Luke 12
1 उस समय जब वहाँ हज़ारों लोग इकट्ठे हो गए, यहाँ तक कि वे एक दूसरे पर गिरे जा रहे थे, तो यीशु ने पहले अपने शिष्यों से कहना आरंभ किया: “फरीसियों के ख़मीर, अर्थात् पाखंड से अपने आपको बचाए रखो।
2 ऐसा कुछ ढका नहीं जो प्रकट न किया जाएगा, और न कुछ छिपा है जो जाना न जाएगा।
3 इसलिए जो तुमने अंधकार में कहा है, वह उजियाले में सुना जाएगा, और जो तुमने भीतरी कमरों में फुसफुसाकर कहा है, वह छतों पर से प्रचार किया जाएगा।
4 “अब मैं तुमसे जो मेरे मित्र हो कहता हूँ, उनसे मत डरो जो शरीर को घात करते हैं और उसके बाद कुछ और नहीं कर सकते।
5 मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें किससे डरना चाहिए; घात करने के बाद जिसके पास नरक में डालने का अधिकार है, उससे डरो; हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ, उसी से डरो।
6 क्या पाँच गौरैयाँ दो पैसे में नहीं बिकतीं? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता।
7 तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं। डरो मत, तुम बहुत सी गौरैयों से अधिक मूल्यवान हो।
8 “मैं तुमसे कहता हूँ, जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे स्वीकार करता है, मनुष्य का पुत्र भी उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा;
9 परंतु जो मनुष्यों के सामने मेरा इनकार करता है, उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इनकार किया जाएगा।
10 “जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरुद्ध कोई बात कहेगा, उसका अपराध क्षमा किया जाएगा; परंतु जो पवित्र आत्मा की निंदा करता है उसका अपराध क्षमा नहीं किया जाएगा।
11 “जब लोग तुम्हें आराधनालयों, शासकों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो तुम चिंता न करना कि अपने बचाव में कैसे और क्या उत्तर दोगे या क्या कहोगे;
12 क्योंकि पवित्र आत्मा तुम्हें उसी घड़ी सिखाएगा कि क्या कहना चाहिए।”
13 भीड़ में से किसी ने यीशु से कहा, “हे गुरु, मेरे भाई से कह कि पैतृक संपत्ति का मेरे साथ बँटवारा करे।”
14 परंतु उसने उससे कहा, “हे मनुष्य, किसने मुझे तुम्हारे ऊपर न्यायी या बँटवारा करनेवाला नियुक्त किया है?”
15 फिर उसने उनसे कहा, “ध्यान दो, हर प्रकार के लोभ से बचे रहो, क्योंकि किसी का जीवन उसकी संपत्ति के अधिक होने पर निर्भर नहीं होता।”
16 फिर यीशु ने उनसे एक दृष्टांत कहा: “किसी धनी मनुष्य के खेत में अच्छी उपज हुई।
17 तब वह अपने मन में सोचने लगा, ‘मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरे पास कोई स्थान नहीं है, जहाँ मैं अपनी उपज को इकट्ठा करूँ।’
18 फिर उसने कहा ‘मैं ऐसा करूँगा कि अपने खत्तों को तोड़कर उन्हें और भी बड़ा बनाऊँगा, और वहाँ अपना सारा अनाज और अच्छी वस्तुएँ इकट्ठा करूँगा,
19 और मैं अपने प्राण से कहूँगा, “हे प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिए बहुत सी अच्छी वस्तुएँ रखी हैं; विश्राम कर, खा, पी, और आनंद मना।” ’
20 परंतु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझसे ले लिया जाएगा; अब तूने जो तैयारी की है, वह किसकी होगी?’
21 जो अपने लिए धन बटोरता है वह ऐसा ही है और परमेश्वर के सामने धनी नहीं।”
22 फिर उसने अपने शिष्यों से कहा: “इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, अपने प्राण के लिए चिंता मत करो कि क्या खाएँगे, और न ही अपनी देह के लिए कि क्या पहनेंगे।
23 क्योंकि प्राण भोजन से और देह वस्त्र से बढ़कर है।
24 कौवों पर ध्यान दो, वे न बोते और न ही काटते हैं, न उनके गोदाम और न ही खत्ते होते हैं, फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है; तुम्हारा मूल्य तो पक्षियों से कहीं अधिक है।
25 तुममें से कौन है जो चिंता करके अपनी आयु में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
26 इसलिए यदि तुम सब से छोटा कार्य भी नहीं कर सकते, तो अन्य बातों की चिंता क्यों करते हो?
