Hebrews 11
1 अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।
2 इसी के द्वारा पूर्वजों को अच्छी गवाही प्राप्त हुई।
3 विश्वास ही से हम समझते हैं कि परमेश्वर के वचन के द्वारा सारी सृष्टि की रचना ऐसे हुई कि जो वस्तुएँ दिखाई देती हैं वे उनसे रची गईं जो दिखाई नहीं देतीं।
4 विश्वास ही से हाबिल ने परमेश्वर को कैन से उत्तम बलिदान चढ़ाया, और उसी के द्वारा वह धर्मी समझा गया, क्योंकि परमेश्वर ने उसकी भेंटों के विषय में गवाही दी थी। यद्यपि हाबिल मर गया, फिर भी विश्वास के द्वारा वह अब तक बोलता है।
5 विश्वास ही से हनोक को उठा लिया गया कि वह मृत्यु को न देखे; उसका कुछ पता न चला, क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया था। उठा लिए जाने से पहले उसके लिए यह गवाही दी गई कि परमेश्वर उससे प्रसन्न था।
6 विश्वास के बिना उसे प्रसन्न करना असंभव है, क्योंकि जो कोई परमेश्वर के पास आता है उसके लिए यह विश्वास करना आवश्यक है कि परमेश्वर है; और जो उसे खोजते हैं उनको वह प्रतिफल देता है।
7 विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में, जो दिखाई नहीं देती थीं, चेतावनी पाकर भक्तिपूर्ण भय के साथ अपने परिवार के बचाव के लिए जहाज़ बनाया, जिसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया, और उस धार्मिकता का उत्तराधिकारी हुआ जो विश्वास के अनुसार है।
8 विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो वह आज्ञा मानकर एक ऐसे स्थान को निकल गया जो उसे उत्तराधिकार में मिलने वाला था। वह नहीं जानता था कि कहाँ जा रहा है, फिर भी निकल गया।
9 विश्वास ही से उसने प्रतिज्ञा के देश में परदेशी के समान वास किया, और इसहाक तथा याकूब के साथ जो उसी प्रतिज्ञा के सह-उत्तराधिकारी थे, तंबुओं में रहा।
10 वह उस पक्की नींववाले नगर की प्रतीक्षा में था जिसका रचनाकार और बनानेवाला परमेश्वर है।
11 विश्वास ही से सारा ने, जो स्वयं एक बाँझ थी, आयु ढल जाने पर भी गर्भधारण करने की शक्ति पाई, क्योंकि उसने प्रतिज्ञा करनेवाले को विश्वासयोग्य माना।
12 इसलिए एक ही मनुष्य से, जो मरा हुआ सा था, आकाश के तारों और समुद्र तट की बालू के समान असंख्य संतान उत्पन्न हुई।
13 ये सब विश्वास की दशा में मरे। इन्होंने प्रतिज्ञा की गई वस्तुओं को प्राप्त नहीं किया पर उन्हें दूर ही से देखकर उनका स्वागत किया और यह मान लिया कि हम पृथ्वी पर परदेशी और यात्री हैं।
14 जो ऐसा कहते हैं वे स्पष्ट कर देते हैं कि वे निज देश की खोज में हैं।
15 वे जिस देश से निकले थे, यदि उसी को स्मरण करते रहते तो उनके पास लौट जाने का अवसर होता;
16 परंतु वे एक उत्तम अर्थात् स्वर्गीय देश की लालसा करते हैं। अतः परमेश्वर, उनका परमेश्वर कहलाने से लज्जित नहीं होता। उसने तो उनके लिए एक नगर तैयार किया है।
17 विश्वास ही से अब्राहम ने परखे जाने के समय इसहाक को बलि चढ़ाया। जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थीं वही अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने लगा,
18 जिसके विषय में उससे कहा गया था: इसहाक से तेरा वंश कहलाएगा।
19 उसने समझ लिया था कि परमेश्वर मृतकों में से भी जिलाने में सामर्थी है, और उसने दृष्टांत के रूप में इसहाक को फिर से प्राप्त किया।
