Proverbs 1
1 इस्राएल देश के राजा दाऊद के पुत्र, राजा सुलेमान के नीतिवचन;
2 नीतिवचन को पढ़ने वाला मनुष्य बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे; वह समझ की बातें समझे।
3 उसे व्यवहार-कुशलता की शिक्षा प्राप्त हो; और वह धर्मयुक्त, न्यायपूर्ण और निष्कपट आचरण करे।
4 जो मनुष्य सीधा-सादा है, वह नीतिवचन को पढ़कर चतुर बने; युवकों को समझ और विवेक मिले।
5 बुद्धिमान भी इन वचनों को सुने, और वह अपनी विद्या को बढ़ाए; समझदार व्यक्ति जीवन-रूपी नौका को खेने की कुशलता प्राप्त करे।
6 इसके द्वारा मनुष्य पहेली और दृष्टांत का अर्थ जाने, वह बुद्धिमानों की बातों और उनके गूढ़ वचनों को समझे।
7 प्रभु के प्रति भय-भाव ही बुद्धि का मूल है, जो मूर्ख हैं; वे ही बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ समझते हैं।
8 मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा को सुन, और अपनी मां की सीख को मत छोड़।
9 उनकी शिक्षा और सीख मानो तेरे सिर के लिए सुन्दर मुकुट हैं, वे तेरे गले की माला हैं।
10 मेरे पुत्र, यदि पापी तुझे फुसलाएं, तो तू उनकी बातों में न आना;
11 यदि वे तुझसे यह कहें, ‘हमारे साथ आ। हम हत्या के लिए घात लगाएं; हम अकारण ही निर्दोष पर छिप कर वार करें;
12 आ, हम अधोलोक की तरह, उन्हें जीवित ही निगल जाएं, उनको कबर में जानेवालों के समान पूरा का पूरा खा जाएं।
13 तब हम उनके सब कीमती सामान को हड़प लेंगे; हम अपने मकान उनकी लूट से भर लेंगे।
14 तू हमारे झुण्ड में सम्मिलित हो जा; हम सब का एक ही बटुआ होगा।’
15 मेरे पुत्र, तू उन दुर्जनों के मार्ग पर मत चलना, बल्कि उनकी गली में पैर भी मत रखना।
16 वे दुष्कर्म करने को दौड़ते हैं; वे हत्या करने को शीघ्रता करते हैं।
17 जब पक्षी देख रहा हो तब जाल बिछाने से क्या लाभ?
18 दुर्जन अपनी ही हत्या के लिए घात लगाते हैं; वे मानो अपने ही प्राण लेने के लिए छिपकर बैठते हैं।
19 हिंसक लोभियों का आचरण ऐसा ही होता है, पर उनका लोभ ही उनकी मृत्यु का कारण बनता है।
20 बुद्धि सड़क पर पुकार रही है; चौराहे पर उसकी आवाज गूंज रही है।
21 वह भीड़ भरे मार्गों में पुकार रही है; वह नगर के प्रवेश-द्वारों पर खड़ी हुई कह रही है:
22 ‘ओ अज्ञानियो, कब तक तुम अज्ञान गले लगाए रखोगे? ज्ञान की हंसी उड़ाने वालो, कब तक तुम ज्ञान की हंसी उड़ाते रहोगे? ओ मुर्खो, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे?
23 मेरी चेतावनियों पर ध्यान दो; देखो, मैं अपनी आत्मा तुम पर उण्डेल रही हूं। मैं तुम पर अपनी बातें प्रकट करूंगी।
24 मैंने तुम्हें पुकारा, पर तुमने मेरी बात सुनने से इन्कार कर दिया; मैंने तुम्हारी ओर अपना हाथ बढ़ाया, किन्तु तुममें से किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
25 तुमने मेरी सलाह की उपेक्षा की, और मेरी चेतावनी को अनसुना किया।
26 अत: जब तुम पर विपत्ति आएगी तब मैं हंसूंगी, जब तुम पर आतंक छाएगा तब मैं तुम्हारा उपहास करूंगी।
27 जब तूफान के समान आतंक तुम पर छा जाएगा, बवंडर के सदृश विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी; तुम दु:ख और संकट के जाल में फंस जाओगे, तब मैं तुम्हारा मजाक उड़ाऊंगी।
28 तुम मुझे पुकारोगे, पर मैं तुम्हें उत्तर नहीं दूंगी; तुम मुझे ढूंढ़ने में जमीन-आसमान एक कर दोगे, किन्तु मुझे नहीं पा सकोगे।
29 क्योंकि तुमने ज्ञान से बैर किया है; तुम्हें प्रभु की भक्ति करना पसन्द नहीं है।
30 तुम्हें मेरी सलाह नहीं चाहिए; तुम मेरी चेतावनियों को तुच्छ समझते हो।
31 अत: तुम अपनी करनी का फल स्वयं भोगोगे; जो काम तुमने अपनी इच्छा से किए हैं, उनके फल से तुम अघा जाओगे।
32 अज्ञानी मार्ग से भटक जाते हैं, और उनका भटकना मृत्यु का कारण बनता है; मूर्खों का आत्म-सन्तोष उनके विनाश का कारण होता है।
33 किन्तु जो व्यक्ति मेरी बात सुनेगा, वह सुरक्षित निवास करेगा। वह बुराई से नहीं डरेगा; बल्कि सुख-चैन से रहेगा।’