Ezekiel 1
1 तीसवें वर्ष के चौथे महीने की पांचवीं तारीख को यह घटना घटी। उस समय कबार नदी के तट पर यहूदा प्रदेश से निष्कासित बन्दियों का शिविर था। मैं भी इन्हीं बन्दियों में था। तब स्वर्ग खुल गया, और मैंने परमेश्वर के दर्शन देखे।
2 (राजा यहोयाकीन की कैद का पांचवां वर्ष था।) उसी महीने की पांचवीं तारीख को
3 प्रभु का यह सन्देश पुरोहित यहेजकेल बेन-बूजी को मिला। उस समय पुरोहित यहेजकेल कसदी कौम के देश में कबार नदी के तट पर बन्दियों के शिविर में थे। वहाँ प्रभु की सामर्थ्य नबी यहेजकेल को प्राप्त हुई।
4 जब मैं-यहेजकेल ने आंखें ऊपर उठायीं, तब यह देखा: उत्तर दिशा से आंधी उठी, और उसके साथ महा मेघ है, और उस महा मेघ के चारों ओर प्रकाश है, जिससे आग रह-रह कर बिजली के सदृश चमक रही है। आग के मध्य में मानो पीतल चमक रहा है।
5 तब आग में से चार आकृतियाँ निकलीं, जो जीवधारी प्राणियों के समान दिखाई दे रही थीं। उनका रूप मनुष्यों के समान था,
6 किन्तु प्रत्येक प्राणी के चार मुंह और चार पंख थे।
7 उनके पैर सीधे थे, और पांवों के तलुए बछड़े के खुरों के समान थे, और वे चमकाए हुए पीतल के समान चमक रहे थे।
8 उनके चारों ओर पंखों के नीचे, मनुष्य के ही हाथ थे। चारों प्राणियों के चेहरे और पंख इस प्रकार थे:
9 उनके पंख परस्पर जुड़े हुए थे। वे चलते समय अपनी आंखों की सीध में सीधे चलते थे, और मुड़ते नहीं थे।
10 चारों के चेहरे का रूप इस प्रकार था: प्रत्येक प्राणी का चेहरा सामने की ओर मनुष्य के समान था, दाहिनी ओर सिंह का था, और बायीं ओर बैल का तथा पीछे की ओर गरुड़ का।
11 चारों प्राणियों के चेहरों की आकृति यही थी। उनके पंख ऊपर की ओर फैले हुए थे। प्रत्येक प्राणी के दो पंख दूसरे प्राणी के दो पंखों से मिले हुए थे। वे अन्य दो पंखों से अपना शरीर ढके हुए थे।
12 वे सीधे, अपने सामने की ओर चल रहे थे, और चलते समय न दाएँ और न बाएँ मुड़ रहे थे। जहाँ आत्मा जाना चाहती थी, वहाँ वे जा रहे थे।
13 चारों जीवधारियों के मध्य में आग के जलते हुए अंगारों के समान कुछ था। वह जलती हुई मशाल के समान जीवधारियों के बीच यहाँ-वहाँ घूम रहा था। आग धधक रही थी, और उससे बिजली निकल रही थी।
14 जीवधारी बिजली की चमक के समान इधर-उधर कौंध रहे थे।
15 जब मैं जीवधारियों को देख रहा था तब मुझे एक पहिया दिखाई दिया, जो भूमि पर था। वस्तुत: चारों जीवधारियों की बाजू में एक-एक पहिया था, जो भूमि को स्पर्श कर रहा था।
16 उन पहियों की चमक और बनावट इस प्रकार थी: वे स्वर्णमणि के समान चमक रहे थे। चारों की बनावट एक-जैसी थी; बनावट ऐसी थी, मानो एक पहिए के भीतर दूसरा पहिया हो।
17 वे चारों दिशाओं में घूम सकते थे। वे किसी भी दिशा में बिना मुड़े ही जा सकते थे।
18 चारों पहियों के घेरे बहुत बड़े और भयानक थे। उनके घेरों में चारों ओर आंखें ही आंखें थीं।
19 जब जीवधारी चलते थे तब उनके साथ-साथ ये पहिए भी चलते थे, और जब जीवधारी भूमि की सतह से ऊपर उठते थे तब पहिए भी उठ जाते थे।
20 जहाँ आत्मा जाना चाहती थी, वहाँ जीवधारी जाते थे, और जीवधारियों के साथ ये पहिए भी उठ जाते थे; क्योंकि जीवधारियों की आत्मा इन पहियों में थी।
21 जब जीवधारी जाते थे तब ये पहिए भी जाते थे। जब वे खड़े होते तब पहिये भी खड़े हो जाते। जब जीवधारी भूमि से ऊपर उठते तब उनके पहिये भी ऊपर उठ जाते थे; क्योंकि जीवधारियों की आत्मा इन पहियों में थी।
22 उन जीवधारियों के सिर के ऊपर आकाश-मण्डल के समान कुछ था, जो भय उत्पन्न करनेवाला स्फटिक के समान चमक रहा था। वह उनके सिर पर फैला हुआ था।
23 आकाशमण्डल के नीचे, उनके पंख एक-दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे। वे अपने दो पंखों से अपना-अपना शरीर ढके हुए थे।
24 जब वे चलते थे तब उनके पंखों की आवाज ऐसी सुनाई पड़ती थी मानो सागर का गर्जन हो, अथवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर का स्वर हो या सेना का कोलाहल हो। जब जीवधारी रुककर खड़े होते थे तब वे अपने पंख नीचे कर लेते थे।
25 उनके सिर के ऊपर आकाशमण्डल था। उससे एक आवाज आती थी। जब-जब जीवधारी रुककर खड़े होते थे तब वे अपने पंख नीचे कर लेते थे।
26 जीवधारियों के सिर के ऊपर आकाश-मण्डल था। उस आकाशमण्डल के ऊपर सिंहासन के समान कुछ था। यह सिंहासन मानो नीलम का बना था। सिंहासन के समान इस आसन पर कोई बैठा था, जिसकी आकृति मनुष्य के समान थी।
27 मुझे ऐसा दिखाई दिया मानो उसकी कमर से ऊपर की ओर का हिस्सा चमकाया हुआ पीतल है, और उसके भीतर और बाहर मानो आग धधक रही है। आकृति का जो भाग कमर के सदृश था, उसके नीचे अग्नि थी। मनुष्य की आकृति के चारों ओर प्रभा-मण्डल था।
28 जैसे वर्षा के दिन बादलों में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही उसके चारों ओर का प्रभा-मण्डल दिखाई दे रहा था। प्रभु के तेज का रूप मानो ऐसा ही दिखाई दे रहा था। जब मैंने प्रभु के तेज के दर्शन किए, तब मैं श्रद्धा और भक्ति से नतमस्तक हो गया, और मैंने किसी की आवाज सुनी। कोई व्यक्ति मुझसे कह रहा था: