1 John 3
1 देखो, पिता ने हमसे कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की संतान कहलाएँ, और हम हैं भी। इस कारण संसार हमें नहीं जानता क्योंकि संसार ने उसे भी नहीं जाना।
2 प्रियो, हम अब परमेश्वर की संतान हैं, परंतु अभी तक यह प्रकट नहीं हुआ कि हम क्या होंगे। हम यह जानते हैं कि जब वह प्रकट होगा तो हम उसके समान हो जाएँगे, क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे जैसा वह है।
3 प्रत्येक जो उस पर यह आशा रखता है, अपने आपको वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है।
4 प्रत्येक जो पाप करता है वह व्यवस्था का उल्लंघन करता है, क्योंकि पाप तो व्यवस्था का उल्लंघन है।
5 तुम जानते हो कि वह इसलिए प्रकट हुआ कि हमारे पापों को उठा ले; और उसमें कोई पाप नहीं।
6 प्रत्येक जो उसमें बना रहता है, वह पाप में नहीं चलता । प्रत्येक जो पाप में चलता है, उसने न तो उसे देखा है और न उसे जाना है।
7 बच्चो, कोई तुम्हें भरमा न दे। जो धार्मिकता के कार्य करता है वह वैसा ही धर्मी है, जैसा वह धर्मी है।
8 जो पाप करता है वह शैतान से है क्योंकि शैतान आरंभ ही से पाप करता आया है। परमेश्वर का पुत्र इसलिए प्रकट हुआ कि वह शैतान के कार्यों का नाश करे।
9 प्रत्येक जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है वह पाप नहीं करता, क्योंकि परमेश्वर का बीज उसमें बना रहता है; और वह पाप में नहीं चल सकता, क्योंकि वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है।
10 इसी से परमेश्वर की संतान और शैतान की संतान की पहचान होती है; प्रत्येक जो धार्मिकता पर नहीं चलता, वह परमेश्वर से नहीं, और न ही वह जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता।
11 जो संदेश तुमने आरंभ से सुना वह यह है कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें।
12 कैन के समान न हों जो उस दुष्ट से था और जिसने अपने भाई का वध किया। उसने किस लिए उसका वध किया? इसलिए कि उसके कार्य बुरे, और उसके भाई के कार्य धार्मिकता के थे।
13 भाइयो, यदि यह संसार तुमसे घृणा करता है तो आश्चर्य न करना।
14 हम जानते हैं कि हम मृत्यु में से निकलकर जीवन में प्रवेश कर चुके हैं क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं। जो प्रेम नहीं रखता वह मृत्यु में बना रहता है।
15 प्रत्येक जो अपने भाई से घृणा करता है, वह हत्यारा है और तुम जानते हो कि किसी भी हत्यारे में अनंत जीवन वास नहीं करता।
16 हमने प्रेम को इसी से जाना है, कि उसने हमारे लिए अपना प्राण दे दिया; अतः हमें भी भाइयों के लिए अपना प्राण देना चाहिए।
17 परंतु जिसके पास सांसारिक धन-संपत्ति है और अपने भाई को आवश्यकता में देखकर उसके प्रति अपना हृदय कठोर कर लेता है, तो परमेश्वर का प्रेम उसमें कैसे बना रहेगा?
18 बच्चो, हम अपने शब्द या जीभ से ही नहीं, बल्कि कार्य और सच्चाई के द्वारा भी प्रेम रखें।
19 इसी से हम जानेंगे कि हम सत्य के हैं और यदि हमारा मन हमें दोषी ठहराएगा तो हम उसके सामने अपने-अपने मन को आश्वस्त कर सकेंगे,
20 क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से कहीं अधिक महान है और वह सब कुछ जानता है।
21 प्रियो, यदि हमारा मन हमें दोषी न ठहराए, तो परमेश्वर के सामने हमें साहस होता है,
22 और जो कुछ हम माँगते हैं, वह उससे पाते हैं, क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं और वही कार्य करते हैं जिससे वह प्रसन्न होता है।
23 उसकी आज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और जैसे उसने हमें आज्ञा दी, हम एक दूसरे से प्रेम रखें।
24 जो उसकी आज्ञाओं का पालन करता है वह परमेश्वर में बना रहता है और परमेश्वर उसमें; और जो आत्मा उसने हमें दिया है उसी के द्वारा हम जान जाते हैं कि वह हममें बना रहता है।