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Malachi 3

:
Hindi - CLBSI
1 स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘मैं अपने दूत को अपने आगमन के पूर्व भेज रहा हूं। वह मेरे मार्ग को तैयार करेगा। और वह स्‍वामी, जिसको तुम ढूंढ़ रहे हो, अपने मन्‍दिर में अचानक आएगा। विधान का वह दूत, जिससे तुम प्रसन्न हो, देखो, वह रहा है।
2 पर उसके आगमन-दिवस को कौन व्यक्‍ति सह सकता है? जब वह दिखाई देगा तब कौन व्यक्‍ति उसके सम्‍मुख खड़ा हो सकेगा? ‘क्‍योंकि वह सुनार की शोधन-भट्ठी के समान परिष्‍कर्त्ता है, वह धोबी के साबुन के समान गन्‍दगी को धोनेवाला है।
3 वह सोने के परिष्‍कर्त्ता और चांदी के शुद्धकर्त्ता के रूप में सिंहासन पर बैठेगा, और लेवीय पुरोहितों को सोना-चांदी के सदृश शुद्ध करेगा। तब वे प्रभु को विधिवत् भेंट चढ़ाएंगे।
4 यहूदा प्रदेश और यरूशलेम नगर के निवासियों की यह भेंट प्रभु को पसन्‍द आएगी, जैसे बीते दिनों में प्राचीनकाल में उसे पसन्‍द आती थी।’
5 स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘तब मैं अदालत में तुम्‍हारे सम्‍मुख उपस्‍थित होऊंगा। मैं इन सब लोगों के विरुद्ध तुरन्‍त साक्षी दूंगा: झाड़-फूंक करनेवाले ओझा, व्‍यभिचारी, झूठी शपथ खानेवाले, मजदूर की मजदूरी दबानेवाले, विधवाओं और अनाथों पर अत्‍याचार करनेवाले, प्रवासी के अधिकारों को छीननेवाले और मुझसे डरनेवाले।
6 ‘मैं अपरिवर्तनीय प्रभु हूं: इसलिए याकूब के वंशजो, तुम अब तक जीवित हो।
7 तुम अपने पूर्वजों के समय से मेरी संविधियों का उल्‍लंघन करते रहे हो, तुमने उनका पालन नहीं किया। मैं, स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता हूं: मेरी ओर लौटो, तो मैं भी तुम्‍हारी ओर लौटूंगा। तुम पूछते हो, “हमने क्‍या किया है जिससे हम लौटें?”
8 क्‍या मनुष्‍य मुझ-परमेश्‍वर को धोखा दे सकता है? पर तुम मुझे धोखा दे रहे हो। तुम पूछते हो, “हम तुझे किस प्रकार धोखा दे रहे हैं?” तुम अपने दशमांश और विधिवत् भेंटों में मुझे धोखा दे रहे हो।
9 तुम-सब, सारा राष्‍ट्र महाशाप से शापित है, क्‍योंकि तुम मुझे धोखा दे रहे हो।
10 ‘मेरे भण्‍डार-गृह में पूर्ण दशमांश लाओ, जिससे मेरे भवन में भोजन-वस्‍तु रहे। तब मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे खोलकर तुम्‍हारे लिए वर्षा करता हूँ कि नहीं, मैं तुम पर आशिष की वर्षा करता हूँ कि नहीं।’
11 स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘मैं विनाशक-जीव को डांटूंगा, ताकि वह तुम्‍हारी भूमि की फसल को नष्‍ट करे। मैं, स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता हूं: तुम्‍हारे अंगूर-उद्यान में अंगूर की भरपूर फसल होगी।
12 तब सब राष्‍ट्र तुम्‍हें सुखी राष्‍ट्र कहेंगे, क्‍योंकि तुम्‍हारा देश एक मनोहर देश होगा।’ स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने यह कहा है।
13 प्रभु यों कहता है, ‘तुमने मेरे विरुद्ध कड़ी-कड़ी बातें कहीं। फिर भी तुम कहते हो, “हमने तेरे विरुद्ध क्‍या कहा है?”
14 तुमने क्‍या यह नहीं कहा है, “परमेश्‍वर की सेवा करना व्‍यर्थ है। हमने उसके आदेशों का पालन किया, हम स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु के सम्‍मुख शोक-संतप्‍त चलते रहे। हमें क्‍या लाभ हुआ?
15 अब हम अभिमानी लोगों को धन्‍य कहेंगे। दुष्‍कर्मी केवल जीवन में सफल होते हैं, वरन् जब वे परमेश्‍वर को परखते हैं तब भी वे बच जाते हैं।”?’
16 जो प्रभु के प्रति श्रद्धा-भक्‍ति रखते थे, उन्‍होंने आपस में बात की। प्रभु ने ध्‍यान दिया, उनकी बात सुनी। उसके सम्‍मुख एक स्‍मरण-पुस्‍तिका लिखी गई। इसमें उन लोगों के नाम लिखे गए, जो प्रभु का चिंतन करते थे।
17 स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘जिस दिन मैं कार्रवाई करूँगा उस दिन ये मेरे निज लोग बनेंगे, मेरी मीरास बनेंगे। जैसे पिता सेवा करनेवाले अपने पुत्र को छोड़ देता है, और उसे दण्‍ड नहीं देता, वैसे ही मैं उन्‍हें छोड़ दूंगा।
18 तुम धार्मिक और अधार्मिक में पुन: भेद पहचानोगे; तुम जानोगे कि कौन व्यक्‍ति मुझ-परमेश्‍वर की सेवा करता है, और कौन व्यक्‍ति मेरी सेवा नहीं करता।’