Exodus 32
1 जब लोगों ने देखा कि मूसा पहाड़ से उतरने में विलम्ब कर रहे हैं तब वे हारून के पास एकत्र हुए। उन्होंने कहा, ‘उठिए! हमारे लिए ऐसा देवता बनाइए, जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि इस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया है, क्या हुआ?’
2 हारून ने उनसे कहा, ‘जो सोने की बालियाँ तुम्हारी पत्नियों, पुत्रों और पुत्रियों के कानों में हैं, उन्हें उतारकर मेरे पास लाओ।’
3 लोगों ने अपने कानों से सोने की बालियाँ उतार लीं। वे उनको हारून के पास लाए।
4 उसने उनके हाथ से सोना लिया। तत्पश्चात् उसने उसे सांचे में ढाला, और उससे बछड़े की एक मूर्ति बनाई। लोगों ने कहा, ‘ओ इस्राएली समाज! यह है तेरा ईश्वर जो तुझे मिस्र देश से निकाल लाया है।’
5 हारून ने यह देखकर उसके सम्मुख एक वेदी निर्मित की। उसने पुकारकर कहा, ‘कल प्रभु के लिए एक पर्व मनाया जाएगा।’
6 उन्होंने दूसरे दिन सबेरे उठकर अग्नि-बलि तथा सहभागिता-बलि चढ़ाई। तत्पश्चात् लोग खाने-पीने के लिए बैठ गए। उन्होंने उठकर आमोद-प्रमोद भी किया।
7 प्रभु मूसा से बोला, ‘जा, नीचे उतर जा! तेरे लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल लाया है, भ्रष्ट हो गए हैं।
8 जिस मार्ग पर चलने के लिए मैंने उनको आज्ञा दी थी, उससे वे इतने शीघ्र भटक गए। उन्होंने अपने लिए बछड़े की मूर्ति बनाई है। उन्होंने उसकी पूजा की, उसको बलि चढ़ाई और कहा, “ओ इस्राएली समाज! यह है तेरा ईश्वर, जो तुझे मिस्र देश से निकाल लाया है।” ’
9 प्रभु ने मूसा से आगे कहा, ‘मैंने इन लोगों को देखा है। ये ऐंठी गरदन के लोग हैं।
10 अब तू मुझे अकेला छोड़ दे कि मेरी क्रोधाग्नि उनके विरुद्ध प्रज्वलित हो और मैं उनको भस्म करूँ। परन्तु मैं तुझको एक महान् राष्ट्र बनाऊंगा।’
11 मूसा ने अपने प्रभु परमेश्वर का क्रोध शान्त करते हुए उससे विनती की, ‘हे प्रभु, क्यों तेरी क्रोधाग्नि तेरे लोगों के विरुद्ध प्रज्वलित हुई है, जिसे तू अपने महान् सामर्थ्य और भुजबल के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है?
12 मिस्र निवासी क्यों यह बात कहें, कि तू उन्हें बुरे उद्देश्य से, पहाड़ों पर उनका वध करने के लिए, धरती की सतह से उन्हें मिटा डालने के लिए मिस्र देश से निकाल लाया था? अतएव अपनी क्रोधाग्नि को शान्त कर, और अपने लोगों की हानि का विचार छोड़ दे।
13 अपने सेवक अब्राहम, इसहाक और इस्राएल को स्मरण कर, जिनसे तूने स्वयं अपनी शपथ खाई थी, और उनसे कहा था, “मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के सदृश असंख्य करूँगा। मैं यह समस्त देश, जिसकी प्रतिज्ञा मैंने की थी, तेरे वंश को प्रदान करूँगा। वे उस पर सदा अधिकार रखेंगे।” ’
14 अत: अपने लोगों की जो हानि प्रभु करने वाला था, उसका विचार उसने छोड़ दिया।
15 मूसा लौटे। वे अपने हाथ में दोनों साक्षी-पट्टियाँ लिये हुए पहाड़ से उतर गए। पट्टियों पर दोनों ओर लिखा हुआ था। वे सामने की ओर तथा पीछे की ओर लिखी हुई थीं।
16 पट्टियाँ परमेश्वर की कृति थीं। जो लेख उन पट्टियों पर खुदा हुआ था, वह परमेश्वर का लेख था।
17 जब यहोशुअ ने लोगों के कोलाहल को सुना तब उसने मूसा से कहा, ‘पड़ाव में युद्ध का कोलाहल सुनाई दे रहा है।’
18 मूसा ने कहा, ‘यह कोलाहल न तो विजय-उल्लास का स्वर है, और न पराजय का रोदन-स्वर। मैं तो गाने की आवाज सुन रहा हूँ।’
19 मूसा पड़ाव के निकट आए। जब उन्होंने बछड़ा और नाच देखा तब उनका क्रोध भड़क उठा। उन्होंने अपने हाथ से पट्टियाँ फेंक दीं और पहाड़ की तलहटी में उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
20 जो बछड़ा उन्होंने बनाया था, उसको लेकर आग में झोंक दिया। उसको पीसकर चूर्ण बनाया और उसको जल में छितरा दिया। तब उसको इस्राएली समाज को पिलाया।
21 मूसा ने हारून से पूछा, ‘इन लोगों ने तुम्हारे साथ क्या किया था, जो तुमने उनको ऐसे घोर पाप में फंसाया?’
