Bible

Focus

On Your Ministry and Not Your Media

Try RisenMedia.io Today!

Click Here

Genesis 50

:
Hindi - CLBSI
1 यूसुफ अपने पिता के मुख पर गिर कर रोने लगा। उसने पिता का चुम्‍बन लिया।
2 यूसुफ ने अपने कर्मचारियों, वैद्यों को आदेश दिया कि वे उसके पिता के शव पर मसाले का लेप लगाएँ। वैद्यों ने शव पर मसाले का लेप लगाया।
3 इस संलेपन-कार्य में चालीस दिन लगे; क्‍योंकि शव पर मसाले का लेप लगाने के लिए इतने ही दिन लगते हैं। मिस्र के निवासियों ने याकूब के लिए सत्तर दिन तक शोक मनाया।
4 जब शोक के दिन समाप्‍त हुए तब यूसुफ ने फरओ के राजपरिवार से कहा, ‘यदि आप लोगों की कृपादृष्‍टि मुझ पर हो तो फरओ से यह बात कहिए:
5 “मेरे पिता ने मुझे इन शब्‍दों में शपथ खिलाई थी: देख मेरी मृत्‍यु निकट है। जो कबर मैंने कनान देश में अपने लिए खोदी है, वहीं तू मुझे गाड़ना।” अब कृपया मुझे जाने दीजिए कि मैं अपने पिता के शव को गाड़ दूं। तत्‍पश्‍चात् मैं लौट आऊंगा।’
6 फरओ ने उत्तर दिया, ‘जाओ, और तुम्‍हारे पिता ने जैसी शपथ तुम्‍हें खिलाई थी, उसी के अनुसार अपने पिता को गाड़ो।’
7 अत: यूसुफ अपने पिता को गाड़ने के लिए गया। उसके साथ फरओ के कर्मचारी, उसके राजपरिवार के मुखिया एवं मिस्र देश के समस्‍त गण्‍यमान्‍य व्यक्‍ति,
8 यूसुफ के परिवार के लोग, उसके भाई और उसके पिता के परिवार के लोग भी गए। किन्‍तु वे अपने बच्‍चों, भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को गोशेन प्रदेश में छोड़ गए।
9 यूसुफ के साथ रथ और घुड़सवार भी गए। इस प्रकार शव-यात्रा में विशाल जनसमूह हो गया।
10 जब वे यर्दन नदी के किनारे पर स्‍थित ‘आटद का खलियान’ नामक स्‍थान पर पहुँचे, तब उन्‍होंने अत्‍यन्‍त शोक मनाया। यूसुफ ने भी अपने पिता के लिए सात दिन तक शोक किया।
11 अब उस नगर के रहने वाले कनानी लोगों ने आटद के खलियान में लोगों को शोक मनाते देखा तब कहा, ‘यह मिस्र के निवासियों का अत्‍यन्‍त दु:खपूर्ण शोक है।’ इसी कारण उस स्‍थान का नाम आबेल मिस्रीम पड़ा। यह यर्दन नदी के उस पार है।
12 जैसा याकूब ने उन्‍हें आदेश दिया था, वैसा ही उनके पुत्रों ने किया।
13 उनके पुत्र उनके शव को कनान देश में लाए और उन्‍हें ममरे की पूर्व दिशा में मकपेला की भूमि में स्‍थित उस गुफा में गाड़ा, जिसे निजी कब्रिस्‍तान बनाने के लिए अब्राहम ने हित्ती जातीय एप्रोन से भूमि सहित खरीदा था।
14 यूसुफ अपने पिता को गाड़ने के पश्‍चात् अपने भाइयों एवं उन सब के साथ मिस्र देश को लौट गया, जो शव को गाड़ने के लिए उसके साथ आए थे।
15 जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि उनके पिता की मृत्‍यु हो चुकी है तब कहने लगे, ‘अब कदाचित् यूसुफ हमसे घृणा करेगा। हमसे उन सब बुराइयों का बदला लेगा, जो हमने उससे की थीं।’
16 अत: उन्‍होंने यूसुफ के पास एक दूत भेजा और कहा, ‘तुम्‍हारे पिता ने अपनी मृत्‍यु के पूर्व यह आदेश दिया था:
17 “यूसुफ से कहना कि वह कृपा कर अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा करे; क्‍योंकि उन्‍होंने उसके साथ बुराई की थी।” अब कृपाकर अपने पिता के परमेश्‍वर के सेवकों के अपराध क्षमा कीजिए।’ जब उन्‍होंने ये बातें यूसुफ से कहीं तब वह रो पड़ा।
18 उसके भाई भी आए। वे उसके सम्‍मुख भूमि पर गिरकर बोले, ‘हम आपके सेवक हैं।’
19 किन्‍तु यूसुफ ने कहा, ‘मत डरो! क्‍या मैं परमेश्‍वर के स्‍थान पर हूँ?
20 तुमने मेरे साथ बुराई की योजना बनायी, किन्‍तु परमेश्‍वर ने भलाई के लिए उसका उपयोग किया कि अनेक लोग जीवित बचें, जैसे वे आज भी जीवित हैं।
21 अत: तुम मत डरो। मैं तुम्‍हारा और तुम्‍हारे छोटे-छोटे बच्‍चों का पालन-पोषण करता रहूँगा।’ इस प्रकार यूसुफ ने उन्‍हें आश्‍वस्‍त किया और अपनी प्रेमपूर्ण बातों से उनको शान्‍ति दी।
22 यूसुफ और उसके पिता का परिवार मिस्र देश में निवास करता रहा। वह एक सौ दस वर्ष तक जीवित रहा।
23 यूसुफ ने एफ्रइम की संतान को तीसरी पीढ़ी तक देखा। मनश्‍शे के पुत्र मकीर के बच्‍चे भी यूसुफ के घुटनों पर उत्‍पन्न हुए थे।
24 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, ‘मेरी मृत्‍यु निकट है। किन्‍तु परमेश्‍वर तुम्‍हारी सुध लेगा, और तुम्‍हें इस देश से निकाल कर उस देश में ले जाएगा, जिसकी शपथ उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से खाई थी।’
25 तत्‍पश्‍चात् यूसुफ ने इस्राएली लोगों को शपथ खिलाई, ‘परमेश्‍वर तुम्‍हारी सुध लेगा, और तुम यहाँ से मेरी अस्‍थियाँ ले जाना।’
26 यूसुफ की मृत्‍यु एक सौ दस वर्ष की अवस्‍था में हुई। उन्‍होंने उसके शव पर मसाले का संलेपन किया, और उसे मिस्र देश में ही एक शव-मंजूषा में रख दिया।