Zechariah 8
1 स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला:
2 ‘स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है। मैं अपने सियोन पर्वत के लिए अत्यन्त व्याकुल हूं। उसके लिए मैं अत्यन्त ईष्र्यालु हो गया हूं।
3 प्रभु यों कहता है: मैं सियोन पर्वत को लौटूंगा। मैं यरूशलेम के मध्य निवास करूंगा और यरूशलेम “सत्य नगर” कहलाएगा। स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का पर्वत “पवित्र पर्वत” होगा।
4 स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: यरूशलेम की हर स्त्री और पुरुष को दीर्घायु प्राप्त होगी। वृद्ध स्त्री-पुरुष अपने हाथ में लाठी लिए पुन: सड़क के किनारे बैठेंगे।
5 नगर के गली-कूचे लड़कों और लड़कियों से भर जाएंगे। वे वहां खेलेंगे-कूदेंगे।
6 स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: उन दिनों यह संभवत: इस्राएल के शेष वंशजों की दृष्टि में अद्भुत प्रतीत होगा। पर मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु पूछता हूँ: क्या यह मेरी दृष्टि में अद्भुत है? नहीं।
7 स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: देखो, मैं पूर्व और पश्चिम के देशों से अपने निज लोगों को छुड़ाऊंगा।
8 मैं उन्हें वापस लाऊंगा और यरूशलेम के मध्य बसाऊंगा। वे मेरे निज लोग होंगे और मैं उनका सत्य और धार्मिक परमेश्वर होऊंगा।
9 ‘स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: नबियों के माध्यम से इन दिनों मेरा सन्देश सुननेवाले लोगो! तुम्हारे हाथ मजबूत हों, ताकि मेरा मन्दिर पुन: निर्मित हो सके। तुम यह सन्देश उस दिन से सुनते आ रहे हो, जिस दिन स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु के भवन की नींव रखी गई थी।
10 उन दिनों में अराजकता थी: न तो मजदूर को उसकी मजदूरी मिलती थी और न उसके पशु का किराया। घर से बाहर निकलने-वाले और घर लौटनेवाले को शत्रु का भय बना रहता था; क्योंकि मैंने सब लोगों को एक दूसरे के प्रति भड़का दिया था।
11 मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता हूं: अब मैं इस्राएल के वंशजों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करूंगा जैसा मैंने प्राचीन काल में किया था।
12 वे पूर्ण निश्चिन्तता के साथ खेती-किसानी करेंगे, और समृद्ध होंगे। अंगूर-उद्यानों में फल लगेंगे। भूमि पर प्रचुरता से फसल होगी और आकाश से ओस की वर्षा होगी। मैं इस्राएल के शेष वंशजों को ये वस्तुएं प्रदान करूंगा और वे इन्हें प्राप्त करेंगे।
13 ओ यहूदा के वंशजो, ओ इस्राएल के वंशजो! तुम्हारे नाम से राष्ट्र श्राप देते थे, पर अब मैं तुम्हे बचाऊंगा और तुम आशिष का माध्यम बनोगे। मत डरो, पर अपने हाथों को मजबूत बनाओ।
14 ‘स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: जैसे तुम्हारे पूर्वजों ने अपने दुष्कर्मों से मेरे क्रोध को उभाड़ा था और मैंने तुम्हारा अनिष्ट करने का निश्चय किया था, और अपने निश्चय को नहीं बदला,
15 वैसे ही अब मैंने यरूशलेम नगर और यहूदा के वंशजों के साथ भलाई करने का निश्चय किया है। स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का यह कथन है। मत डरो!
16 तुम्हें ये कार्य करने हैं: एक-दूसरे से सच बोलो। तुम न्यायालयों में सच्चाई से न्याय करो, और शान्ति की स्थापना करो।
17 तुम एक-दूसरे के प्रति अपने हृदय में बुराई की कल्पना भी न करो। झूठी शपथ से घृणा करो क्योंकि मैं इन बातों से घृणा करता हूं;’ प्रभु ने यही कहा है।
18 स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला:
19 ‘स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: चौथे, पांचवें, सातवें और दसवें महीने के उपवास-दिवस यहूदा के वंशजों के लिए आनन्द और हर्ष के दिन होंगे, उत्सव के पर्व होंगे। अत: सच्चाई और शान्ति से प्रेम करो।
20 ‘स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: अनेक राष्ट्रों और अनेक नगरों के निवासी आएंगे।
21 एक नगर का रहनेवाला दूसरे नगर के रहनेवाले से यह कहेगा, “आओ, हम इसी क्षण प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए उसके मन्दिर चलें। आओ, हम स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु को खोजें। मैं तो जा रहा हूँ।”
22 महान राष्ट्र और बड़ी-बड़ी कौमें स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु को खोजने के लिए यरूशलेम में जाएंगी। वे प्रभु की कृपा के लिए निवेदन करेंगे।
23 स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: उन दिनों में पृथ्वी की भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाली सब कौमों में से दस-दस व्यक्ति एक यहूदी व्यक्ति के वस्त्र का छोर पकड़कर यह कहेंगे, “हम भी आपके साथ चलेंगे, क्योंकि हमने सुना है कि परमेश्वर आपके साथ है।” ’