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Luke 24

:
Hindi - CLBSI
1 सप्‍ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही स्‍त्रियाँ तैयार किये हुए सुगन्‍धित द्रव्‍य ले कर कबर के पास गयीं।
2 उन्‍होंने पत्‍थर को कबर से अलग लुढ़काया हुआ पाया,
3 किन्‍तु शवकक्ष के भीतर जाने पर उन्‍हें प्रभु येशु का शव नहीं मिला।
4 वे इस पर आश्‍चर्य कर ही रही थीं कि चमचमाते वस्‍त्र पहने दो पुरुष उनके पास कर खड़े हो गये।
5 स्‍त्रियों ने भयभीत हो कर भूमि की ओर सिर झुका लिया। उन पुरुषों ने उन से कहा, “आप लोग जीवित को मृतकों में क्‍यों ढूँढ़ रही हैं?
6 वह यहाँ नहीं हैं, पर वह जी उठे हैं। गलील प्रदेश में रहते समय उन्‍होंने आप लोगों से जो कहा था, वह याद कीजिए।
7 उन्‍होंने यह कहा था कि मानव-पुत्र का पापियों के हाथ सौंपा जाना, क्रूस पर चढ़ाया जाना और तीसरे दिन जी उठना अनिवार्य है।”
8 तब स्‍त्रियों को येशु का यह कथन स्‍मरण हुआ
9 और वे कबर से लौट पड़ीं। उन्‍होंने ग्‍यारह प्रेरितों को तथा अन्‍य सब शिष्‍यों को ये सारी बातें कह सुनाईं।
10 जिन्‍होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलेनी, योअन्ना, और याकूब की माता मरियम तथा उनके साथ की अन्‍य स्‍त्रियाँ थीं।
11 परन्‍तु प्रेरितों ने इन सब बातों को प्रलाप मात्र ही समझा और स्‍त्रियों पर विश्‍वास नहीं किया।
12 फिर भी पतरस उठा और दौड़ते हुए कबर के पास पहुँचा। उसने झुक कर देखा कि पट्टियों के अतिरिक्‍त वहाँ कुछ भी नहीं है और वह इस घटना पर आश्‍चर्य करता हुआ लौट आया।
13 उसी दिन उनमें से दो शिष्‍य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए इम्‍माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह यरूशलेम से कोई दस किलोमीटर दूर है।
14
15 वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि येशु स्‍वयं कर उनके साथ हो लिये,
16 परन्‍तु शिष्‍यों की आँखें उन्‍हें पहचानने में असमर्थ रहीं।
17 येशु ने उन से कहा, “आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे उदास खड़े रह गये।
18 तब उन में एक, जिसका नाम िक्‍लयुपास था, बोला, “क्‍या यरूशलेम में केवल आप ही एक ऐसे प्रवासी हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्‍या-क्‍या हुआ है?”
19 येशु ने उन से कहा, “क्‍या हुआ है?” उन्‍होंने उत्तर दिया, “बात येशु नासरी की है। वह परमेश्‍वर और समस्‍त जनता की दृष्‍टि में कर्म और वचन के शक्‍तिशाली नबी थे।
20 हमारे महापुरोहितों और शासकों ने उन्‍हें प्राणदण्‍ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया।
21 हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करेंगे। इन सब बातों के अतिरिक्‍त एक बात और: यह आज से तीन दिन पहले की घटना है।
22 हम में से कुछ स्‍त्रियों ने हमें बड़े अचम्‍भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे कबर पर गयीं
23 और उन्‍हें येशु का शव नहीं मिला। उन्‍होंने लौट कर कहा कि उन्‍हें स्‍वर्गदूत भी दिखाई दिये, जिन्‍होंने यह बताया कि येशु जीवित हैं।
24 इस पर हमारे कुछ साथी कबर पर गये और उन्‍होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्‍त्रियों ने कहा था; परन्‍तु उन्‍होंने येशु को नहीं देखा।”
25 तब येशु ने उन से कहा, “निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्‍वास करने में कितने मन्‍दमति हो!
26 क्‍या यह अनिवार्य नहीं था कि मसीह यह सब दु:ख भोगें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?”
