Isaiah 27
1 उस दिन प्रभु अपनी मजबूत, कठोर और विशाल तलवार से वेगवान, वक्र सर्पासुर लिव्यातान को दण्ड देगा, वह समुद्र में रहने वाले जल-पशु का वध करेगा।
2 उस दिन तुम सुन्दर अंगूर-उद्यान के विषय में यह गीत गाना:
3 “मैं-प्रभु इस उद्यान का रखवाला हूं; मैं बार-बार इसे पानी से सींचता हूं, ऐसा न होकि इसके पत्ते मुरझाएँ: मैं दिन-रात इसकी रक्षा करता हूं।
4 मुझ में अब कोप नहीं रहा। यदि मैं कंटीले झाड़-झंखाड़ पाऊंगा, तो मैं उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ दूंगा, मैं उन-सब को भस्म कर दूंगा।
5 अथवा यदि वे मेरी छत्र-छाया में शरण लेना चाहें तो वे मेरे साथ शान्ति स्थापित करें। वे मुझसे मेल-मिलाप करें।”
6 आगामी दिनों में याकूब राष्ट्र जड़ पकड़ेगा, इस्राएल देश पुष्पित होगा, उसमें शाखाएँ फूटेंगी, वह अपने फलों से समस्त संसार को भर देगा।
7 क्या प्रभु ने इस्राएलियों को उतना दण्ड दिया है, जितना उसने उन राष्ट्रों को दिया था, जिन्होंने इस्राएलियों को मारा था? क्या प्रभु ने इस्राएलियों का उतना ही वध किया है, जितना उनके वधिकों का किया था?
8 नहीं, प्रभु ने उन्हें थोड़ा-थोड़ा ताड़ित किया; उन्हें अपने देश से निर्वासित कर दंडित किया। जिस समय पूर्वी पवन बह रहा था, उसने उन्हें अपनी प्रचण्ड वायु से खदेड़ दिया।
9 अत: याकूब के अधर्म का प्रायश्चित यों किया जाएगा, उसके पाप के विमोचन का यह परिणाम होगा: वह चूना बनाने के पत्थरों की तरह वेदियों के सब पत्थरों को चूर-चूर करेगा; अशेराह देवी की मूर्तियाँ और सूर्य देवता के स्तम्भ खड़े नहीं रहेंगे।
10 किलाबन्द नगर सुनसान है, आबाद नगर उजड़ गया, निर्जन प्रदेश की तरह लोगों ने उसको छोड़ दिया। अब वहाँ पशुओं का रेवड़ चरता है; वह वहाँ बैठता है, और पौधों की डालियाँ तोड़ता है।
11 वृक्ष की डालियाँ सूख गईं; वे टूट गईं स्त्रियाँ आती हैं, और उनसे आग जलाती हैं। यह एक विवेकहीन कौम है; अत: उसका सृजक उस पर दया नहीं करेगा; उनको रचनेवाला उन पर कृपा नहीं करेगा।
12 उस दिन प्रभु फरात नदी से मिस्र की बरसाती नदी तक अन्न को फटकेगा; तब तुम, ओ इस्राएलियो, अनाज के दाने के समान एक-एक व्यक्ति इकठ्टे किए जाओगे।
13 उस दिन महा नरसिंगा फूंका जाएगा। तब जो इस्राएली असीरिया देश में खो गए थे, और जो मिस्र देश को खदेड़ दिए गए थे, वे सब आएंगे, और यरूशलेम नगर में, पवित्र पर्वत पर प्रभु की आराधना करेंगे।