James 3
1 हे मेरे भाइयो, तुममें से बहुत लोग शिक्षक न बनें, क्योंकि जानते हो कि हम शिक्षक और कठोर दंड पाएँगे।
2 क्योंकि हम सब बहुत सी बातों में चूक जाते हैं। यदि कोई अपनी बातों में नहीं चूकता तो वह सिद्ध मनुष्य है, और अपनी सारी देह पर भी नियंत्रण रख सकता है।
3 यदि हम घोड़ों को अपने वश में करने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाएँ, तो हम उनकी सारी देह को घुमा सकते हैं।
4 देखो, जहाज़ भी, यद्यपि विशाल होते हैं और तेज़ हवाओं द्वारा चलाए जाते हैं, फिर भी एक छोटी सी पतवार से नाविक उन्हें जहाँ चाहता है घुमाता है।
5 इसी प्रकार जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी-बड़ी डींगे मारती है। देखो, एक थोड़ी सी आग कितने बड़े जंगल को जला देती है!
6 जीभ एक आग है। जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक संसार है, जो सारी देह को कलंकित करती और जीवन की गति में आग लगा देती है, तथा स्वयं नरक की आग से जलाई जाती है।
7 क्योंकि हर प्रकार के वन-पशु और पक्षी, रेंगनेवाले जंतु और समुद्री जीव मनुष्यजाति के वश में किए जा सकते हैं और वश में कर भी दिए गए हैं,
8 परंतु कोई भी मनुष्य जीभ को वश में नहीं कर सकता। यह ऐसी बुराई है जो शांत नहीं रहती और प्राणनाशक विष से भरी है।
9 इसी से हम प्रभु और पिता को धन्य कहते हैं, और इसी से हम मनुष्यों को शाप देते हैं जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं;
10 एक ही मुँह से आशिष और शाप दोनों निकलते हैं। हे मेरे भाइयो! ऐसा नहीं होना चाहिए।
11 क्या सोते के एक ही मुँह से मीठा और खारा पानी निकलता है?
12 हे मेरे भाइयो, क्या अंजीर के पेड़ पर जैतून या दाखलता पर अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे पानी के सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
13 तुममें बुद्धिमान और समझदार कौन है? यदि कोई है तो वह अपने कार्यों को अच्छे आचरण के द्वारा उस नम्रता में प्रकट करे जो ज्ञान से उत्पन्न होती है।
14 परंतु यदि तुम्हारे मन में कटु ईर्ष्या और स्वार्थ भरा है, तो घमंड न करो और न ही सत्य के विरोध में झूठ बोलो।
15 यह वह ज्ञान नहीं जो ऊपर से आता है, बल्कि सांसारिक, स्वाभाविक, और शैतानी है;
16 क्योंकि जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ है, वहाँ बखेड़ा और हर प्रकार की बुराई होती है।
17 परंतु जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहले पवित्र है, फिर शांतिप्रिय, विनम्र, विचारशील, दया और अच्छे फलों से भरा हुआ, पक्षपात-रहित और निष्कपट है;
18 और मेल करानेवाले धार्मिकता का फल मेल-मिलाप के साथ बोते हैं।