Isaiah 18
1 ओ पालोंवाले जलयान के देश, ओ इथियोपिआ की नदियों के उस पार के देश!
2 तू नरकट की नावों पर नील नदी के जलमार्ग से राजदूतों को भेजता है: “द्रुतगामी दूतो, उस राष्ट्र के पास जाओ, जिसके निवासी ऊंचे-ऊंचे, और चिकनी चमड़ी वाले हैं; उस कौम के पास जाओ, जिससे दूर और पास के सब देश डरते हैं, जो शक्तिशाली और विजयी राष्ट्र है, जिसका देश नदियों द्वारा कटा हुआ है।
3 ओ संसार के सब रहनेवालो! ओ पृथ्वी के सब निवासियो! जब ध्वजा पर्वतों पर फहरायी जाएगी, तब तुम उस को देखोगे; जब तुरही फूंकी जाएगी, तब तुम उस को सुनोगे।”
4 प्रभु ने मुझसे यों कहा: “सूर्य की तेज धूप के समान, फसल की कटनी के समय ओस-भरे बादल के समान मैं अपने निवास-स्थान से उन पर चुपचाप दृष्टिपात करूंगा।”
5 अंगूर की फसल काटने के पहले जब बौड़ियों का खिलना समाप्त हो जाएगा, जब अंगूर के गुच्छे पकने लगेंगे, तब वह हंसियों से टहनियों को काटेगा, फैली हुई शाखाओं को छांटेगा।
6 वे पहाड़ के मांसाहारी पक्षियों के लिए, मैदान के जंगली पशुओं के लिए छोड़ दी जाएंगी। पहाड़ के मांसाहारी पक्षी ग्रीष्मकाल में और मैदान के सब जंगली पशु शीतकाल में उनमें निवास-स्थान बनाएंगे।
7 उस समय उस कौम के लोग जिनसे दूर और पास के सब देश डरते हैं, जो ऊंचे-ऊंचे और चिकनी चमड़ीवाले हैं, जो शक्तिशाली और विजयी राष्ट्र हैं, जिनका देश नदियों के द्वारा कटा हुआ है, स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु को भेंट चढ़ाएंगे। उनकी भेंट सियोन पर्वत पर, जहाँ स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का नाम प्रतिष्ठित है लाई जाएगी।