Isaiah 33
1 अरे विनाशक, तेरा बुरा हो; स्वयं तेरा कभी विनाश नहीं हुआ! अरे विश्वासघाती, तेरे साथ कभी किसी ने विश्वासघात नहीं किया! जब तू विनाश कर चुकेगा तब तेरा भी विनाश होगा। जब तू विश्वासघात कर चुकेगा तब तेरे साथ भी विश्वासघात किया जाएगा।
2 हे प्रभु, हम पर कृपा कर, हम तेरी प्रतीक्षा करते हैं। रोज सबेरे तू हमारा सम्बल बन और संकट के दिन हमारा उद्धारकर्ता!
3 तेरी ललकार से कौमें भाग जाती हैं, तेरे उठते ही राष्ट्र तितर-बितर हो जाते हैं।
4 जैसे टिड्डियां वनस्पति को चट कर जाती हैं, वैसे ही लोग विनाशक के लूट के माल को हड़प जाएंगे। जैसे टिड्डे घास-फूस पर टूट पड़ते हैं, वैसे ही वे उसके माल पर टूट पड़ेंगे।
5 प्रभु महान है; क्योंकि वह उच्च स्थान पर विराजमान है। वह सियोन पर्वत को न्याय और धार्मिकता से परिपूर्ण करेगा।
6 ओ इस्राएल, तेरे युग में प्रभु स्थायित्व का आधार होगा; वह तुझे पूर्ण उद्धार, अपार बुद्धि और असीमित ज्ञान प्रदान करेगा। प्रभु का भय ही तेरा एकमात्र धन है!
7 देखो, नगर के बाहर महायोद्धा सहायता के लिए पुकार रहे हैं; शान्ति-स्थापना के लिए भेजे गए दूत फूट-फूट कर रो रहे हैं।
8 राजमार्ग उजाड़ पड़े हैं, यात्रियों का आना-जाना बन्द है। संधियां भंग हो गईं, सािक्षयां तुच्छ समझी जा रही हैं; अब मनुष्य, मनुष्य का सम्मान नहीं करता।
9 देश विलाप कर रहा है, वह दु:ख से व्याकुल है। अनावृष्टि के कारण लबानोन की हरियाली कुम्हला गई, वह सूख गया। शारोन की उपजाऊ भूमि मरुस्थल बन गई। बाशान और कर्मेल क्षेत्र के वृक्ष सूख गए।
10 प्रभु राष्ट्रों से यह कहता है, “अब मैं उठूंगा, अब मैं हस्तक्षेप करने के लिए उठूंगा; मैं अपनी महानता प्रकट करूंगा।
11 तुम्हें सूखी घास का गर्भ है, अत: तुम भूसी को ही जन्म दोगे। तुम्हारी सांस आग है, वह स्वयं तुमको भस्म करेगी।
12 कौमें जले हुए चूने के सदृश राख का ढेर बन जाएंगी, जैसे कांटों को काटकर आग में झोंक देते हैं, वैसे ही राष्ट्र आग में झोंक दिए जाएंगे।”
13 दूर देशों में रहनेवाले इस्राएलियो, सुनो, मैंने क्या किया है। समीप के देशों में रहनेवाले इस्राएलियो, मेरे सामर्थ्य को स्वीकार करो।
14 सियोन में रहनेवाले पापी भयभीत हैं; डर ने अधार्मिकों को दबोच लिया है। वे यह कहते हैं, “हम में से कौन व्यक्ति भस्म करनेवाली अग्नि में रह सकता है? हम में कौन व्यक्ति शाश्वत अग्नि में वास कर सकता है?”
15 वह व्यक्ति जिसका आचरण धर्ममय है, जो हृदय से सीधी-सच्ची बातें बोलता है, जो शोषण से घृणा करता है, जो घूस से अपना हाथ सिकोड़ लेता है, जो हिंसा की बातें सुनने से, अपने कान बन्द कर लेता है, जो बुराई को देखने से अपनी आंखें बन्द कर लेता है।
16 ये कार्य करनेवाला व्यक्ति उच्चस्थान पर निवास करेगा, उसके रक्षा-स्थान चट्टानी किले होंगे; उसे भोजन सदा मिलता रहेगा, उसे जल का अभाव कभी न होगा।
17 तेरी आंखें राजा को उसके वैभव में देखेंगी; तू अपने देश को देखेगा, जिसकी सीमाएं दूर-दूर तक फैली हुई होंगी।
18 तेरा हृदय आतंक के दिनों को याद करेगा: “अब वह कर-मापक कहाँ गया? लेखपाल कहाँ है? जो बुर्जों को गिनता था, वह कहां गया?”
19 अब तू अपने देश में अहंकारी जनों को नहीं देखेगा; उन्हें भी नहीं पाएगा, जो अस्पष्ट बोली बोलते हैं, जिसको तू समझ नहीं पाता, जो हकलाकर बातें करते हैं, जिनको तू समझ नहीं पाता।
20 अपने पर्वों के नगर सियोन पर दृष्टि कर; तेरी आंखें यरूशलेम नगर को देखेंगी: यरूशलेम नगर जो शान्त नगर है, जो अटल शिविर है, उसके खूंटे अब नहीं उखाड़े जाएंगे, और न उसकी रस्सियाँ तोड़ी जाएंगी।
21 हम प्रभु को उसकी प्रभुता में वहाँ देखेंगे! वहां महानदियां और नहरें बहती हैं। वहां पतवारों वाली नावें नहीं जा सकतीं, और न बड़ा जलयान वहाँ से निकल सकता है।
22 प्रभु ही हमारा न्याय करनेवाला है, वही हमारा प्रशासक है। प्रभु ही हमारा राजा है, वही हमें बचाएगा।
23 तेरी रस्सियां ढीली हैं। वे मस्तूल को उसके स्थान पर दृढ़ नहीं रख सकती हैं; वे पाल को भी नहीं तान सकती हैं। उस समय प्रचुर शिकार और अपार लूट बांटी जाएंगी; लंगड़ा व्यक्ति भी शिकार में अधिकाधिक हिस्सा पाएगा।
24 तब कोई भी निवासी यह न कह सकेगा, “मैं बीमार हूं,” क्योंकि वहां रहनेवाले लोगों के अधर्म क्षमा कर दिए जाएंगे।