Psalms 41
1 धन्य है वह मनुष्य जो निर्बल की देखभाल करता है। प्रभु संकट के दिन उसको मुक्त करता है।
2 प्रभु उसकी रक्षा करता और उसको जीवित रखता है। उसे पृथ्वी पर ‘धन्य’ कह जाता है। प्रभु, तू उसे उसके शत्रु की इच्छा पर नहीं छोड़ेगा।
3 प्रभु, तू उसे रोग-शैया पर सहारा देता है; तू उसके समस्त रोगों को दूर करता है, और उसे स्वास्थ्य पुन: प्रदान करता है।
4 मैंने कहा, “प्रभु! मुझ पर अनुग्रह कर। मुझे स्वस्थ कर, क्योंकि मैंने तेरे विरुद्ध पाप किया है।”
5 मेरे शत्रु मेरे विषय में दुष्टता से यह कहते हैं: “वह कब मरेगा, और कब उसका नाम मिटेगा?”
6 जो मुझे देखने आता है, वह व्यर्थ बातें बोलता है। उसका हृदय बुराई का संग्रह करता है। वह बाहर जाकर लोगों से कहता-फिरता है।
7 जो मुझ से घृणा करते हैं, वे सब मिलकर मेरे विरुद्ध कानाफूसी करते हैं। वे मेरे अनिष्ट का उपाय करते हैं।
8 वे यह कहते हैं, “असाध्य रोग ने उसे जकड़ लिया है। जहाँ वह लेटा है, वहां से पुन: नहीं उठ सकेगा।”
9 मेरा प्रिय मित्र, जिस पर मैंने भरोसा किया था, जिसने मेरी रोटी खाई थी, उसी ने मेरे विरुद्ध लात उठाई है!
10 परन्तु प्रभु, तू मुझ पर कृपा कर; मुझे उठा, जिससे मैं उनका प्रतिकार कर सकूँ।
11 तब मैं जानूंगा कि तू मुझ से प्रसन्न है; मेरा शत्रु मेरे विरुद्ध जयघोष नहीं कर पाएगा।
12 तूने मेरी निर्दोषता के फलस्वरूप मुझे सहारा दिया है; तूने मुझे अपने सम्मुख सदा के लिए बैठाया है।
13 इस्राएल का प्रभु परमेश्वर युग-युगान्तर धन्य है। आमेन और आमेन!