Bible

Transform

Your Worship Experience with Great Ease

Try RisenMedia.io Today!

Click Here

Acts 22

:
Hindi - HSB
1 “हे भाइयो और बुज़ुर्गो, अब अपने सामने मेरा प्रत्युत्तर सुनो।”
2 यह सुनकर कि वह उन्हें इब्रानी भाषा में संबोधित कर रहा है, वे और भी शांत हो गए। तब उसने कहा,
3 “मैं किलिकिया के तरसुस में जन्मा एक यहूदी मनुष्य हूँ, परंतु मेरा पालन-पोषण इसी नगर में हुआ और गमलीएल के चरणों में मुझे पूर्वजों की व्यवस्था को खराई से सिखाया गया। मैं परमेश्‍वर के लिए बड़ा उत्साही था जैसे आज तुम सब हो।
4 मैंने इस ‘मार्ग’ के पुरुषों और स्‍त्रियों दोनों को बाँध बाँधकर बंदीगृह में डलवाया और उन्हें मृत्यु तक सताया;
5 महायाजक और सब धर्मवृद्ध भी इस बात के साक्षी हैं। मैं उनसे भाइयों के लिए पत्र भी प्राप्‍त करके दमिश्क की ओर जा रहा था कि जो वहाँ हैं उन्हें भी बाँधकर यरूशलेम में ले आऊँ ताकि उन्हें दंड मिले।
6 “फिर ऐसा हुआ कि लगभग दोपहर के समय जब मैं चलते-चलते दमिश्क के निकट पहुँचा तो अचानक आकाश से एक बड़ी ज्योति मेरे चारों ओर चमकी,
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा और एक आवाज़ मुझसे यह कहते हुए सुनाई दी, ‘शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’
8 इस पर मैंने पूछा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने मुझसे कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ जिसे तू सताता है।’
9 जो मेरे साथ थे उन्होंने ज्योति तो देखी परंतु मुझसे जो बात कर रहा था उसकी आवाज़ सुनी।
10 तब मैंने कहा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ और प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठ और दमिश्क में जा, और वहाँ तुझे उन सब बातों के विषय में बता दिया जाएगा जिन्हें करने के लिए तुझे ठहराया गया है।’
11 उस ज्योति के तेज के कारण मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए मैं अपने साथियों का हाथ पकड़कर दमिश्क तक आया।
12 तब हनन्याह नामक एक मनुष्य, जो व्यवस्था के अनुसार भक्‍त था और वहाँ रहनेवाले सब यहूदियों में सुनाम था,
13 मेरे पास आया और पास खड़े होकर मुझसे कहा, ‘हे भाई शाऊल, देखने लग।’ और मैंने उसी घड़ी दृष्‍टि पाकर उसे देखा।
14 उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्‍वर ने तुझे पहले से चुन लिया है कि तू उसकी इच्छा को जाने और उस धर्मी को देखे और उसके मुँह से बातें सुने,
15 क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का साक्षी होगा जो तूने देखी और सुनी हैं।
16 अब देर क्यों करता है? उठ और बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।’
17 “फिर ऐसा हुआ कि जब मैं यरूशलेम को लौटकर मंदिर-परिसर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया
18 और उसे देखा कि वह मुझसे कह रहा है, ‘जल्दी कर और यरूशलेम से तुरंत निकल जा, क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी साक्षी को ग्रहण नहीं करेंगे।’
19 तब मैंने कहा, ‘प्रभु, वे स्वयं जानते हैं कि मैं आराधनालयों में जा जाकर तुझ पर विश्‍वास करनेवालों को बंदी बनाता और पिटवाता था;
20 और जब तेरे साक्षी स्तिफनुस का लहू बहाया जा रहा था, तो मैं स्वयं भी वहाँ खड़ा था और उसमें सहमत था और उसकी हत्या करनेवालों के वस्‍त्रों की रखवाली कर रहा था।’
21 तब प्रभु ने मुझसे कहा, ‘तू जा, क्योंकि मैं तुझे गैरयहूदियों के पास दूर-दूर भेजूँगा।’”
22 इस बात तक तो वे उसकी सुनते रहे; फिर वे ऊँची आवाज़ से चिल्‍लाने लगे, “ऐसे मनुष्य को पृथ्वी से मिटा दो, क्योंकि उसका जीवित रहना ठीक नहीं।”
23 जब वे चिल्‍ला चिल्‍लाकर अपने वस्‍त्रों को फेंकने और हवा में धूल उड़ाने लगे,
24 तो सेनापति ने उसे छावनी में ले जाने का आदेश दिया, और कहा कि कोड़े मारकर उसकी जाँच-पड़ताल की जाए ताकि पता चले कि लोग उस पर क्यों ऐसे चिल्‍ला रहे हैं।
25 जब उन्होंने उसे कोड़े लगाने के लिए चमड़े की पट्टियों से बाँधा तो पौलुस ने पास खड़े शतपति से कहा, “क्या तुम्हारे लिए एक रोमी मनुष्य को बिना मुकदमे के कोड़े मारना उचित है?”
26 यह सुनकर शतपति ने सेनापति के पास जाकर कहा, “तू क्या करने वाला है? यह मनुष्य तो रोमी है।”
27 इस पर सेनापति ने उसके पास जाकर उससे कहा, “मुझे बता, क्या तू रोमी है?” उसने कहा, “हाँ।”
28 सेनापति ने कहा, “मैंने यह नागरिकता बहुत रुपए देकर खरीदी है।” पौलुस ने कहा, “पर मैं तो जन्म से रोमी हूँ।”
29 तब जो लोग उसकी जाँच-पड़ताल करने पर थे, वे तुरंत उसके पास से हट गए; और सेनापति भी यह जानकर कि वह एक रोमी है, डर गया, क्योंकि उसी ने उसे बंदी बनाया था।
30 अगले दिन सही बात जानने की इच्छा से कि यहूदियों ने उस पर क्यों आरोप लगाया है, सेनापति ने उसके बंधन खोल दिए, और मुख्य याजकों तथा सारी महासभा को एकत्रित होने का आदेश दिया, और पौलुस को ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।