20 विश्वास ही से इसहाक ने याकूब और एसाव को आने वाली बातों के विषय में आशिष दी।
21 विश्वास ही से याकूब ने अपनी मृत्यु के समय यूसुफ के प्रत्येक पुत्र को आशिष दी और अपनी लाठी के सिरे का सहारा लेकर परमेश्वर को दंडवत् किया।
22 विश्वास ही से यूसुफ ने अपनी मृत्यु के समय इस्राएल की संतान के मिस्र से निकल जाने का उल्लेख किया, और अपनी अस्थियों के विषय में आज्ञा दी।
23 विश्वास ही से मूसा के माता-पिता ने उसे जन्म के बाद तीन महीने तक छिपाए रखा, क्योंकि उन्होंने देखा कि बालक सुंदर है; और वे राजा की आज्ञा से न डरे।
24 विश्वास ही से मूसा ने बड़े होने पर फ़िरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इनकार कर दिया,
25 और पाप में थोड़े समय के सुख भोगने की अपेक्षा उसने परमेश्वर के लोगों के साथ कष्ट सहने को चुना।
26 उसने मिस्र के धन के भंडारों की अपेक्षा मसीह के कारण निंदित होना उत्तम समझा, क्योंकि वह प्रतिफल की ओर दृष्टि लगाए हुए था।
27 विश्वास ही से उसने मिस्र को छोड़ दिया और राजा के क्रोध से नहीं डरा, क्योंकि उस अदृश्य को मानो देखते हुए वह दृढ़ रहा।
28 विश्वास ही से उसने फसह के पर्व की स्थापना की और लहू के छिड़काव की विधि को माना, ताकि पहलौठों का नाश करनेवाला उनमें से किसी को न छुए।
29 विश्वास ही से उन्होंने लाल समुद्र को ऐसे पार किया, मानो वे सूखी भूमि पर हों; और जब मिस्रियों ने वैसा ही करने का प्रयास किया तो वे डूब गए।
30 विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह भी ढह गई जब वे सात दिन तक उसकी परिक्रमा कर चुके।
31 विश्वास ही से राहब वेश्या आज्ञा न माननेवालों के साथ नाश नहीं हुई क्योंकि उसने गुप्तचरों का स्वागत किया था।
32 इससे अधिक और क्या कहूँ? क्योंकि मेरे पास समय नहीं है कि मैं गिदोन, बाराक, शिमशोन, यिफतह, दाऊद, शमूएल और भविष्यवक्ताओं का वर्णन करूँ,
33 जिन्होंने विश्वास ही से राज्यों पर विजय प्राप्त की, धार्मिकता के कार्य किए, प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ प्राप्त कीं, सिंहों के मुँह बंद किए,
34 धधकती आग को शांत किया, तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवंत हुए, युद्ध में शक्तिशाली बने और विदेशी सेनाओं को खदेड़ दिया।
35 स्त्रियों ने अपने मृतकों को फिर जीवित पाया। कितनों को यातनाएँ दी गईं परंतु उन्होंने छुटकारा न चाहा, ताकि वे उत्तम पुनरुत्थान को प्राप्त करें।
36 अन्य कई लोग उपहास और कोड़ों की मार सहने, और यहाँ तक कि बेड़ियों में जकड़े जाने और बंदीगृह में डाले जाने के द्वारा परखे गए।
37 उन पर पथराव किया गया, उन्हें आरे से दो टुकड़ों में चीरा गया, उन्हें तलवार से मार डाला गया; वे घटी, कष्टों और दुर्व्यवहार को सहते हुए भेड़ और बकरियों की खाल पहने इधर-उधर भटकते रहे,
38 संसार उनके योग्य नहीं था। वे जंगलों, पहाड़ों, गुफाओं और पृथ्वी की दरारों में भटकते रहे।
39 यद्यपि विश्वास ही के द्वारा इन सब की गवाही दी गई, फिर भी उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुओं को प्राप्त न किया;
40 क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिए पहले से एक उत्तम बात ठहराई थी कि वे हमारे बिना सिद्धता को प्राप्त न करें।