Psalms 40
1 मैं धैर्य से प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। उसने मेरी ओर ध्यन दिया और मेरी दुहाई सुनी है।
2 प्रभु ने मुझे अंध-कूप से, कीच-दलदल से ऊपर खींचा है; उसने मेरे पैर चट्टान पर दृढ़ किए हैं; मेरे कदमों को स्थिर किया है।
3 प्रभु ने मुझे एक नया गीत सिखाया है, कि हम अपने परमेश्वर की स्तुति में गाएं! अनेक जन यह देखकर भयभीत होंगे; और वे प्रभु पर भरोसा करेंगे।
4 धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर भरोसा करता है; जो अभिमानियों का मुंह नहीं ताकता, जो झूठ के उपासकों का साथ नहीं देता।
5 हे प्रभु, मेरे परमेश्वर! तूने हमारे प्रति अपने अद्भुत कार्यों और अभिप्रायों में वृद्धि की है। यदि मैं लोगों से उनकी चर्चा करूं, यदि मैं उनके विषय में लोगों को बताऊं, तो मैं बताते-बताते थक जाऊंगा; क्योंकि उनकी गिनती नहीं हो सकती। प्रभु, तेरे तुल्य कोई नहीं है।
6 तुझे बलि और भेंट की चाह नहीं। तूने मेरे कानों को खोला कि मैं तेरी व्यवस्था का पालन करूं; तुझे अग्निबलि और पापबलि की आकांक्षा नहीं।
7 अत: मैंने कहा, “देख, मैं आ गया हूँ। पुस्तक में मेरे विषय में यह लिखा है।
8 हे मेरे परमेश्वर! मैं तेरी इच्छा को पूर्ण कर सुखी होता हूँ। तेरी व्यवस्था मेरे हृदय में है।”
9 मैंने आराधकों की महासभा में मुक्ति का संदेश सुनाया। देख, मैंने अपने ओंठों को बन्द नहीं किया; प्रभु! तू यह जानता ही है।
10 मैंने तेरी मुक्तिप्रद सहायता को अपने हृदय में गुप्त नहीं रखा; वरन् तेरे सत्य और उद्धार को घोषित किया। मैंने आराधकों की महासभा से तेरी करुणा और सच्चाई को नहीं छिपाया।
11 प्रभु! मुझे अपनी दया से वंचित न कर, तेरी करुणा और सच्चाई मुझे निरन्तर सुरक्षित रखें।
12 असंख्य बुराइयों ने मेरे विरुद्ध घेरा डाला है, कुकर्मों ने मुझे दबा दिया है। अत: मैं दृष्टि ऊपर उठाने में असमर्थ हूँ। कुकर्म मेरे सिर के बालों से कहीं अधिक हैं। मेरा हृदय हताश हो गया है।
13 प्रभु! मेरे उद्धार के लिए कृपा कर। प्रभु, अविलम्ब मेरी सहायता कर।
14 जो मेरे प्राण की खोज में हैं, और उसे नष्ट करना चाहते हैं, वे पूर्णत: लज्जित हों और घबरा जाएं। जो मेरी बुराई की कामना करते हैं, वे पीठ दिखाएं और अपमानित हों।
15 जो मुझ से “अहा! अहा!” कहते हैं, वे अपनी लज्जा के कारण निस्सहाय हो जाएं।
16 परन्तु वे लोग जो तेरी खोज करते हैं, तुझ में हर्षित और आनन्दित हों। जो तेरे उद्धार से प्रेम करते हैं, वे निरन्तर यह कहते रहें, “प्रभु महान है।”
17 मैं पीड़ित और दरिद्र हूँ; फिर भी तू, स्वामी, मेरी चिन्ता करता है। तू मेरा सहायक, मेरा मुक्तिदाता है; हे मेरे परमेश्वर, विलम्ब न कर।