Bible

Transform

Your Worship Experience with Great Ease

Try RisenMedia.io Today!

Click Here

Jonah 4

:
Hindi - CLBSI
1 किन्‍तु योना को परमेश्‍वर का यह निर्णय बहुत बुरा लगा। वह प्रभु परमेश्‍वर से नाराज हो गया।
2 उसने प्रभु से प्रार्थना की। उसने कहा, ‘प्रभु, मेरी तुझसे यह प्रार्थना है: जब मैं अपने देश में था, तब मैंने तुझ से यही तो कहा था; अब तो वही बात हुई। इसी कारण मैं तुरन्‍त तर्शीश नगर को भागा था। मैं जानता था कि तू कृपालु और दयालु परमेश्‍वर है। तू विलम्‍ब से क्रोध करने वाला और करुणा का सागर है। तू विपत्ति ढाहने के अपने निर्णय को बदलता भी है।
3 इसलिए अब मैं तुझसे यह विनती करता हूं: हे प्रभु, तू मेरा प्राण मुझसे ले ले। मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्‍छा है।’
4 प्रभु ने योना से कहा, ‘क्‍या तेरा यह क्रोध उचित है?’
5 तब योना नगर से बाहर निकला। वह नगर के पूर्व में रहने लगा। उसने अपने सिर पर एक छप्‍पर डाला। वह छप्‍पर की छाया में बैठ गया और देखने लगा कि नगर का अब क्‍या होगा।
6 प्रभु परमेश्‍वर ने योना के सिर के ऊपर अंडी का एक पेड़ उगाया कि वह योना के सिर पर छाया करे और उसे आराम दे सके। योना इस पेड़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ।
7 दूसरे दिन जब प्रात:काल हुआ, तब परमेश्‍वर ने एक कीड़े को भेजा। कीड़े ने अंडी के पेड़ को काटा और अंडी का पेड़ सूख गया।
8 जब सूरज निकला तब परमेश्‍वर ने पूर्व दिशा से गरम हवा बहाई। योना के सिर पर सूरज की किरणें पड़ीं और वह बेहोश हो गया। योना मृत्‍यु की इच्‍छा करने लगा। उसने कहा, ‘मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्‍छा है।’
9 तब परमेश्‍वर ने योना से पूछा, ‘क्‍या यह उचित है कि तू अंडी के पेड़ के कारण नाराज हो?’ योना ने उत्तर दिया, ‘मेरा क्रोध उचित है। इसलिए मैं नाराज हूं। मैं मर जाना चाहता हूं।’
10 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ‘तू उस अंडी के पेड़ के लिए दु:खित है जिसके लिए तूने कोई परिश्रम नहीं किया। तूने उसको लगाया था और बड़ा किया था। वह एक रात में उगा और दूसरी रात में नष्‍ट हो गया।
11 सुन, इस महानगर नीनवे में एक लाख बीस हजार से ज्‍यादा अबोध बच्‍चे हैं, जो अपने दाएं-बाएं हाथ का भी अन्‍तर नहीं पहचानते। इसके अतिरिक्‍त निर्दोष पशु भी हैं। तब क्‍या मुझे इस महानगर के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए?’