Bible

Power Up

Your Services with User-Friendly Software

Try RisenMedia.io Today!

Click Here

1 Corinthians 7

:
Hindi - HSB
1 अब उन बातों के विषय में जो तुमने लिखी हैं: पुरुष के लिए अच्छा यह है कि वह स्‍त्री को छुए।
2 परंतु व्यभिचार से बचने के लिए प्रत्येक पुरुष की अपनी पत्‍नी हो, और प्रत्येक स्‍त्री का अपना पति।
3 पति अपनी पत्‍नी के प्रति और इसी प्रकार पत्‍नी भी अपने पति के प्रति कर्तव्य निभाए।
4 पत्‍नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं, परंतु उसके पति को है। इसी प्रकार पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परंतु उसकी पत्‍नी को है।
5 एक दूसरे को इससे वंचित करो; केवल कुछ समय के लिए आपसी सहमति से अलग रहो कि तुम्हें प्रार्थना के लिए अवकाश मिले और फिर एक साथ हो जाओ, कहीं ऐसा हो कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परीक्षा में डाल दे।
6 परंतु यह जो मैं कहता हूँ वह अनुमति है, आज्ञा नहीं।
7 मैं तो चाहता हूँ कि सब मनुष्य वैसे हों जैसा मैं हूँ; परंतु प्रत्येक को परमेश्‍वर से अपना-अपना वरदान मिला है, किसी को एक प्रकार का तो किसी को दूसरे प्रकार का।
8 परंतु मैं अविवाहितों और विधवाओं से कहता हूँ: यदि वे वैसे ही रहें जैसा मैं हूँ, तो उनके लिए अच्छा है।
9 परंतु यदि उनमें संयम हो तो वे विवाह कर लें, क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से अच्छा है।
10 अब जो विवाहित हैं उनको मैं आज्ञा देता हूँ, मैं नहीं बल्कि प्रभु: पत्‍नी अपने पति से अलग हो,
11 और यदि वह अलग हो, तो बिना विवाह किए रहे, या अपने पति के साथ फिर से मेल कर ले; और पति भी अपनी पत्‍नी को छोड़े।
12 बाकी लोगों से प्रभु नहीं, बल्कि मैं कहता हूँ: यदि किसी भाई की पत्‍नी अविश्‍वासी हो, और उसके साथ रहने के लिए सहमत हो, तो वह उसे छोड़े;
13 और यदि किसी स्‍त्री का पति अविश्‍वासी हो, और उसके साथ रहने के लिए सहमत हो, तो वह अपने पति को छोड़े।
14 क्योंकि अविश्‍वासी पति अपनी पत्‍नी के कारण पवित्र ठहरता है, और अविश्‍वासी पत्‍नी अपने पति के कारण पवित्र ठहरती है; अन्यथा तुम्हारे बच्‍चे अशुद्ध होते, परंतु वे तो पवित्र हैं।
15 परंतु यदि अविश्‍वासी अलग होता है, तो उसे अलग होने दो; ऐसी स्थिति में कोई भाई या बहन बंधन में नहीं है। परमेश्‍वर ने हमें शांतिपूर्ण जीवन के लिए बुलाया है।
16 क्योंकि हे स्‍त्री, तू कैसे जानती है कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? या हे पुरुष, तू कैसे जानता है कि तू अपनी पत्‍नी का उद्धार करा लेगा?
17 प्रभु ने जैसा प्रत्येक को दिया है, और जैसा परमेश्‍वर ने प्रत्येक को बुलाया है, वह वैसा ही चले। मैं सब कलीसियाओं में यही आज्ञा देता हूँ।
18 क्या कोई ख़तने की दशा में बुलाया गया है? वह ख़तनारहित बने। क्या कोई ख़तनारहित दशा में बुलाया गया है? वह ख़तना कराए।
19 तो ख़तना कुछ है, और ही ख़तनारहित, बल्कि परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है।
20 प्रत्येक जन जिस दशा में बुलाया गया हो उसी में बना रहे।
21 क्या तू दास की दशा में बुलाया गया था? तू इसकी चिंता मत कर; बल्कि यदि तू स्वतंत्र हो सकता है, तो इस अवसर का अवश्य लाभ उठा।
