Nahum 3
1 धिक्कार है तुझे, ओ खूनी नगरी नीनवे! तू झूठ और लूट से भरी है, तेरी लूट का कोई अन्त नहीं।
2 चाबुक की आवाज, पहियों के घूमने की आवाज सुनाई दे रही है। घोड़े दौड़ रहे हैं, रथ भाग रहे हैं।
3 घुड़सवार सरपट दौड़ रहे हैं, तलवारें चमक रही हैं, भाले चमचमा रहे हैं, हजारों लोग मरे पड़े हैं, लाशों का ढेर लगा है, लोथों का अन्त नहीं। लोग लोथों से ठोकर खाकर गिरते हैं।
4 यह विनाश क्यों हुआ? इसलिए कि वेश्या ने उस सुन्दर और जादूगरनी वेश्या ने अत्यधिक वेश्यावृत्ति की थी। उसने अपनी वेश्यावृत्ति से राष्ट्रों को फंसाया था, अपने जादू से अनेक देशों को लुभाया था।
5 देख, मैं तेरे विरुद्ध हूं; स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता है, मैं तेरा वस्त्र तेरे मुंह तक उठाऊंगा, मैं तेरी नग्नता राष्ट्रों को दिखाऊंगा; राज्य तेरे गुप्तांगों को देखेंगे।
6 मैं तुझ पर कूड़ा-कर्कट फेंकूंगा; मैं तुझे मूर्ख सिद्ध करूंगा; मैं सबसे तेरी हंसी कराऊंगा।
7 तुझे देखनेवाले तेरे पास से भाग जाएंगे; वे यह कहेंगे: ‘नीनवे का सौन्दर्य नष्ट हो गया; तेरे लिए कौन विलाप करेगा? मैं कहां से तुझे सांत्वना देनेवाला लाऊं?’
8 क्या तू नो-आमोन नगरी से बेहतर है? वह नील नदी के तट पर, जल से घिरी हुई थी। उसका परकोटा सागर था, और उसकी शहरपनाह नदी का जल।
9 इथियोपिआ और मिस्र देश उसके अपार शक्ति-स्रोत थे। पूट और लीबिया देश उसके मित्र-राष्ट्र थे।
10 फिर भी शत्रु नो-आमोन नगरी को कैद कर ले गए, वह बन्दिनी बनी और अपने देश से निर्वासित हुई। प्रत्येक सड़क के छोर पर शिशुओं को पटक-पटक कर मारा गया। नगरी के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को गुलाम बनाने के लिए उनके नाम पर चिट्ठी डाली गई। उसके बड़े लोग जंजीरों में जकड़े गए।
11 ओ नीनवे, तू प्रभु के कोप की मदिरा पिएगी तू स्तम्भित हो जाएगी; तू शत्रु से भागकर आश्रय की तलाश करेगी।
12 तेरे समस्त गढ़ फल से लदे अंजीर के पेड़ की तरह हैं, वे हिलाने पर खाने वाले के मुंह में टपक जाते हैं।
13 देख, देख, तेरे सैनिकों ने हाथ में चूड़ी पहिन ली है। तेरे देश के सीमा-द्वार शत्रुओं के लिए खुले पड़े हैं। अग्नि ने तेरे प्रवेश-द्वार की अर्गलाएँ भस्म कर दी हैं।
14 चाहे तू घेराबन्दी के समय के लिए, पानी की व्यवस्था कर ले, सुदृढ़ मोर्चाबन्दी कर ले, ईंट बनाने के लिए मिट्टी गूंध ले, ईंटों के सांचे ले आए,
15 फिर भी अग्नि तुझे भस्म करेगी। तलवार तुझे मौत के घाट उतारेगी। अग्निज्वाला टिड्डी-दल के सदृश तुझे चाट जाएगी। चाहे तू भी टिड्डियों के सदृश अपने को असंख्य बनाए, चाहे तू टिड्डी-दल के समान अनगिनत हो जाए,
16 चाहे तेरे व्यापारियों की संख्या आकाश के तारों से भी अधिक हो जाए: फिर भी तेरी ये टिड्डियाँ बढ़कर उड़ जाएंगी।
17 तेरे शासक टिड्डियों की तरह हैं, तेरे सचिव टिड्डी-दल के बादल हैं, जो ठंड के दिनों में दीवारों की आड़ में पड़े रहते हैं; जब सूर्य निकलता है तब वे उड़ जाते हैं; किसी को मालूम नहीं होता कि वे कहां गए।
18 ओ असीरिया के राजा, तेरे चरवाहे सो रहे हैं, तेरे सामन्त ऊंघ रहे हैं। तेरी प्रजा पर्वतों पर बिखरी पड़ी है, उन्हें इकट्ठा करनेवाला कोई नहीं है।
19 तेरी चोट का कोई इलाज नहीं, तेरा घाव बहुत गहरा है। जो लोग तेरी खबर सुनते हैं, वे खुश होकर तुझ पर ताली पीटते हैं; क्योंकि तेरे निरन्तर अत्याचारों को किसने नहीं भोगा है?