22 हारून ने उत्तर दिया, ‘हे स्वामी, आपका क्रोध न भड़के। आप स्वयं इन लोगों को जानते हैं कि ये बुराई करने को तत्पर रहते हैं।
23 इन्होंने मुझसे कहा, “हमारे लिए ऐसा देवता बनाइए, जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि इस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया है, क्या हुआ?”
24 तब मैंने इनसे कहा, “जिनके पास सोना है; वे उसे उतारकर दें।” अत: उन्होंने मुझे दिया। मैंने उसे अग्नि में डाला। तब यह बछड़ा बाहर निकला।’
25 जब मूसा ने देखा कि लोग अनियन्त्रित हो गए हैं (क्योंकि हारून ने उनको अपने शत्रुओं के मध्य उपहास का पात्र बनने के लिए मुक्त छोड़ दिया था)
26 तब वह पड़ाव के द्वार पर खड़े हुए। उन्होंने कहा, ‘कौन प्रभु के पक्ष में है? वह मेरे पास आए।’ लेवी-कुल के सब व्यक्ति उनके पास एकत्र हो गए।
27 मूसा ने उनसे कहा, ‘इस्राएल का प्रभु परमेश्वर यों कहता है: तुममें से प्रत्येक व्यक्ति अपनी कमर में तलवार बांध ले। तब पड़ाव में घूम-घूमकर एक द्वार से दूसरे द्वार पर जाकर मनुष्य का वध करे−चाहे वह उसका भाई हो, मित्र हो अथवा पड़ोसी।’
28 लेवियों ने मूसा के कथनानुसार किया। उस दिन इस्राएली समाज में प्राय: तीन हजार मनुष्य मारे गए।
29 मूसा ने कहा, ‘आज तुम में से प्रत्येक व्यक्ति ने अपने पुत्र, अपने भाई का उत्सर्ग कर प्रभु की सेवा के लिए पुरोहित पद पर स्वयं को अभिषिक्त किया है। अतएव वह आज तुमको आशिष देगा।’
30 दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, ‘तुमने घोर पाप किया है। अब मैं प्रभु के पास ऊपर जाऊंगा। सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूँ।’
31 अत: मूसा प्रभु के पास लौटे। मूसा ने कहा, ‘आह! इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है।
32 अब तू उनके पाप क्षमा कर। यदि तू नहीं करेगा तो, मैं विनती करता हूँ, तू अपनी उस पुस्तक में से मेरा नाम काट दे, जिसे तूने लिखा है।’
33 प्रभु ने मूसा से कहा, ‘जिन लोगों ने मेरे विरुद्ध पाप किया है, उनका नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा।
34 अब जा: तू लोगों का उस स्थान की ओर नेतृत्व कर जिसके विषय में मैंने कहा था। देख, मेरा दूत तेरे आगे-आगे जाएगा। फिर भी जिस दिन मैं उनको दण्ड देने के लिए उनकी सुध लूँगा, उसी दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूँगा।’
35 प्रभु ने लोगों पर महामारी भेजी; क्योंकि उन्होंने हारून के द्वारा बनाए हुए बछड़े की सेवा की थी।