Lamentations 4
1 सोने का रंग कैसे फीका पड़ गया! शुद्ध सोना कैसे खोटा हो गया! यरूशलेम में पवित्र पत्थर रूपी पुरुष गली- कूचों के छोरों पर मृत पड़े हैं।
2 सियोन के श्रेष्ठ पुत्र, जो शुद्ध सोने के तुल्य थे; वे कुम्हार के बनाए गए मिट्टी के बर्तन के समान तुच्छ माने गए!
3 सियार भी थन पसार कर अपने बच्चों को दूध पिलाती है; किन्तु मेरे लोगों की बेटी, वन की शुतुरमुर्गी की तरह निष्ठुर हो गई है।
4 प्यास के कारण दूध पीनेवाले बच्चों की जीभ उनके तालू से चिपक गई। बच्चे रोटी मांग रहे हैं, परन्तु कोई भी उनको रोटी नहीं देता।
5 जो पहिले छप्पन भोग खाते थे, अब वे सड़कों पर भूख से मरे पड़े हैं। जो कीमती वस्त्र पहिनकर जवान हुए थे, अब वे घूरों को गले लगा रहे हैं।
6 मेरे लोगों की नगरी यरूशलेम के अधर्म का दण्ड सदोम नगर के पाप के दण्ड से अधिक कठोर है, जो नगर बिना किसी के हाथ लगाए ही क्षण भर में उलट-पुलट गया था।
7 मेरे लोगों की नगरी के तरुण हिम से अधिक निर्मल थे, दूध से अधिक उज्ज्वल थे उनकी देह मूंगे से अधिक लाल थी; उनका रूप नीलम जैसा सुन्दर था।
8 अब उनके चेहरे अंधकार से अधिक काले पड़ गए हैं; वे सड़कों पर पहचाने भी नहीं जाते। उनकी चमड़ी हड्डियों से चिपक गई है, वह लकड़ी के समान सूख गई है।
9 जो तलवार से मारे गए वे उन लोगों से अच्छे रहे, जो भूख का शिकार बने; वे खेतों के अन्न के अभाव में सूख गए, मुरझा गए।
10 दयालु मांओं ने अपने ही हाथों से अपने बच्चों को पकाया! मेरे अपने लोगों की नगरी के विनाश के समय ये बच्चे अपनी मांओं का आहार बन गए।
11 तब प्रभु ने अपना पूरा क्रोध ढाह दिया; उसने क्रोधाग्नि की वर्षा की; उसने सियोन में आग लगा दी, जिसने उसकी नींव तक भस्म कर दी।
12 संसार के राजा और पृथ्वी के निवासी यह विश्वास नहीं करते थे कि बैरी अथवा शत्रु यरूशलेम के द्वारों से प्रवेश कर सकेंगे।
13 परन्तु यह यरूशलेम के नबियों के पापों के कारण; उसके पुरोहितों के दुष्कर्मों के कारण संभव हुआ; क्योंकि नबियों और पुरोहितों ने धार्मिकों का रक्त नगर में बहाया था।
14 वे अंधों की तरह गलियों में भटकते हैं; उनकी पोशाक धार्मिकों के खून से कलंकित है, अत: कोई उनकी पोशाक को स्पर्श नहीं करता।
15 लोग उनको देखकर चिल्लाते हैं, ‘अशुद्ध! भागो! भागो! यहां से भागो। हमें स्पर्श मत करो।’ अत: वे इधर-उधर भटकने लगे। तब अन्य राष्ट्रों के लोगों ने यह कहा, ‘ये हमारे साथ अब नहीं रह सकते।’
16 स्वयं प्रभु ने अपने क्रोध से उन्हें अन्य राष्ट्रों में तितर-बितर किया है; अब वह उन पर ध्यान नहीं देगा। लोगों ने पुरोहितों का सम्मान नहीं किया, और न ही धर्मवृद्धों पर दया की।
17 सयाहता की राह देखते-देखते हमारी आंखें पथरा गईं; हमने सहायता के लिए ऐसे राष्ट्र की बाट जोही जो हमें बचा न सका।
18 शत्रु हमारे पीछे ऐसे पड़े थे कि हम चौराहों पर खुलेआम न चल सके। हमारा अन्त समीप आ गया था; हमारी आयु पूरी हो चुकी थी; क्योंकि हमारे जीवन का अंत निकट आ गया था।
19 हमारा पीछा करनेवाला शत्रु आकाशगामी बाजों से भी अधिक वेगवान थे, उन्होंने पहाड़ों पर हमारा पीछा किया; वे निर्जन प्रदेश में भी घात लगाकर बैठे रहे।
20 हमारा प्राण, प्रभु का अभिषिक्त राजा बन्दी बना लिया गया; और वह उनके गड्ढों में डाल दिया गया। हम अपने राजा के विषय में यह कहते थे: ‘हम महाराज की छत्रछाया में पृथ्वी के राष्ट्रों के मध्य जीवित रहेंगे।’
21 ओ एदोम देश की राजधानी, ओ ऊज देश में रहनेवाली! तू यरूशलेम के पतन से आनन्दित है; आनन्द मना! पर स्मरण रख! तेरा भी पतन होगा, विनाश का प्याला तू भी पियेगी; तू मदमस्त होगी, और अपनी नग्नता का प्रदर्शन करेगी।
22 ओ सियोन की पुत्री, तेरे अधर्म का दण्ड पूरा हुआ; प्रभु तुझे और अधिक दिन तक विदेश में निर्वासित नहीं रखेगा; पर तू, ओ एदोम की पुत्री, प्रभु तुझे तेरे अधर्म का दण्ड देगा; वह तेरे सब पापों को उघाड़ेगा।