22 क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है वह प्रभु का स्वतंत्र जन है; वैसे ही जो स्वतंत्र दशा में बुलाया गया है वह मसीह का दास है।
23 तुम मूल्य चुकाकर खरीदे गए हो; मनुष्यों के दास मत बनो।
24 हे भाइयो, प्रत्येक जन जिस दशा में बुलाया गया हो उसी में परमेश्‍वर के साथ बना रहे।
25 अब कुँवारियों के विषय में मेरे पास प्रभु से कोई आज्ञा नहीं है, परंतु प्रभु की दया से विश्‍वासयोग्य होने के कारण मैं अपनी सलाह देता हूँ।
26 मेरे विचार से वर्तमान संकट के कारण यही अच्छा है कि मनुष्य जैसा है वैसा ही रहे।
27 क्या तेरे पास पत्‍नी है? तो अलग होने का प्रयत्‍न कर। क्या तेरे पास पत्‍नी नहीं? तो पत्‍नी की खोज कर।
28 परंतु यदि तू विवाह कर भी लेता है, तो पाप नहीं करता; और यदि कुँवारी विवाह करती है, तो पाप नहीं करती। परंतु ऐसों को शारीरिक जीवन में कष्‍ट होगा, और मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।
29 हे भाइयो, मैं यह कहता हूँ कि समय कम किया गया है। इसलिए अब से जिनके पास पत्‍नी है, वे ऐसे रहें मानो उनकी पत्‍नी नहीं है,
30 और रोनेवाले ऐसे हों मानो रोते नहीं, और आनंद करनेवाले ऐसे हों मानो आनंद नहीं करते, और खरीदनेवाले ऐसे हों मानो उनके पास कुछ नहीं,
31 और संसार का उपयोग करनेवाले ऐसे हों जैसे उसमें लिप्‍त नहीं; क्योंकि इस संसार का स्वरूप बदलता जाता है।
32 मैं चाहता हूँ कि तुम चिंतामुक्‍त रहो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिंता करता है कि वह प्रभु को कैसे प्रसन्‍न रखे।
33 परंतु विवाहित पुरुष सांसारिक बातों की चिंता करता है कि वह अपनी पत्‍नी को कैसे प्रसन्‍न रखे,
34 और उसका ध्यान बँट जाता है। अविवाहिता या कुँवारी प्रभु की बातों की चिंता करती है, ताकि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो। परंतु विवाहिता संसार की बातों की चिंता करती है कि वह अपने पति को कैसे प्रसन्‍न रखे।
35 मैं यह तुम्हारे ही लाभ के लिए कहता हूँ—तुम्हें बंधन में बाँधने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि जो शोभा देता है वही हो और तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।
36 यदि कोई सोचता है कि वह अपनी उस कुँवारी कन्या के प्रति अन्याय कर रहा है, जिसकी विवाह की आयु निकल रही है और आवश्यकता भी है, तो जैसा वह चाहता है वैसा ही करे। वह उसका विवाह कर दे, यह पाप नहीं है।
37 परंतु वह जो विवश हुए बिना अपने मन में दृढ़ रहता है और अपनी इच्छा पूरी करने का अधिकार रखता है और जिसने अपने मन में अपनी कुँवारी कन्या को ऐसे ही रखने का निर्णय ले लिया हो, वह अच्छा ही करता है।
38 इसलिए जो अपनी कुँवारी कन्या को विवाह में देता है, वह अच्छा करता है, और जो विवाह में नहीं देता, वह और भी अच्छा करता है।
39 जब तक किसी स्‍त्री का पति जीवित है तब तक वह उसी से बँधी हुई है; परंतु यदि उसका पति मर जाए तो वह स्वतंत्र है कि जिससे चाहे विवाह कर ले, परंतु केवल प्रभु में।
40 परंतु मेरे विचार से जैसी वह है, यदि वैसी ही रहे तो और भी धन्य है; और मैं समझता हूँ कि मुझमें भी परमेश्‍वर का आत्मा है।