Exodus 30
1 ‘धूप जलाने के लिए एक वेदी बनाना। तू उसको बबूल की लकड़ी का बनाना।
2 उसकी लम्बाई पैंतालीस सेंटीमीटर होगी। वह वर्गाकार होगी। उसकी ऊंचाई नब्बे सेंटीमीटर होगी। उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएंगे।
3 तू उसके उपरले ढक्कन, उसके चारों ओर के बाजुओं, और उसके सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ना। उसके चारों ओर सोने की भित्ति बनाना।
4 उसके लिए सोने के दो कड़े बनाना। उन्हें भित्ति के नीचे दोनों ओर बाजुओं में लगाना। वे डण्डों के जकड़-पट्टे बनेंगे जिससे वेदी उठाई जा सके।
5 तू डण्डों को बबूल की लकड़ी का बनाना, और उन्हें सोने से मढ़ना।
6 वेदी को साक्षी-मंजूषा के सामने लटके हुए अन्त:पट के आगे रखना, अर्थात् साक्षी-मंजूषा पर रखे हुए दया-आसन के आगे, जहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा।
7 हारून वेदी पर सुगन्धित धूप जलाएगा। प्रतिदिन सबेरे, जब वह दीपकों को सजाकर रखेगा तब उसको जलाएगा।
8 सन्ध्या समय, जब वह दीपकों को जलाए तब भी धूप जलाएगा। यह धूप पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभु के सम्मुख निरन्तर जलाई जाए।
9 तुम उस पर अपवित्र धूप न जलाना, न अग्नि-बलि और न अन्न-बलि चढ़ाना। तुम उस पर पेय-बलि न उण्डेलना।
10 हारून वर्ष में एक बार उसके सींगों पर प्रायश्चित्त करेगा। तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ी, वर्ष में एक बार, प्रायश्चित्त की पाप-बलि के रक्त से उस पर प्रायश्चित्त किया जाए। यह वेदी प्रभु के लिए परम पवित्र है।’
11 प्रभु मूसा से बोला,
12 ‘जब तू इस्राएली समाज की जनगणना करे तब प्रत्येक व्यक्ति गणना के समय अपने प्राणों के उद्धार का शुल्क प्रभु को देगा, जिससे गणना के समय उस पर किसी महामारी का प्रकोप न हो।
13 जिस व्यक्ति की गणना की गई है, वह यह देगा: पवित्र स्थान की तौल के अनुसार चाँदी का आधा सिक्का (एक सिक्के में प्राय: बारह ग्राम है)। वह प्रभु को आधा सिक्का भेंट के रूप में देगा।
14 प्रत्येक व्यक्ति जिसकी आयु बीस वर्ष अथवा उससे अधिक होगी, प्रभु की भेंट चढ़ाएगा।
15 जब तुम अपने प्राणों के उद्धार का शुल्क, आधा सिक्का, प्रभु की भेंट में चढ़ाओगे तब धनी व्यक्ति इससे अधिक न दे और न दरिद्र कम।
16 तू उद्धार-शुल्क इस्राएली समाज से लेना और उसे मिलन-शिविर के सेवा-कार्यों में व्यय करना, जिससे वह प्रभु के सम्मुख इस्राएली समाज के लिए एक स्मृति-चिह्न बने और तुम्हारे प्राणों के उद्धार का शुल्क हो।’
17 प्रभु मूसा से बोला,
18 ‘तू हाथ-पैर धोने के लिए पीतल का एक कण्डाल बनाना। उसकी आधार-पीठिका भी पीतल की बनाना। उसे मिलन-शिविर तथा वेदी के मध्य रखना। उसमें जल भरना।
19 हारून और उसके पुत्र उससे अपने हाथ-पैर धोएँगे।
20 जब वे मिलन-शिविर में प्रवेश करेंगे, अथवा जब वे प्रभु के लिए अग्नि में हव्य जलाने के उद्देश्य से, सेवा के अभिप्राय से वेदी के निकट आएँगे तब जल से हाथ-पैर धोएँगे, अन्यथा वे मर जाएँगे।
21 वे अपने हाथ-पैर धोएँगे अन्यथा मर जाएँगे। यह हारून एवं उसके वंश तथा उनकी पीढ़ी से पीढ़ी तक के लिए स्थायी संविधि होगी।’
22 प्रभु मूसा से बोला,
23 ‘तू उत्तम मसाले लेना: साढ़े पांच किलो द्रव रूप में गन्धरस, उसका आधा अर्थात् पौने तीन किलो सुगन्धित दारचीनी, पौने तीन किलो सुगन्धित अगर,
24 पवित्र स्थान की तौल के अनुसार साढ़े पांच किलो तेजपात तथा साढ़े सात लिटर जैतून का तेल लेना।
25 जैसे गन्धी बनाता है, वैसे तू उन वस्तुओं से पवित्र अभ्यंजन-तेल बनाना। यह पवित्र अभ्यंजन-तेल होगा।
26 तू इससे मिलन-शिविर एवं साक्षी-मंजूषा,
27 उसके सब पात्रों सहित मेज, उसके सब सामान सहित दीपाधार और धूप-वेदी,
28 उसके सब सामान सहित अग्नि-बलि की वेदी और आधार-पीठिका सहित कण्डाल का अभ्यंजन करना।
29 तू उनको पवित्र करना कि वे परम पवित्र हों। उन्हें स्पर्श करने वाले भी पवित्र हो जाएंगे।
30 तू हारून और उसके पुत्रों का अभ्यंजन करना, उन्हें पवित्र करना जिससे वे मेरे लिए पुरोहित का कार्य करें।
31 तू इस्राएली समाज से कहना, “यह तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ी में मेरे लिए पवित्र अभ्यंजन का तेल होगा।
32 यह साधारण मनुष्य के शरीर पर नहीं उण्डेला जाएगा। तुम सम्मिश्रण द्वारा इसके सदृश दूसरा तेल मत बनाना। यह पवित्र है, और तुम्हारे लिए भी पवित्र होगा।
33 जो कोई इसके सदृश सम्मिश्रण तैयार करेगा, अथवा किसी अपुरोहित को उसमें से देगा तो वह अपने समाज में से नष्ट किया जाएगा।” ’
34 प्रभु ने मूसा से कहा, ‘तू ये सुगन्धित मसाले ले: गंधरस, नखी, गंधाबिरोजा, गंध द्रव्य और स्वच्छ लोबान। (इन सब की मात्रा बराबर तौल की होगी।)
35 जैसे एक गंधी इत्र बनाता है वैसा इनसे नमक सम्मिश्रित धूप बनाना, जो शुद्ध और पवित्र हो।
36 उसमें से कुछ पीसकर बारीक करना। फिर उसमें से कुछ मिलन-शिविर में साक्षी-पत्र के सम्मुख रखना जहाँ मैं तुझसे मिला करूँगा। वह तुम्हारे लिए परम पवित्र होगी।
37 जो धूप तू बनाएगा वैसे ही सम्मिश्रण के द्वारा तुम अपने लिए मत बनाना। तू उसको अपने प्रभु के लिए पवित्र मानना।
38 जो कोई व्यक्ति सूंघने के लिए इसके सदृश धूप बनाएगा, वह अपने समाज में से नष्ट किया जाएगा।’