27 सौसन के फूलों पर ध्यान दो कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो परिश्रम करते हैं और न ही कातते हैं; परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान भी अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए नहीं था।
28 यदि परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है और कल भट्ठी में झोंकी जाएगी, ऐसे वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियो, वह तुम्हें इससे बढ़कर क्यों न पहनाएगा।
29 इसलिए तुम इसकी खोज में मत रहो कि क्या खाएँगे और क्या पीएँगे, और न ही संदेह करो;
30 क्योंकि संसार की जातियाँ इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं, परंतु तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इनकी आवश्यकता है।
31 परंतु परमेश्वर के राज्य की खोज करो, और ये वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी।
32 “हे छोटे झुंड, मत डर! क्योंकि तुम्हारा पिता इससे प्रसन्न है कि तुम्हें राज्य दे।
33 अपनी संपत्ति बेचकर दान कर दो; और अपने लिए ऐसे बटुए बनाओ जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग में समाप्त न होनेवाला धन इकट्ठा करो, जिसके निकट न तो चोर आता है और न कीड़ा नष्ट करता है।
34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी होगा।
35 “तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें,
36 और तुम उन मनुष्यों के समान बनो जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा करते हैं कि वह विवाह से कब लौटेगा, ताकि जब वह आकर द्वार खटखटाए तो तुरंत उसके लिए द्वार खोल दें।
37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते हुए पाए; मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपनी कमर कसकर उन्हें भोजन करने के लिए बैठाएगा और आकर उन्हें परोसेगा।
38 यदि वह रात के बारह बजे या प्रातः तीन बजे आकर उन्हें जागते हुए पाए, तो वे दास धन्य हैं।
39 परंतु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता कि चोर किस घड़ी आएगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।
40 तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं होगे, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।”
41 तब पतरस ने कहा, “प्रभु, क्या तू यह दृष्टांत हमसे कह रहा है या सब से?”
42 प्रभु ने कहा: “ऐसा विश्वासयोग्य और बुद्धिमान प्रबंधक कौन है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकरों के ऊपर नियुक्त करे कि उन्हें उचित समय पर भोजन सामग्री दे?
43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा करते हुए पाए;
44 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी नियुक्त करेगा।
45 परंतु यदि वह दास अपने मन में कहे, ‘मेरे स्वामी के आने में देर है,’ और वह सेवकों और सेविकाओं को पीटने लगे, और खा-पीकर मतवाला होने लगे,
46 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा जब वह उसकी प्रतीक्षा न करता हो और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो; और उसे वह कठोर दंड देगा और उसका भाग अविश्वासियों के साथ ठहराएगा।
47 वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानकर भी न तो तैयार रहा और न ही उसकी इच्छा के अनुसार चला, वह बहुत मार खाएगा;
48 परंतु जो न जानकर मार खाने के योग्य कार्य करे, वह कम मार खाएगा। अतः प्रत्येक जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे अधिक लिया जाएगा।
49 “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ, और मेरी बड़ी इच्छा थी कि आग सुलग गई होती।
50 परंतु मुझे एक बपतिस्मा लेना है, और जब तक वह पूरा नहीं हो जाता तब तक मैं कितना व्यथित हूँ।
51 क्या तुम सोचते हो कि मैं पृथ्वी पर मेल-मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ, नहीं, बल्कि फूट डालने आया हूँ।
52 क्योंकि अब से एक घर के पाँच जनों में फूट होगी, तीन दो के और दो तीन के विरुद्ध होंगे,
53 अर्थात् पिता पुत्र के और पुत्र पिता के, माँ बेटी के और बेटी माँ के, सास अपनी बहू के और बहू सास के विरुद्ध होगी।”
54 तब वह लोगों से भी कहने लगा: “जब तुम पश्चिम से बादल को उठता हुआ देखते हो, तो तुरंत कहते हो कि वर्षा होगी, और ऐसा ही होता है;
55 और जब दक्षिणी हवा चलती है तो तुम कहते हो कि गर्मी पड़ेगी, और ऐसा ही होता है।
56 हे पाखंडियो, तुम धरती और आकाश के लक्षण परखना जानते हो, परंतु इस समय को परखना क्यों नहीं जानते?
57 “तुम अपने आप ही निर्णय क्यों नहीं करते कि उचित क्या है?
58 अतः जब तू अपने विरोधी के साथ अधिकारी के सामने जाता हो, तो मार्ग में ही उससे छूटने का यत्न कर, कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे खींचकर न्यायाधीश के पास ले जाए, और न्यायाधीश तुझे दरोगा को सौंप दे, और दरोगा तुझे बंदीगृह में डाल दे।
59 मैं तुझसे कहता हूँ, जब तक तू एक-एक पैसा चुका न देगा, वहाँ से कभी छूट न पाएगा।”