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Proverbs 14

:
Hindi - CLBSI
1 बुद्धिमती स्‍त्री अपना घर बनाती है, पर मूर्ख स्‍त्री अपना घर अपने ही हाथ से ढाह देती है
2 जिस मनुष्‍य का आचरण निष्‍कपट है, वह प्रभु की भक्‍ति करता है; किन्‍तु जिसका आचरण छल-कपट से भरा है, वह प्रभु को तुच्‍छ समझता है
3 मूर्ख मनुष्‍य के मुंह में गर्व का अंकुर फूटता है, और वह विपत्ति को बुलाता है; पर बुद्धिमान मनुष्‍य के ओंठों से निकले शब्‍द उसकी रक्षा करते हैं।
4 जहाँ हल के लिए बैल नहीं वहां अनाज पैदा नहीं होता। बैल के बल से ही प्रचुर अन्न उत्‍पन्न होता है।
5 सच्‍चा साक्षी झूठ नहीं बोलता; किन्‍तु झूठे गवाह के मुंह से केवल झूठ ही निकलता है।
6 हर बात को हंसी में उड़ानेवाला व्यक्‍ति व्‍यर्थ ही ज्ञान की तलाश करता है; पर समझदार मनुष्‍य के लिए ज्ञान सहज ही प्राप्‍त हो जाता है।
7 मूर्ख मनुष्‍य का साथ छोड़ दे; उसकी संगति में तुझे ज्ञान की बातें नहीं मिलेंगी।
8 विवेकी मनुष्‍य की बुद्धि क्‍या है? अपने मार्ग को पहचानना; परन्‍तु मूर्खो की मूर्खता केवल धोखा देना है।
9 परमेश्‍वर दुर्जन को ठुकराता है, पर धार्मिक व्यक्‍ति उसकी कृपा का पात्र बनता है।
10 केवल हृदय अपनी पीड़ा को जानता है; पर उसके आनन्‍द में भी दूसरा साझी नहीं हो सकता।
11 दुर्जन का मकान ढह जाता है, पर धार्मिक मनुष्‍य का डेरा आबाद रहता है।
12 एक ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्‍य को उचित प्रतीत होता है; किन्‍तु वह पथिक को मृत्‍यु के द्वार पर पहुंचाता है।
13 हंसी के समय भी हृदय उदास होता है; आनन्‍द का अन्‍त भी दु:ख होता है।
14 कुटिल मनुष्‍य को अपने दुराचरण का फल निस्‍सन्‍देह भोगना पड़ता है; पर सज्‍जन को उसके सत्‍कर्मों का पुरस्‍कार मिलता है
15 सीधा-सादा मनुष्‍य हर बात पर विश्‍वास कर लेता है, किन्‍तु चतुर मनुष्‍य फूंक-फूंक कर कदम रखता है
16 बुद्धिमान मनुष्‍य सावधान रहता, और बुराई से बचता है, किन्‍तु मूर्ख मनुष्‍य लापरवाह होता, और ढीठ बनकर दुराचरण करता है।
17 जो मनुष्‍य तुरन्‍त क्रोध करता है, वह मूर्खता का कार्य करता है; किन्‍तु जिसमें विवेक है, वह धीरज रखता है।
18 भोला मनुष्‍य मूर्खता के काम करता है; परन्‍तु चतुर व्यक्‍ति ज्ञान से सुशोभित होते हैं।
19 बुराई भलाई के सम्‍मुख झुकती है; दुर्जन धार्मिक मनुष्‍य के द्वार पर माथा टेकता है।
20 गरीब मनुष्‍य को उसका पड़ोसी भी पसन्‍द नहीं करता; किन्‍तु धनवान व्यक्‍ति के अनेक मित्र होते हैं।
21 जो मनुष्‍य अपने पड़ोसी से घृणा करता है, वह पापी है; पर गरीबों पर दया करनेवाला व्यक्‍ति धन्‍य है।
22 बुरी-बुरी योजनाएं बनानेवाले क्‍या पथभ्रष्‍ट नहीं होते? पर भली बातें सोचनेवालों से करुणा और सच्‍चाई का व्‍यवहार किया जाता है।
23 परिश्रम से सदा लाभ होता है, पर कोरी बक-बक से गरीबी आती है।
24 बुद्धिमान की शोभा बुद्धि है; किन्‍तु मूर्ख का आभूषण उसकी मूर्खता है।
25 सच्‍चा गवाह निर्दोष व्यक्‍तियों के प्राण बचाता है; पर झूठ बोलनेवाला व्यक्‍ति विश्‍वासघाती होता है।
26 प्रभु की भक्‍ति करने से मनुष्‍य में सुदृढ़ आत्‍म-विश्‍वास जागता है; प्रभु के भक्‍त की सन्‍तान कभी निराश्रित नहीं होगी।
27 प्रभु का भय जीवन का स्रोत है, जिसके द्वारा मनुष्‍य मृत्‍यु के फंदे से बचता है।
28 राजा की कीर्ति उसकी प्रजा की विशाल संख्‍या में है; जनता के बिना शासक नष्‍ट हो जाता है।
29 जो व्यक्‍ति विलम्‍ब से क्रोध करता है वह बड़ा समझदार है; पर तुरन्‍त क्रुद्ध होनेवाला मनुष्‍य केवल अपनी मूर्खता को प्रकट करता है।
30 शान्‍त मन शरीर को स्‍वस्‍थ रखता है, पर क्रोध की ज्‍वाला हड्डियों को भी भस्‍म कर देती है।
31 जो मनुष्‍य गरीब पर अत्‍याचार करता है, वह उसके सृजक का अपमान करता है; किन्‍तु दीन-दरिद्र पर दया करनेवाला उसके रचयिता का आदर करता है।
32 दुर्जन को उसके दुष्‍कर्म ही उखाड़ फेंकते हैं, पर धार्मिक मनुष्‍य अपनी सत्‍यनिष्‍ठा के कारण आश्रय पाता है।
33 समझदार मनुष्‍य के हृदय में बुद्धि का निवास होता है; किन्‍तु मूर्ख मनुष्‍य बुद्धि के विषय में कुछ भी नहीं जानता।
34 राष्‍ट्र की उन्नति का आधार है धार्मिकता; पर पाप कौम का कलंक होता है।
35 बुद्धिमान सेवक राजा का कृपापात्र होता है; पर जो कर्मचारी मूर्खतापूर्ण कार्य करता है उस पर राजा का क्रोध भड़क उठता है।