सुनो, तुमने बहुत लोगों को धर्म की बातें सिखाईं, और कमजोर हाथों को मजबूत बनाया।
4 तुम्हारे शब्दों ने गिरते हुए मनुष्य को सम्भाला, और कांपते हुए घुटनों को स्थिर किया।
5 पर अब, जब तुम पर विपत्ति आई तो तुमने धीरज छोड़ दिया! विपत्ति ने तुम्हें छुआ तो तुम घबरा गए!
6 क्या परमेश्वर की भक्ति तुम्हारा सहारा नहीं है? क्या तुम्हारा आदर्श-आचरण ही तुम्हारी आशा नहीं है?
7 ‘सोचो, क्या कोई निर्दोष व्यक्ति इस प्रकार कभी नष्ट हुआ है? क्या कभी निष्कपट व्यक्ति का सर्वनाश हुआ है?
8 मैंने तो यह देखा है: जो अधर्म का खेत जोतते हैं, और दुष्कर्म का बीज बोते हैं, वे वैसा ही फल पाते हैं।
9 वे परमेश्वर की फूँक से उड़ जाते हैं, वे उसकी क्रोधाग्नि से भस्म हो जाते हैं।
10 शेर की दहाड़, हिंसक सिंह की गरज, समाप्त हो जाती है; जवान सिंह के दाँत टूट जाते हैं।
11 शिकार न मिलने से बलवान सिंह तक मर जाता है, और सिंहनी के बच्चे तितर-बितर हो जाते हैं।
12 ‘मैंने गुप्त रूप से यह बात सुनी है; मेरे कानों में किसी ने फुसफुसाकर यह कहा।
13 रात के दु:स्वप्नों के दौरान जब मनुष्यों पर गहरी नींद का जाल बिछा था,
14 तब मुझ पर भय छा गया, मैं काँपने लगा, मेरी हड्डी-हड्डी हिल गई।
15 उसी समय एक आत्मा मेरे सम्मुख से गुजरी। मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए!
16 आत्मा खड़ी थी, पर मैं उसका चेहरा पहचान न सका, मेरी आँखों के सामने एक आकृति थी। चारों ओर निस्तब्धता थी; तब मैंने यह आवाज सुनी:
17 “क्या परमेश्वर के सामने नश्वर मनुष्य धार्मिक प्रमाणित हो सकता है? क्या बलवान मनुष्य अपने बनानेवाले के सामने पवित्र सिद्ध हो सकता है?
18 परमेश्वर अपने सेवकों पर भी भरोसा नहीं करता; वह अपने दूतों को भी दोषी ठहराता है।
19 तब आदमी की क्या बात, जो मिट्टी के मकान में रहता है, जिसकी नींव ही मिट्टी है, जो पतंगे के समान नष्ट हो जाता है!
20 आदमी सबेरे से शाम तक मरते रहते हैं, वे सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं, और कोई उन पर ध्यान भी नहीं देता!
21 यदि उनके जीवन-रूपी शिविर का खूँटा उखाड़ लिया जाए तो क्या वे बिना बुद्धि के धराशायी नहीं हो जाएँगे?”