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2 Thessalonians 2

:
Hindi - HSB
1 हे भाइयो, अब हमारे प्रभु यीशु मसीह के आगमन और उसके साथ हमारे एकत्र होने के विषय में हम तुमसे विनती करते हैं,
2 कि तुम किसी आत्मा, या वचन, या पत्र के द्वारा जो मानो हमारी ओर से हो, और यह प्रकट करता हो कि प्रभु का दिन गया है, अपने मन में शीघ्र विचलित होना और ही घबराना।
3 कोई तुम्हें किसी भी प्रकार से धोखा दे सके, क्योंकि वह दिन तब तक नहीं आएगा जब तक कि पहले धर्म का त्याग हो और अधर्म का पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रकट हो जाए,
4 जो प्रत्येक तथाकथित ईश्‍वर या आराध्य वस्तु का विरोध करता है और अपने आपको उनसे ऊँचा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्‍वर के मंदिर में बैठकर अपने आपको परमेश्‍वर घोषित करता है।
5 क्या तुम्हें स्मरण नहीं कि जब मैं तुम्हारे साथ था तो तुम्हें ये बातें बताया करता था?
6 और तुम जानते हो कि अपने निर्धारित समय में प्रकट होने के लिए अभी उसे क्या रोके हुए है।
7 क्योंकि अधर्म का भेद अब भी क्रियाशील है, और जब तक रोकनेवाला मार्ग से हटा दिया जाए तब तक वह उसे रोके रखेगा।
8 तब वह अधर्मी प्रकट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा और अपने आगमन के तेज से भस्म कर देगा।
9 उस अधर्मी का आना नाश होनेवालों के लिए शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की शक्‍ति और चिह्‍नों और झूठे आश्‍चर्यकर्मों,
10 और अधर्म के हर प्रकार के धोखे के साथ होगा, क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिससे उनका उद्धार होता।
11 इस कारण परमेश्‍वर उनमें एक बड़े भ्रम को भेजेगा कि वे झूठ पर विश्‍वास करें,
12 ताकि वे सब दंड पाएँ जिन्होंने सत्य पर विश्‍वास नहीं किया परंतु अधर्म से प्रसन्‍न हुए।
13 हे भाइयो, प्रभु के प्रियो, हमें तुम्हारे विषय में परमेश्‍वर का सदैव धन्यवाद करना चाहिए, क्योंकि परमेश्‍वर ने आरंभ से ही तुम्हें चुन लिया है कि तुम आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर और सत्य पर विश्‍वास करके उद्धार पाओ।
14 इसी के लिए उसने हमारे सुसमाचार के द्वारा तुम्हें बुलाया कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्‍त करो।
15 अतः हे भाइयो, स्थिर रहो और उन परंपराओं को थामे रहो जिनकी शिक्षा तुम्हें वचन या पत्र के द्वारा हमसे मिली थी।
16 अब स्वयं हमारा प्रभु यीशु मसीह और हमारा परमेश्‍वर पिता, जिसने हमसे प्रेम रखा और अनुग्रह के द्वारा हमें अनंत शांति और उत्तम आशा दी है,
17 तुम्हारे मनों को प्रोत्साहित करे और हर भले कार्य और वचन में दृढ़ करे।