Isaiah 9
1 जो भूमि व्यथा सह रही थी, अब वह उस निराशा से मुक्त हो जाएंगी। प्रथम आक्रमणकारी ने जबूलून और नफ्ताली क्षेत्र की जनता पर अत्याचार किया था, पर दूसरे आक्रमणकारी ने सागर के पथ से यर्दन नदी के उस पार के गलील प्रदेश पर जहाँ अन्य कौमों के लोग बस गए हैं, भयानक आक्रमण किया।
2 जो लोग अन्धकार में भटक रहे थे, उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; जो लोग गहन अन्धकार के क्षेत्र में रहते थे, उन पर ज्योति उदित हुई।
3 प्रभु, तूने इस्राएली राष्ट्र की समृद्धि की; तूने उसके आनन्द में समृद्धि की; जैसे वे लूट का माल परस्पर बांटते समय उल्लसित होते हैं, जैसे वे फसल-कटाई के पर्व पर हर्षित होते हैं, वैसे ही आज तेरे सम्मुख आनन्द मना रहे हैं।
4 तूने इस्राएली राष्ट्र की गुलामी के जूए को, उसके कन्धे की कांवर को, अत्याचारी की लाठी को तोड़ दिया है, जैसे मिद्यानी सेना के युद्ध-दिवस पर तूने किया था।
5 पदाति सैनिकों के जूते जो धब-धब करते हुए चलते हैं, और उनके रक्त-रंजित वस्त्र आग के कौर बन गए।
6 देखो, हमारे लिए एक बालक का जन्म हुआ है; हमें एक पुत्र दिया गया है। राज-सत्ता उसके कंधों पर है। उसका यह नाम रखा जाएगा: ‘अद्भुत् परामर्शदाता’, ‘शक्तिमान ईश्वर’, ‘शाश्वत पिता’, ‘शान्ति का शासक’ ।
7 उसकी राज्य-सत्ता बढ़ती जाएगी, उसके कल्याणकारी कार्यों का अन्त न होगा। वह दाऊद के सिंहासन पर बैठेगा, और उसके राज्य को संभालेगा। वह अब से लेकर सदा के लिए न्याय के कार्यों से उसको सुदृढ़ करेगा, अपने धार्मिक आचरण से उसे सम्भालेगा। स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का धर्मोत्साह यह कार्य पूर्ण करेगा!
8 स्वामी ने याकूब अर्थात् इस्राएल के विरुद्ध यह सन्देश भेजा है; और यह सच प्रमाणित होगा।
9 सब लोग यह जानेंगे, एफ्रइम राज्य के लोग, सामरी नगर के निवासी जो अहंकार से, घमण्ड से यह कहते हैं,
10 ‘ईंटों की दीवार गिर गई तो क्या हुआ! हम पक्के तत्थरों की पक्की दीवार खड़ी कर लेंगे। गूलर-वृक्ष कट गए तो क्या हुआ? हम उनके स्थान पर देवदार के वृक्ष उगाएंगे।’
11 उनकी इस गर्वोिक्त के कारण प्रभु ने उनके विरुद्ध बैरियों को खड़ा किया है, वह उनके शत्रुओं को भड़का रहा है।
12 पूर्व दिशा से सीरियाई सेना, पश्चिमी दिशा से पलिश्ती सेना इस्राएल पर आक्रमण करेंगी; वे मुंह फाड़कर इस्राएल को निगल जाएंगी। प्रभु का क्रोध इस विनाश के बाद भी शान्त नहीं होगा। विनाश के लिए उसका हाथ अब तक उठा हुआ है।
13 जिनको प्रभु ने ताड़ित किया था, वे फिर भी प्रभु की ओर नहीं लौटे, उन्होंने स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु को नहीं खोजा।
14 अत: प्रभु ने इस्राएल राष्ट्र के सिर और उसकी पूंछ को काट दिया; एक ही दिन में उसने इस्राएल के धनी और निर्धन वर्ग का विनाश कर दिया।
15 धर्मवृद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति समाज का सिर हैं, झूठी शिक्षा देनेवाले नबी पूंछ हैं।
16 ये लोग जनता का नेतृत्व करते, और उसको गलत मार्ग पर ले जाते हैं। गलत मार्ग पर जानेवाली जनता नष्ट हो जाती है।
17 अत: स्वामी इन लोगों के नवयुवकों से प्रसन्न नहीं है, और न वह उनके अनाथ बच्चों पर, और न उनकी विधवा स्त्रियों पर दया करता है। ये सब भक्तिहीन और कुकर्मी हैं; हर आदमी मूर्खतापूर्ण बातें करता है। प्रभु का क्रोध इस विनाश के बाद भी शान्त नहीं होगा; विनाश के लिए उसका हाथ अब तक उठा हुआ है।
18 दुष्टता अग्नि के सदृश धधकती है; वह कंटीले झाड़-झंखाड़ को भस्म करती है। वह जंगल की घनी झाड़ियों में भी आग लगाती है, और मनुष्य धूएँ के घने बादल में सिमट कर ऊपर लुप्त हो जाते हैं।
19 स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु के क्रोध से समस्त देश जल गया; जनता अग्नि का कौर बन गई। भाई, भाई पर दया नहीं करता।
20 वे दाहिनी ओर से छीन-झपट कर खाते हैं; फिर भी उनकी भूख मिटती नहीं; वे बायीं ओर से भकोसते हैं, फिर भी सन्तुष्ट नहीं होते। वे अपनी सन्तान का भी मांस खा रहे हैं।
21 मनश्शे इफ्रइम को खा रहा है, और इफ्रइम मनश्शे को। वे दोनों मिलकर यहूदा को खा रहे हैं। प्रभु का क्रोध इस विनाश के बाद भी शान्त नहीं होगा; विनाश के लिए उसका हाथ अब तक उठा हुआ है।