Psalms 102
1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुँचे!
2 मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूँ, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले।
3 क्योंकि मेरे दिन धूएँ के समान उड़े जाते हैं, और मेरी हड्डियाँ लुकटी के समान जल गई हैं।
4 मेरा मन झुलसी हुई घास के समान सूख गया है; और मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूँ।
5 कराहते कराहते मेरा चमड़ा हड्डियों में सट गया है।
6 मैं जंगल के धनेस के समान हो गया हूँ, मैं उजड़े स्थानों के उल्लू के समान बन गया हूँ।
7 मैं पड़ा पड़ा जागता रहता हूँ और गौरे के समान हो गया हूँ जो छत के ऊपर अकेला बैठता है।
8 मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, जो मेरे विरोध की धुन में बावले हो रहे हैं, वे मेरा नाम लेकर शपथ खाते हैं।
9 क्योंकि मैं ने रोटी के समान राख खाई और आँसू मिलाकर पानी पीता हूँ।
10 यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, क्योंकि तू ने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है।
11 मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं आप घास के समान सूख चला हूँ।
12 परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा।
13 तू उठकर सिय्योन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का ठहराया हुआ समय आ पहुँचा है।
14 क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरों को चाहते हैं, और उसकी धूल पर तरस खाते हैं।
15 इसलिये जाति–जाति यहोवा के नाम का भय मानेंगी, और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे।
16 क्योंकि यहोवा ने सिय्योन को फिर बसाया है, और वह अपनी महिमा के साथ दिखाई देता है;
17 वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुँह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता।
18 यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिये लिखी जाएगी, और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही याह की स्तुति करेगी।
19 क्योंकि यहोवा ने अपने ऊँचे और पवित्रस्थान से दृष्टि करके स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है,
20 ताकि बन्दियों का कराहना सुने, और घात होनेवालों के बन्धन खोले;
21 और सिय्योन में यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए, और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाए;
22 यह उस समय होगा जब देश देश, और राज्य राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठा होंगे।
23 उसने मुझे जीवन यात्रा में दु:ख देकर, मेरे बल और आयु को घटाया।
24 मैं ने कहा, “हे मेरे ईश्वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, तेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे!”
25 आदि में तू ने पृथ्वी की नींव डाली, और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है।
26 वह तो नष्ट होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपड़े के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्र के समान बदलेगा, और वह बदल जाएगा;
27 परन्तु तू वही है, और तेरे वर्षों का अन्त नहीं होने का।
28 तेरे दासों की सन्तान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे सामने स्थिर रहेगा।