Song of Solomon 2
1 ‘मैं शारोन की कुमकुम हूं, मैं घाटियों का सोसन फूल हूं।’
2 ‘जैसे झाड़-झंखाड़ों में सोसन खिलता है, वैसे ही मेरी प्रियतमा कन्याओं के मध्य सुशोभित है।’
3 ‘जैसे वन-वृक्षों में सेब, वैसे ही मेरा प्रिय युवकों में है। मैं उसकी छाया में हर्षित होकर बैठ गई, उसके प्रेम-फल का स्वाद कितना मीठा है।
4 ‘वह मुझे मयखाने में ले गया, उसके प्रेम की ध्वजा मुझपर फहरा उठी।
5 सखियो! तुम किशमिश खिलाकर मुझे बल दो, सेब खिलाकर मुझे तरोताजा करो, क्योंकि मैं प्रेम-ज्वर से पीड़ित हूं।
6 काश! उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे रहता, और वह अपने दाहिने हाथ से मेरा आलिंगन करता।
7 ओ यरूशलेम की कन्याओ! मैं वन-प्रदेश की हरिणियों और मृगियों की तुम्हें शपथ देती हूं: जब तक प्रेम स्वत: न जाग उठे, तुम उसे न उकसाना, तुम उसे न जगाना।
8 ‘सुनो! मेरे प्रियतम की आवाज। देखो, वह पहाड़ों पर कूदता, पहाड़ियों को फांदता आ रहा है!
9 मेरा प्रियतम मृग की तरह है, वह तरुण हरिण है। देखो, वह हमारी दीवार के पीछे खड़ा है, वह खिड़कियों की ओर ताक रहा है, वह झंझरी से झांक रहा है।
10 मेरा प्रियतम मुझसे कह रहा है: “ओ मेरी प्रियतमा, मेरी प्रियदर्शिनी, उठकर चली आ।
11 देख, शरद ऋतु बीत गई, वर्षा भी बरस कर जा चुकी,
12 धरती पर फूल खिलने लगे। गीत गाने का समय आ गया। हमारे देश में पण्डुक का स्वर सुनाई देने लगा।
13 अंजीर फल पकने लगे हैं, अंगूर लताएँ फूल रही हैं, वे सुगन्ध बिखेर रही हैं। ओ मेरी प्रियतमा, मेरी प्रियदर्शिनी, उठकर चली आ।
14 ओ मेरी कपोती। चट्टानों की खोहों में पहाड़ों की गुप्त दरारों में मुझे तेरे रूप के दर्शन करने दे, मुझे तेरी आवाज सुनने दे। क्योंकि तेरा मुख सुन्दर है, तेरी आवाज मधुर है।”
15 ‘इन लोमड़ियों को, इन छोटी-छोटी लोमड़ियों को, हमारे लिए पकड़ लो, ये अंगूर-उद्यानों को नाश करती हैं, हमारे अंगूर-उद्यानों में फूल आ गए हैं।
16 ‘मैं अपने प्रियतम की हूं, और वह मेरा है। वह सोसन पुष्पों के मध्य अपनी भेड़-बकरियां चराता है।
17 सन्ध्या पवन बहने से पूर्व छाया लम्बी होकर उसके लोप होने के पूर्व, ओ मेरे प्रियतम, मृग की तरह ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों पर तरुण हरिण के सदृश लौट आना।