Genesis 19
1 साँझ को वे दो दूत सदोम के पास आए; और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा था। उन को देखकर वह उनसे भेंट करने के लिये उठा, और मुँह के बल झुककर दण्डवत् कर कहा,
2 “हे मेरे प्रभुओ, अपने दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्राम कीजिए, और अपने पाँव धोइये, फिर भोर को उठकर अपने मार्ग पर जाइए।” उन्होंने कहा, “नहीं, हम चौक ही में रात बिताएँगे।”
3 पर उसने उनसे बहुत विनती करके उन्हें मनाया; इसलिये वे उसके साथ चलकर उसके घर में आए; और उसने उनके लिये भोजन तैयार किया, और बिना खमीर की रोटियाँ बनाकर उनको खिलाईं।
4 उनके सो जाने से पहले, सदोम नगर के पुरुषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन् चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया;
5 और लूत को पुकारकर कहने लगे, “जो पुरुष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहाँ हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ कि हम उनसे भोग करें।”
6 तब लूत उनके पास द्वार के बाहर गया, और किवाड़ को अपने पीछे बन्द करके कहा,
7 “हे मेरे भाइयो, ऐसी बुराई न करो।
8 सुनो, मेरी दो बेटियाँ हैं जिन्होंने अब तक पुरुष का मुँह नहीं देखा; इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊँ, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उनसे करो; पर इन पुरुषों से कुछ न करो; क्योंकि ये मेरी छत तले आए हैं।”
9 उन्होंने कहा, “हट जा!” फिर वे कहने लगे, “तू एक परदेशी होकर यहाँ रहने के लिये आया, पर अब न्यायी भी बन बैठा है; इसलिये अब हम उनसे भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे।” और वे उस पुरुष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिये निकट आए।
10 तब उन अतिथियों* ने हाथ बढ़ाकर लूत को अपने पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया।
11 और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरुषों को जो घर के द्वार पर थे, अन्धा कर दिया, अत: वे द्वार को टटोलते टटोलते थक गए।
12 फिर उन अतिथियों ने लूत से पूछा, “यहाँ तेरा और कौन कौन है? दामाद, बेटे, बेटियाँ, और नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभों को लेकर इस स्थान से निकल जा।
13 क्योंकि हम यह स्थान नष्ट करने पर हैं, इसलिये कि इसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यानाश करने के लिये भेजा है।”
14 तब लूत ने निकलकर अपने दामादों को, जिनके साथ उसकी बेटियों की सगाई हो गई थी, समझा के कहा, “उठो, इस स्थान से निकल चलो; क्योंकि यहोवा इस नगर को नष्ट करने पर है।” पर वह अपने दामादों की दृष्टि में ठट्ठा करनेवाला जान पड़ा।
15 जब पौ फटने लगी, तब दूतों ने लूत से जल्दी करने को कहा और बोले, “उठ, अपनी पत्नी और दोनों बेटियों को जो यहाँ हैं ले जा; नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा।”
16 पर वह विलम्ब करता रहा; इस पर उन पुरुषों ने उसका और उसकी पत्नी, और दोनों बेटियों के हाथ पकड़े, क्योंकि यहोवा की दया उस पर थी; और उनको निकालकर नगर के बाहर कर दिया।
17 और ऐसा हुआ कि जब उन्होंने उनको बाहर निकाला, तब कहा, “अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की ओर न ताकना, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा।”
18 लूत ने उनसे कहा, “हे प्रभु, ऐसा न कर!
19 देख, तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तू ने इस में बड़ी कृपा दिखाई कि मेरे प्राण को बचाया है; पर मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो कि कोई विपत्ति मुझ पर आ पड़े, और मैं मर जाऊँ।
20 देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहाँ भाग सकता हूँ, और वह छोटा भी है। मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह नगर छोटा नहीं है? और मेरा प्राण बच जाएगा।”
21 उसने उससे कहा, “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी विनती स्वीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नष्ट न करूँगा।
22 फुर्ती से वहाँ भाग जा; क्योंकि जब तक तू वहाँ न पहुँचे, तब तक मैं कुछ न कर सकूँगा।” इसी कारण उस नगर का नाम सोअर पड़ा।
23 लूत के सोअर के निकट पहुँचते ही सूर्य पृथ्वी पर उदय हुआ।
24 तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई;
25 और उन नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नष्ट कर दिया।
26 लूत की पत्नी ने जो उसके पीछे थी दृष्टि फेर के पीछे की ओर देखा, और वह नमक का खम्भा बन गई।
27 भोर को अब्राहम उठकर उस स्थान को गया, जहाँ वह यहोवा के सम्मुख खड़ा था;
28 और सदोम, और अमोरा, और उस तराई के सारे देश की ओर आँख उठाकर क्या देखा कि उस देश में से धधकती हुई भट्ठी का सा धूआँ उठ रहा है।
29 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरों को, जिनमें लूत रहता था, उलट–पुलट कर नष्ट किया, तब उसने अब्राहम को याद करके लूत को उस घटना से बचा लिया।
30 फिर लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था; इसलिये वह और उसकी दोनों बेटियाँ वहाँ एक गुफा में रहने लगे।
31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, “हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी–भर में कोई ऐसा पुरुष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए।
32 इसलिये आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिलाकर उसके साथ सोएँ, जिससे कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें।”
33 अत: उन्होंने उसी दिन रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जाकर अपने पिता के पास लेट गई; पर उसने न जाना कि वह कब लेटी और कब उठ गई।
34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, “देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई; इसलिये आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएँ; तब तू जाकर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें।”
35 अत: उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया; और छोटी बेटी जाकर उसके पास लेट गई, पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न था।
36 इस प्रकार से लूत की दोनों बेटियाँ अपने पिता से गर्भवती हुईं।
37 बड़ी एक पुत्र जनी, और उसका नाम मोआब रखा; वह मोआब नामक जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ।
38 और छोटी भी एक पुत्र जनी, और उसका नाम बेनम्मी रखा; वह अम्मोनवंशियों का जो आज तक है मूलपिता हुआ।