Ezekiel 2
1 उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव-सन्तान! अपने पैरों पर खड़ा हो, मैं तुझ से बातें करूंगा।’
2 जब उसने मुझसे यह कहा तब आत्मा ने मुझ में प्रवेश किया, और मुझे पैरों पर खड़ा कर दिया। मैंने उसको स्वयं मुझसे बातें करते हुए सुना।
3 उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, मैं तुझको इस्राएली राष्ट्र के पास भेज रहा हूं, जो विद्रोही कौम है, जिसने मेरे प्रति विद्रोह किया है। वे और उनके पूर्वज आज तक मेरे प्रति अपराध करते चले आ रहे हैं।
4 यह पीढ़ी धृष्ट और हठी है। मैं उन लोगों के पास तुझको भेज रहा हूं। तू उनसे यह कहना: “स्वामी-प्रभु यों कहता है।”
5 चाहे वे सुनें या सुनने से इन्कार करें − क्योंकि वे विद्रोही कुल की सन्तान हैं − उन्हें यह मालूम होगा कि तू उनके मध्य एक नबी है।
6 और तू, मानव, उनसे मत डरना, और न उनके कठोर शब्दों से घबराना, चाहे तेरे आसपास कांटे, ऊंटकंटारे हों और चाहे तुझे बिच्छुओं के बीच रहना पड़े। तू उनकी बातों से मत डरना, और न उनकी तीखी दृष्टि से हताश होना; क्योंकि वे विद्रोही कुल की सन्तान हैं।
7 चाहे वे सुनें, चाहे सुनने से इनकार करें, तू उनको मेरे सन्देश सुनाना। निस्सन्देह, वे विद्रोही कुल की सन्तान हैं।
8 ‘ओ मानव-सन्तान! जो बात मैं तुझसे कहता हूं, उसको ध्यान से सुन। तू भी उन विद्रोहियों के समान विद्रोही मत बनना। अपना मुंह खोल, और जो मैं तुझको दे रहा हूं, उसको खा जा!’
9 तब मैंने देखा कि एक हाथ मेरी ओर बढ़ा। उस हाथ में एक पुस्तक थी, जिसमें कुछ लिखा था।
10 उसने पुस्तक मेरे सामने खोल दी। उसके दोनों पृष्ठों पर लिखा हुआ था। मैंने पढ़ा, उस पर विलाप और शोक-गीत लिखे हुए थे। उस पर धिक्कार के शब्द लिखे हुए थे।