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Psalms 39

:
Hindi - HINOVBSI
1 मैं ने कहा, “मैं अपनी चालचलन में चौकसी करूँगा, ताकि मेरी जीभ से पाप हो; जब तक दुष्‍ट मेरे सामने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुँह बन्द किए रहूँगा।”
2 मैं मौन धारण कर गूँगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई,
3 मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपनी जीभ से बोल उठा:
4 “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ!
5 देख, तू ने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्‍टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे भी स्थिर क्यों हों तौभी व्यर्थ ठहरे हैं।
6 सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा!
7 “अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूँ? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है।
8 मुझे मेरे सब अपराधों के बन्धन से छुड़ा ले। मूढ़ मेरी निन्दा करने पाए।
9 मैं गूँगा बन गया और मुँह खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है।
10 तू ने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझ से दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तेरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूँ।
11 जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण डाँट– डपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सुन्दरता को पतंगे के समान नष्‍ट करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।
12 “हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दोहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शांत रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ, और अपने सब पुरखाओं के समान परदेशी हूँ।
13 आह! इस से पहले कि मैं यहाँ से चला जाऊँ और रह जाऊँ, मुझे बचा ले जिससे मैं प्रदीप्‍त जीवन प्राप्‍त करूँ।”