Isaiah 40
1 तुम्हारा परमेश्वर यह कहता है: “मेरे निज लोग इस्राएल को शान्ति दो, शान्ति!
2 यरूशलेम के हृदय से बात करो, उसको बताओ कि उसके निष्कासन के दिन पूरे हो गए; उसके अधर्म का मूल्य चुका दिया गया; उसे मुझ-प्रभु के हाथ से अपने पापों का दुगना दण्ड प्राप्त हो चुका है।”
3 सुनो, कोई पुकार रहा है: “निर्जन प्रदेश में प्रभु का मार्ग सुधारो । हमारे परमेश्वर के लिए मरुस्थल में राजपथ सीधा करो।
4 हर एक घाटी को भर दो, प्रत्येक पहाड़ और पहाड़ी को गिरा दो, ऊंची-नीची जमीन को समतल कर दो, ऊबड़-खाबड़ मैदान को सपाट बना दो।
5 तब प्रभु की महिमा प्रकट होगी, और समस्त मनुष्यजाति उसको एक-साथ देखेगी। प्रभु ने अपने मुख से यह कहा है।”
6 बोलनेवाला यह आदेश देता है, “प्रचार कर।” मैंने उत्तर दिया, “मैं क्या प्रचार करूँ?” समस्त प्राणी घास की तरह अनित्य हैं, उनकी शोभा बाग के फूल के समान क्षणिक है।
7 जब प्रभु का श्वास घास पर पड़ता है तब वह सूख जाती है, फूल मुरझा जाते हैं। निस्सन्देह ये लोग घास ही हैं!
8 घास सूख जाती है, फूल मुरझाते हैं, पर हमारे परमेश्वर का वचन नित्य है, वह कभी टलता नहीं।
9 ओ सियोन को शुभ सन्देश सुनानेवाली, ऊंचे पर्वत पर चढ़कर सन्देश सुना! ओ यरूशलेम को शुभ सन्देश सुनानेवाली, बल्पूर्वक उच्च स्वर में सुना! मत डर, ऊंची आवाज में सुना। यहूदा प्रदेश के नगरों में यह प्रचार कर, “देखो! तुम्हारा परमेश्वर!”
10 देखो, प्रभु स्वामी सामर्थ्य के साथ आ रहा है, वह अपने भुजबल से शासन करता है। देखो, उसका पुरस्कार उसके साथ है, उसके आगे-आगे उसका प्रतिफल है!
11 वह मेषपाल के सदृश अपने रेवड़ को चराएगा; वह अपनी बाहों में मेमनों को उठाएगा; वह उन्हें अपनी गोद में उठाकर ले जाएगा, वह दूध पिलानेवाली भेड़ों को धीरे-धीरे ले जाएगा।
12 अपनी अंजली से किसने महासागर को नापा है? किसने बित्ते से आकाश को नापा है? किसने पृथ्वी की मिट्टी को नाप में भरा है? किसने तराजू से पहाड़ी को तौला है? किसने पहाड़ियों को पलड़ों में रखा है?
13 प्रभु के आत्मा को किसने निर्देशित किया है? उसका परामर्शदाता कौन है, जो उसको सिखाता है?
14 उसने किस से ज्ञान के लिए सम्मति मांगी? किसने उसे न्याय का मार्ग सिखाया है? किसने उसे ज्ञान सिखाया है? किसने उसे बुद्धि का मार्ग बताया है?
15 देखो, राष्ट्र तो ऐसे हैं, जैसे बाल्टी में एक बूंद; वे तराजू के पलड़ों में लगे रजकण के समान हैं! देखो, वह द्वीपों को धूल के सदृश उठा लेता है।
16 लबानोन का विशाल वन भी उसके ईंधन के लिए अपर्याप्त है, वन के समस्त पशु भी उसकी अग्नि-बलि के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
17 उसके सम्मुख पृथ्वी के समस्त राष्ट्र नगण्य हैं, उनका अस्तित्व शून्य से भी कम है, वे कुछ भी नहीं हैं!
18 तब परमेश्वर, हम तेरी तुलना किससे करें? हम तेरी उपमा किससे दें?
19 क्या मूर्ति से जिसको कारीगर ढालता है, सुनार सोने से मढ़ता है, और जिसके लिए वह चांदी की जंजीरें ढालता है?
20 जो आराधक सोने-चांदी की मूर्ति चढ़ाने में असमर्थ है, वह घुन न लगनेवाले वृक्ष को चुनता है, वह कुशल कारीगर को ढूंढ़ता है, और उससे लकड़ी पर मूर्ति खुदवाता है, जो हिलती-डुलती नहीं है!
21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? क्या तुम्हें प्राचीन काल से नहीं बताया गया? जब से पृथ्वी की नींव डाली गई, सृष्टि के आरम्भ से ही तुम्हें यह समझाया जाता रहा है कि
22 वह प्रभु ही है जो पृथ्वी के चक्र के ऊपर विराजमान है। और हम, पृथ्वी के निवासी, मात्र टिड्डियां हैं! प्रभु आकाश को वितान के समान तानता है, उसको तम्बू के समान फैलाता है ताकि मनुष्य उस के नीचे रह सकें।
23 जो सामन्तों का अस्तित्व मिटा देता है, जो पृथ्वी के शासकों को नगण्य बना देता है, वह प्रभु ही है।
24 अभी-अभी वे रोपे गए थे, अभी-अभी वे बोए गए थे, अभी-अभी उनकी ठूंठ ने जड़ पकड़ी थी कि प्रभु ने उन पर पवन बहाया, और वे सूख गए। तूफान उन्हें भूसे की तरह उड़ा ले गया।
25 पवित्र परमेश्वर पूछता है, “तुम किससे मेरी तुलना करोगे? मैं किस के समान हूं?
26 आकाश की ओर आंखें उठाओ, और देखो: इन तारों को किसने रचा है? मैं-प्रभु ने! मैं सेना के सदृश उनकी गणना करता हूं; और हर एक तारे को उसके नाम से पुकारता हूं। मेरी शक्ति असीमित है, मेरा बल अपार है, अत: प्रत्येक तारा मुझे उत्तर देता है।”
27 ओ याकूब, तू यह क्यों कहता है; ओ इस्राएल, तू क्यों बोलता है कि तेरा आचरण प्रभु से छिपा है? तेरा परमेश्वर तेरे अधिकार पर ध्यान नहीं देता है?
28 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? प्रभु शाश्वत परमेश्वर है, वह समस्त पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है। वह न निर्बल है, और न थकता है। उसकी समझ अगम है!
29 वह शक्तिहीन को शक्ति प्रदान करता है, वह बलहीन का बल बढ़ाता है।
30 युवक भी निर्बल हो जाते हैं, वे थक जाते हैं, तरुण भी थक कर चूर हो जाते हैं।
31 परन्तु प्रभु की प्रतीक्षा करनेवाले नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे गरुड़ के पंखों की तरह नवशक्ति प्राप्त कर ऊंचे उड़ेंगे; वे दौड़ेंगे, पर थकेंगे नहीं; वे चलते रहेंगे, किन्तु निर्बल नहीं होंगे।