Jeremiah 12
1 मैं तुझसे क्यों वाद-विवाद करूं? क्योंकि तू धार्मिक है, और तेरा न्याय सच्चा है। फिर भी, हे प्रभु, मैं तेरे सम्मुख अपनी शिकायत पेश करूंगा; दुर्जन अपने काम में सफल क्यों होते हैं? विश्वासघाती सुख-चैन से क्यों रहते हैं?
2 सच है कि तूने उनको रोपा है, और उन्होंने जड़ पकड़ ली है। वे दिन-प्रतिदिन बढ़ते हैं, और फलते- फूलते हैं। वे मुंह से तेरा नाम जपते हैं, पर हृदय से तुझको दूर रखते हैं।
3 हे प्रभु, तू मुझे जानता है; हर पल मुझे देखता है। तू मेरे हृदय को परखता है, वह तुझ में लगा है। प्रभु, वध होनेवाली भेड़ों के सदृश झुण्ड में से दुर्जनों को निकाल, और महाविनाश के दिन के लिए उनको अलग कर।
4 कब तक देश विलाप करता रहेगा? कब तक हमारे चरागाह की घास सूखती रहेगी? क्योंकि देशवासियों के दुष्कर्मों के कारण पशु और पक्षी भी नष्ट हो गए हैं: ये दुष्कर्मी कहते हैं, ‘प्रभु हमारा आचरण नहीं देखता है।’
5 ‘यिर्मयाह, यदि तू पैदल चलनेवालों के साथ दौड़कर थक गया, तो तू घोड़ों का मुकाबला कैसे करेगा? यदि शांतिपूर्ण देश में घबरा गया तो यर्दन नदी के घने जंगल में तू क्या करेगा?
6 तेरे भाइयों ने, तेरे पितृकुल के नाते-रिश्तेदारों ने तेरे साथ विश्वासघात किया है; वे तेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं; यदि वे तुझसे मीठी-मीठी बातें करें तो भी तू उन पर विश्वास मत करना।
7 ‘ओ यिर्मयाह, मैंने अपना घर त्याग दिया: अपनी मीरास को छोड़ दिया। मैंने अपनी प्राण-प्रिय प्रेमिका को शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया।
8 मेरी मीरास जंगल की सिंहनी के समान मेरे प्रति व्यवहार करती है। वह मुझे देखकर दहाड़ती है; अत: मैं उससे घृणा करता हूं।
9 मेरी मीरास मानो रंग-बिरंगी चिड़िया है, जिसको मारने के लिए चारों ओर से गिद्ध उसको घेरे हुए हैं। जाओ, जंगल के सब पशुओं को एकत्र करो; उन्हें बुलाकर ले आओ कि वे उसको खा डालें।
10 अन्य देश के राजाओं ने, अनेक चरवाहों ने मेरे अंगूर-उद्यान को उजाड़ दिया, मेरे “निज भाग” को रौंद डाला। उन्होंने मेरे सुन्दर उद्यान को वीरान निर्जन प्रदेश बना दिया।
11 उन्होंने उसको उजाड़ दिया; वह उजड़ कर मुझसे अपना रोना रो रहा है। सारा देश ही उजड़ गया है, परन्तु किसी के हृदय में इसका दु:ख नहीं है।
12 निर्जन प्रदेश के मुंडे टीलों पर विनाश करनेवाले आ पहुंचे। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक मुझ-प्रभु की तलवार विनाश कर रही है। कोई भी मनुष्य सुरक्षित नहीं है।
13 उन्होंने बोया था गेहूं, पर काटे कांटे। उन्होंने खून-पसीना बहाया, किन्तु हाथ कुछ न आया। मुझ-प्रभु की क्रोधाग्नि के कारण वे अपनी फसल के लिए लज्जित होंगे।’
14 प्रभु अपने दुष्कर्मी पड़ोसी राष्ट्रों के सम्बन्ध में यह कहता है: ‘जो मीरास मैंने अपने निज लोग इस्राएल को पैतृक अधिकार के लिए दी थी, उसको पड़ोसी राष्ट्रों ने स्पर्श किया है। अत: मैं-प्रभु कहता हूं: देखो, मैं उनको उनके देश से उखाड़ दूंगा, और यहूदा कुल के लोगों को भी उनके मध्य से उखाड़ूंगा।
15 जब मैं उनको उखाड़ लूंगा तब पुन: उन पर दया करूंगा; और प्रत्येक कौम को उसकी पैतृक भूमि पर वापस लाऊंगा, वे अपने-अपने देश में पुन: बसेंगे।
16 यदि वे मेरे निज लोगों का आचरण सीखेंगे, यदि वे मेरे नाम की शपथ खाएंगे: “जीवंत प्रभु की शपथ,” जैसा उन्होंने मेरे निज लोगों को बअल देवता की शपथ खाना सिखाया था, तो वे मेरे निज लोगों के मध्य घरबार बना सकेंगे।
17 किन्तु यदि कोई कौम मेरी बात नहीं सुनेगी, तो मैं उसको उसके देश से जड़-मूल सहित उखाड़ लूंगा, और उस को नष्ट कर दूंगा,’ प्रभु की यह वाणी है।