Isaiah 41
1 ओ भूमध्यसागर तट के द्वीपो, शान्त रहो, और मेरी बात सुनो! कौमें नया बल प्राप्त करें, वे मेरे समीप आएं, और तब अपना पक्ष प्रस्तुत करें। मैं और वे एक साथ न्याय-आसन के सम्मुख उपस्थित हों।
2 पूर्व देश के उस राजा को किसने आन्दोलित किया था, जिसके हर कदम को विजय चूमती है? प्रभु ही राष्ट्रों को उसके हाथ में सौंपता है, और वह उनको अपने पैरों के तले रौंदता है। वह अपनी तलवार से धूल के सदृश उन्हें भूमि पर बिखेर देता है; वह उन्हें अपने धनुष से भूसी के सदृश हवा में उड़ा देता है।
3 वह उन्हें खदेड़ता जाता है, बिना अवरोध के वह बढ़ता जाता है, वह इतनी तीव्रगति से पीछा करता है, मानो उसके पैर भूमि को स्पर्श ही नहीं करते।
4 किसने यह कार्य सम्पन्न किया है? वह कौन है, जो सृष्टि के आरम्भ से पीढ़ी-दर-पीढ़ी को अपने वचन से बुलाता आ रहा है? मैं प्रभु जो सबसे पहला हूं, और अन्त तक रहूंगा; मैं ही ‘वह’ हूं।
5 भूमध्यसागर तट के द्वीप यह देखकर भयभीत हैं, पृथ्वी के सीमान्त भी कांप गए हैं, वे और समीप आ गए हैं।
6 प्रत्येक मनुष्य अपने पड़ोसी की मदद कर रहा है, वह अपने जाति-बन्धु से यह कहता है, “हिम्मत मत हार।”
7 कारीगर सुनार को हिम्मत बंधाता है, हथौड़ा पीटनेवाला निहाई पर काम करनेवाले से यह कहता है: “जोड़ने का काम पूरा हो गया।” तत्पश्चात् वे मूर्ति में कीलें ठोंकते हैं, ताकि वह स्थिर रहे।
8 ओ मेरे सेवक इस्राएल! ओ मेरे मनोनीत याकूब! मेरे मित्र अब्राहम की सन्तान।
9 मैं तुझे पृथ्वी के सीमान्तों से लाया था, मैंने तुझे दूरस्थ कोनों से बुलाया था। मैंने तुझे से यह कहा था, “तू मेरा सेवक है; मैंने तुझे राष्ट्रों में से चुना है; मैंने अब तक तुझे नहीं छोड़ा है।”
10 मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं। डर से यहाँ-वहाँ मत ताक; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं। मैं तुझे सुदृढ़ करूंगा, मैं तेरी सहायता करूंगा। विजय प्रदान करनेवाले अपने दाहिने हाथ का सहारा मैं तुझे दूंगा।
11 देख, जो राष्ट्र तुझसे क्रोधित हैं, वे पराजय के कारण लज्जित होंगे, उनका मुंह काला होगा। जो राष्ट्र तुझसे लड़ते हैं, उनका नामो-निशान मिट जाएगा, वे नष्ट हो जाएंगे।
12 जो राज्य तुझसे लड़ने आए हैं, तू उन्हें ढूंढ़ेगा, पर वे तुझे नहीं मिलेंगे। जो राष्ट्र तुझसे युद्ध करते हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा,
13 क्योंकि मैं, तेरा प्रभु परमेश्वर, तेरे दाहिने हाथ को सम्भालता हूं, मैं ही तुझ से कहता हूं: “मत डर, मैं तेरी सहायता करता हूं।”
14 प्रभु कहता है: ओ याकूब, तू कीड़ा मात्र है; ओ इस्राएल, मत डर। मैं तेरी सहायता करूंगा। तुझे छुड़ानेवाला इस्राएल का पवित्र परमेश्वर मैं हूं।
