John 18
1 यह सब कहने के पश्चात् येशु अपने शिष्यों के साथ किद्रोन नाले के उस पार गये। वहाँ एक उद्यान था। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ उसमें प्रवेश किया।
2 उनके विश्वासघाती यूदस को भी यह जगह मालूम थी, क्योंकि येशु प्राय: अपने शिष्यों के साथ वहाँ जाते थे।
3 इसलिए यूदस, सैन्यदल और महापुरोहितों तथा फरीसियों के भेजे हुए सिपहियों के साथ, वहाँ आ पहुँचा। वे लालटेनें, मशालें और हथियार लिये हुए थे।
4 येशु यह जान कर कि उन पर क्या-क्या बीतेगी, आगे बढ़े और उन से बोले, “किसे ढूँढ़ रहे हो?”
5 उन्होंने उत्तर दिया, “येशु नासरी को।” येशु ने उनसे कहा, “मैं वह हूँ।” वहाँ उनका विश्वासघाती यूदस भी उन लोगों के साथ खड़ा था।
6 जब येशु ने उनसे कहा, “मैं वह हूँ”, तो वे पीछे हट कर भूमि पर गिर पड़े।
7 येशु ने उन से फिर पूछा, “किसे ढूँढ़ रहे हो?” वे बोले, “येशु नासरी को।”
8 इस पर येशु ने कहा, “मैं तुम से कह चुका हूँ कि वह मैं ही हूँ। यदि तुम मुझे ढूँढ़ रहे हो, तो इन्हें जाने दो।”
9 यह इसलिए हुआ कि येशु का यह कथन पूरा हो जाए: “तू ने मुझ को जिन्हें सौंपा, मैंने उनमें से एक को भी नष्ट नहीं होने दिया।”
10 सिमोन पतरस के पास एक तलवार थी। उसने तलवार खींच ली और प्रधान महापुरोहित के सेवक पर चला कर उसका दाहिना कान उड़ा दिया। उस सेवक का नाम मलखुस था।
11 येशु ने पतरस से कहा, “तलवार म्यान में रख लो। जो प्याला पिता ने मुझे दिया है, क्या मैं उसे नहीं पिऊं?”
12 तब सैन्यदल, सेना-नायक और यहूदी सिपाहियों ने येशु को पकड़ कर बाँध लिया।
13 वे उन्हें पहले महापुरोहित हन्ना के यहाँ ले गये; क्योंकि वह उस वर्ष के प्रधान महापुरोहित काइफा का ससुर था।
14 यह वही काइफा था, जिसने धर्मगुरुओं को यह परामर्श दिया था: “अच्छा यही है कि जनता के लिए केवल एक मनुष्य मरे।”
15 सिमोन पतरस और एक दूसरा शिष्य येशु के पीछे-पीछे चले। यह शिष्य महापुरोहित का परिचित था। वह येशु के साथ महापुरोहित के भवन के प्रांगण में गया,
16 किन्तु पतरस द्वार के पास बाहर खड़ा रहा। इसलिए वह दूसरा शिष्य, जो महापुरोहित का परिचित था, फिर बाहर गया और द्वारपाली से कह कर पतरस को भीतर ले आया।
17 लड़की ने, जो द्वारपाली थी, पतरस से कहा, “कहीं तुम भी तो उस मनुष्य के शिष्य नहीं हो?” उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं हूँ।”
18 जाड़े के कारण सेवकों और सिपाहियों ने कोयले की आग जला रखी थी, और खड़े-खड़े आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ आग ताप रहा था।
19 महापुरोहित हन्ना ने येशु से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षा के विषय में पूछा।
20 येशु ने उत्तर दिया, “मैं संसार के सामने प्रकट रूप से बोला हूँ। मैंने सदा सभागृह और मन्दिर में, जहाँ सब धर्मगुरु एकत्र हुआ करते हैं, शिक्षा दी है। मैंने गुप्त रूप से कुछ नहीं कहा।
21 यह आप मुझ से क्यों पूछते हैं? उन से पूछिए, जिन्होंने मेरी शिक्षा सुनी है। वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा है।”
22 इस पर पास खड़े सिपाहियों में से एक ने येशु को थप्पड़ मार कर कहा, “तुम महापुरोहित को इस तरह जवाब देते हो?”
23 येशु ने उससे कहा, “यदि मैंने अनुचित कहा, तो सिद्ध करो कि मैंने अनुचित कहा और यदि ठीक कहा, तो मुझे क्यों मारते हो?”
24 इसके बाद हन्ना ने बाँधे हुए येशु को प्रधान महापुरोहित काइफा के पास भेज दिया।
25 सिमोन पतरस उस समय खड़ा-खड़ा आग ताप रहा था। कुछ लोगों ने उससे कहा, “कहीं तुम भी तो उसके शिष्य नहीं हो?” उसने अस्वीकार करते हुए कहा, “मैं नहीं हूँ।”
26 महापुरोहित का एक सेवक उस व्यक्ति का सम्बन्धी था, जिसका कान पतरस ने उड़ा दिया था। उसने कहा, “क्या मैंने तुम को उसके साथ बगीचे में नहीं देखा था?”
27 पतरस ने फिर अस्वीकार किया और उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी।
28 तब वे येशु को काइफा के यहाँ से राजभवन ले गये। अब प्रात:काल हो गया था। यहूदी धर्मगुरु राजभवन के अन्दर इसलिए नहीं गये कि गैर-यहूदियों के सम्पर्क से अशुद्ध न हो जाएँ, बल्कि पास्का (फसह) पर्व का भोज खा सकें।
29 इसलिए राज्यपाल पिलातुस बाहर आ कर उनसे मिला और बोला, “तुम लोग इस मनुष्य पर कौन-सा अभियोग लगाते हो?”
30 उन्होंने उत्तर दिया, “यदि यह कुकर्मी नहीं होता, तो हम इसे आपके हवाले नहीं करते।”
31 पिलातुस ने उन से कहा, “तुम लोग इसे ले जाओ और अपनी व्यवस्था के अनुसार इसका न्याय करो।” यहूदी धर्मगुरुओं ने उत्तर दिया, “हमें किसी को प्राणदण्ड देने का अधिकार नहीं है।”
32 यह इसलिए हुआ कि येशु का वह कथन पूरा हो जाए, जिसके द्वारा उन्होंने संकेत किया था कि वह किस प्रकार की मृत्यु से मरेंगे।
33 तब पिलातुस फिर राजभवन में गया और येशु को बुला कर उनसे पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
34 येशु ने उत्तर दिया, “क्या आप यह अपनी ओर से कह रहे हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?”
35 पिलातुस ने कहा, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी ही जाति के लोगों और महापुरोहितों ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुमने क्या किया है?”
36 येशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे अनुयायी लड़ते और मैं धर्मगुरुओं के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।”
37 इस पर पिलातुस ने उनसे कहा, “तो, तुम राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप ही कह रहे हैं कि मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा और इसलिए संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्षी दूँ। जो सत्य का है, वह मेरी वाणी सुनता है।”
38 पिलातुस ने उन से पूछा, “सत्य क्या है?” वह यह कह कर फिर बाहर गया और धर्मगुरुओं के पास आ कर बोला, “मैं उसमें कोई दोष नहीं पाता हूँ।
39 तुम्हारी एक प्रथा है: मैं तुम्हारे लिए पास्का (फसह) पर्व के अवसर पर एक बन्दी को रिहा करता हूँ। क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?”
40 वे पुन: चिल्लाकर बोले, “इसे नहीं, बल्कि बरअब्बा को।” और बरअब्बा एक डाकू था।