Isaiah 61
1 प्रभु का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि उसने पीड़ित व्यक्तियों को शुभ-सन्देश सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है; स्वामी प्रभु ने मुझे इस कार्य के लिए भेजा है कि मैं घायल हृदयवालों को स्वस्थ करूं, बन्दियों को स्वतंत्रता का सन्देश सुनाऊं, और जो कारागार में हैं उनके लिए कारागार के द्वार खोल दूं।
2 उसने मुझे भेजा है कि मैं ‘प्रभु की कृपा का वर्ष’, और ‘हमारे परमेश्वर का प्रतिशोध दिवस’ घोषित करूं, और जो शोक करते हैं, उन्हें शान्ति प्रदान करूं।
3 प्रभु ने मुझे इसलिए भेजा है कि मैं सियोन में शोक करनेवालों को राख नहीं, वरन् विजय-माला पहनाऊं; विलाप नहीं, बल्कि उनके मुख पर आनन्द का तेल मलूं, उन्हें निराशा की आत्मा नहीं, वरन् स्तुति की चादर ओढ़ाऊं, ताकि वे धार्मिकता के बांज वृक्ष कहलाएँ; वे प्रभु के पौधे कहलाएँ और उनसे प्रभु की महिमा हो।
4 सियोन के निवासी प्राचीन खण्डहरों का पुन: निर्माण करेंगे; वे पुराने ध्वन्स-अवशेषों पर मकान बनाएँगे। वे अनेक पीढ़ियों से ध्वस्त स्थानों को, उजाड़ पड़े नगरों को, आबाद करेंगे।
5 विदेशी सेवक तुम्हारी सेवा करेंगे; वे तुम्हारी भेड़-बकरियाँ चराएंगे; तुम्हारे मध्य प्रवास करनेवाले परदेशी तुम्हारे अंगूर-उद्यान में मजदूरी करेंगे।
6 किन्तु तुम ‘प्रभु के पुरोहित’ कहलाओगे; अन्य जातियों के लोग तुम्हें ‘हमारे परमेश्वर के सेवक’ कहेंगे। तुम राष्ट्रों की धन-सम्पत्ति भोगोगे, उनके वैभव से तुम्हारा ऐश्वर्य बढ़ेगा।
7 पतन के अपमान के बदले, अब तुम्हें दुगुना यश प्राप्त होगा, अनादर के स्थान पर अब तुम वैभव प्राप्त कर आनन्दित होगे। अपने देश में तुम दुगुने भाग पर अधिकार करोगे। तुम्हें शाश्वत आनन्द प्राप्त होगा।
8 प्रभु कहता है: ‘मैं न्याय से प्रेम करता हूं, मुझे अन्याय और लूटमार से घृणा है। मैं अपने निज लोगों को सच्चाई से उनका प्रतिफल दूंगा। मैं उनके साथ स्थायी विधान स्थापित करूंगा।
9 उनके वंशज राष्ट्रों में विख्यात होंगे; और उनके वंशजों की सन्तान कौमों में प्रसिद्ध होगी। उनको देखनेवाले यह स्वीकार करेंगे कि निस्सन्देह ये वे लोग हैं, जिनको प्रभु ने आशिष दी है।’
10 मैं प्रभु में अति आनन्दित हूं, मेरा प्राण परमेश्वर में उल्लसित है। जैसे दूल्हा पुष्पहार से स्वयं को सजाता है, जैसे दुल्हिन आभूषणों से अपना श्रृंगार करती है, वैसे ही प्रभु ने उद्धार के वस्त्र मुझे पहिनाए, और धार्मिकता की चादर मुझे ओढ़ाई।
11 जैसे भूमि उपज को उगाती है, जैसे उद्यान में बोया गया बीज अंकुरित होता है, वैसे ही स्वामी-प्रभु समस्त राष्ट्रों के सम्मुख धार्मिकता और स्तुति अपने निज लोगों में अंकुरित करेगा।