Psalms 32
1 धन्य है वह मनुष्य, जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढांपा गया।
2 धन्य है वह मनुष्य जिसपर प्रभु अधर्म का अभियोग नहीं लगाता, और जिसके मन में कोई कपट नहीं है।
3 जब तक मैंने अपना पाप प्रकट नहीं किया, मेरी देह दिन भर की कराह से कमजोर हो गई।
4 तेरा हाथ दिन-रात मुझपर भारी था; मानो ग्रीष्म के ताप से मेरा जीवन-रस सूख गया । सेलाह
5 मैंने तेरे सम्मुख अपना पाप स्वीकार किया, और अपने अधर्म को छिपाया नहीं; मैंने कहा, “मैं प्रभु के समक्ष अपने अपराध स्वीकार करूंगा।” और तूने मेरे पाप और अधर्म को क्षमाकर दिया। सेलाह
6 जब तक तू मिल सकता है, सब भक्त तुझ से प्रार्थना करें; क्योंकि भयंकर जल-प्रवाह उन भक्तों तक नहीं पहुंच सकेगा।
7 तू मेरा आश्रयस्थल है; तू संकट से मुझे सुरक्षित रखता है; तू मुक्ति के जयघोष से मुझे घेर लेगा। सेलाह
8 प्रभु यह कहता है: “मैं तेरी अगुआई कर तुझे वह मार्ग सिखाऊंगा जिस पर तुझे चलना चाहिए; मैं तुझे परामर्श दूंगा। मेरी आंखें तुझ पर लगी रहेंगी।”
9 इसलिए तुम अश्व अथवा खच्चर जैसे न बनो, जिसमें विवेक नहीं होता; जिसे रास और लगाम से वश में करना पड़ता है; अन्यथा वह तुम्हारे निकट न आएगा।
10 दुर्जन को अनेक दु:ख हैं; किन्तु प्रभु पर भरोसा करने वाले को प्रभु की करुणा घेरे रहती है।
11 ओ धार्मिको, प्रभु में आनन्दित और हर्षित हो। ओ सत्यनिष्ठो, जयजयकार करो।