15 मैं तुझे नए, तेज और अनेक दांतोंवाले दंवरी के हेंगे-सा बना दूंगा, तब तू पहाड़ों को दांव कर चूर-चूर करेगा, तू पहाड़ियों को भूसा बना देगा।
16 तू उन्हें ओसाएगा, और हवा उन्हें उड़ा ले जाएगी; तूफान उन्हें छितरा देगा। तब तू प्रभु में हर्षित होगा, तू इस्राएल के पवित्र परमेश्वर के कारण गौरव प्राप्त करेगा।
17 जब दीन-हीन जन पानी ढूंढ़ेंगे, और उन्हें पानी नहीं मिलेगा; जब उनका तालु प्यास के कारण सूखेगा, तब मैं, इस्राएल का प्रभु परमेश्वर उनकी प्रार्थना का उत्तर दूंगा, मैं उन्हें नहीं त्यागूंगा।
18 मैं मुण्डे टीलों पर नदियाँ बहाऊंगा; घाटियों के मध्य जल के सोते निकालूंगा; मैं निर्जन प्रदेश को जलशय में बदल दूंगा; शुष्क भूमि-क्षेत्र को जल के झरनों में परिणत कर दूंगा।
19 मैं निर्जन प्रदेश में देवदार, बबूल, मेहँदी और जैतून के वृक्ष लगाऊंगा; मैं मरुस्थल में सनोवर, चनार और चीड़ के वृक्ष एक साथ उगाऊंगा।
20 लोग यह देखेंगे, वे यह जानेंगे, और विचार करेंगे। तब वे यह समझेंगे कि प्रभु के हाथ ने ही यह अद्भुत कार्य किया है; इस्राएल के पवित्र परमेश्वर ने ही यह उपजाया है।
21 प्रभु, याकूब का राजा, कहता है, “अपना पक्ष प्रस्तुत करो; अपने प्रमाण लाओ।”
22 निकट आओ और हमें बताओ कि क्या होनेवाला है। जो बातें पहले हो चुकी हैं, वे हमें बताओ। हम उन पर विचार करेंगे, हम उनका परिणाम जानेंगे। आगे घटनेवाली बातें हमें सुनाओ।
23 भविष्य में क्या होगा, यह हमें बताओ, तब हम मानेंगे, कि तुम देवता हो। भला या बुरा कुछ ऐसा कार्य करो जिसको देखकर हम चकित और भयभीत हो जाएँ।
24 सुनो, तुम कुछ भी नहीं हो, तुम कुछ नहीं कर सकते, जो तुम्हें आराधना के लिए चुनता है, वह स्वयं घृण्य है।
25 मैंने उत्तर दिशा के एक देश में एक राजा को आन्दोलित किया, और वह आ गया। वह पूर्व दिशा से आया है, वह मेरे नाम से आराधना करेगा। जैसा कुम्हार गीली मिट्टी को पैरों से रौंदता है वैसा ही वह शासकों को कीचड़ के समान रौंदेगा।
26 आरम्भ से किसने यह बात घोषित की, ताकि हम उसे जान सकें? किसने प्राचीनकाल में यह बात प्रकट की, जिससे हम यह कहें: “वह सच्चा है?” उस समय घोषणा करनेवाला, बतानेवाला कोई नहीं था, तुम्हारे शब्दों को सुननेवाला कोई नहीं था।
27 मैंने सर्वप्रथम सियोन को यह बात बताई, “देख, वे वापस आ रहे हैं!” मैंने यरूशलेम के लिए शुभ सन्देश सुनानेवाले को नियुक्त किया।
28 मैंने इधर-उधर देखा, पर वहाँ कोई न था, देवताओं के मध्य कोई परामर्शदाता नहीं था, जो मेरी पूछताछ का उत्तर दे सके।
29 देखो, उनका अस्तित्व व्यर्थ है, उनके कार्य व्यर्थ हैं, उनकी ढली हुई मूर्तियाँ कोरी हवा हैं।