27 तब येशु ने मूसा एवं सब नबियों से आरम्‍भ कर संपूर्ण धर्मग्रन्‍थ में अपने विषय में लिखी बातों की व्‍याख्‍या उनसे की।
28 इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। येशु ने ऐसा दिखाया कि वह आगे जाना चाहते हैं।
29 किन्‍तु शिष्‍यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, “हमारे साथ रह जाइए। संध्‍या हो रही है और अब दिन ढल चुका है।” वह उनके साथ ठहरने के लिए भीतर गये।
30 जब येशु उनके साथ भोजन करने बैठे, तब उन्‍होंने रोटी ली, आशिष माँगी और वह रोटी तोड़ कर उन्‍हें देने लगे।
31 इस पर शिष्‍यों की आँखें खुल गयीं और उन्‍होंने येशु को पहचान लिया... किन्‍तु येशु उनकी दृष्‍टि से ओझल हो गये।
32 तब शिष्‍यों ने एक दूसरे से कहा, “हमारे हृदय कितने उद्दीप्‍त हो रहे थे, जब वह मार्ग में हम से बातें कर रहे थे और हमें धर्मग्रन्‍थ समझा रहे थे!”
33 वे उसी समय उठे और यरूशलेम लौट गये। वहाँ उन्‍होंने ग्‍यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया,
34 जो यह कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं।”
35 तब दोनों शिष्‍यों ने भी बताया कि मार्ग में क्‍या-क्‍या हुआ और उन्‍होंने येशु को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
36 वे इन सब घटनाओं पर बातचीत कर ही रहे थे कि येशु उनके बीच कर खड़े हो गये। उन्‍होंने उन से कहा, “तुम्‍हें शान्‍ति मिले!’
37 परन्‍तु वे विस्‍मित हो गए और भयभीत होकर सोचने लगे कि वे कोई प्रेत देख रहे हैं।
38 येशु ने उन से कहा, “तुम लोग क्‍यों घबरा रहे हो? तुम्‍हारे मन में सन्‍देह क्‍यों हो रहा है?
39 मेरे हाथ और मेरे पैर देखो, मैं ही हूँ। मुझे टटोल कर देखो, क्‍योंकि प्रेत के हाड़-मांस नहीं होता जैसा तुम मुझ में देख रहे हो!”
40 उन्‍होंने यह कह कर उन को अपने हाथ और पैर दिखाए।
41 जब इस पर भी शिष्‍यों को आनन्‍द के मारे विश्‍वास नहीं हो रहा था और वे आश्‍चर्य-चकित बने हुए थे, तब येशु ने कहा, “क्‍या यहाँ तुम्‍हारे पास खाने को कुछ है?”
42 उन्‍होंने येशु को भूनी मछली का एक टुकड़ा दिया।
43 उन्‍होंने उसे लिया और उनके सामने खाया।
44 येशु ने शिष्‍यों से कहा, “मैं ने तुम्‍हारे साथ रहते समय तुम लोगों से कहा था कि जो कुछ मूसा की व्‍यवस्‍था में और नबियों के ग्रंथों में तथा भजन-संहिता में मेरे विषय में लिखा है, सब का पूरा होना अनिवार्य है।”
45 तब येशु ने शिष्‍यों की बुद्धि खोल दी कि वे धर्मग्रन्‍थ को समझ सकें,
46 और उन से कहा, “धर्मग्रन्‍थ में ऐसा ही लिखा है कि मसीह दु:ख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे
47 और उनके नाम पर यरूशलेम से ले कर सभी राष्‍ट्रों को पापक्षमा के लिए पश्‍चात्ताप का संदेश सुनाया जाएगा।
48 तुम इन बातों के गवाह हो।
49 देखो, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम पर भेजूँगा। इसलिए जब तक तुम ऊपर के सामर्थ्य से सम्‍पन्न हो जाओ, तुम नगर में ठहरे रहो।”
50 इसके पश्‍चात् येशु शिष्‍यों को बेतनियाह गाँव तक ले गये और उन्‍होंने अपने हाथ उठा कर उन्‍हें आशीर्वाद दिया।
51 आशीर्वाद देते-देते वह उनसे अलग हो गये और स्‍वर्ग में उठा लिये गये।
52 शिष्‍य उनकी वंदना कर बड़े आनन्‍द के साथ यरूशलेम लौट आए
53 और वे मन्‍दिर में सदा परमेश्‍वर की स्‍तुति करते रहे