Ezekiel 40
1 हमारे निष्कासन का पच्चीसवां वर्ष था। यरूशलेम नगर के पतन को चौदह वर्ष हो चुके थे। इसी वर्ष के आरम्भ में, पहले महीने की दसवीं तारीख को प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रबल हुई, और वह मुझे वहां लाया।
2 मैंने परमेश्वर के दर्शन देखे। परमेश्वर ने अपने दर्शन में मुझे इस्राएल देश में पहुंचाया, और वहां एक अत्यन्त ऊंचे पहाड़ पर खड़ा कर दिया। मैंने देखा कि मेरे सामने नगर के आकार-सा कुछ है।
3 जब परमेश्वर अपने दर्शन में मुझे वहां लाया तब मैंने एक आदमी को देखा। उसका रूप-रंग पीतल का था, और उसके हाथ में सन का फीता और नापने का बांस था। वह नगर के प्रवेश-द्वार पर खड़ा था।
4 उस आदमी ने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, जो कुछ तू सुनेगा, जो कुछ देखेगा, तू उसको ध्यान से देखना, और कान लगाकर सुनना। जो मैं तुझको दिखाऊंगा, उस पर मन लगाना। तुझे यहां इसीलिए लाया गया है कि मैं तुझको यह सब-कुछ दिखाऊं। जो कुछ तू यहां देखेगा, वह इस्राएल वंशियों को बताना।’
5 मैंने यह देखा: मन्दिर की सीमा के चारों ओर एक दीवार है। जो नापने का बांस उस आदमी के हाथ में है, वह छ: हाथ, अर्थात् लगभग तीन मीटर लम्बा है। अत: उसने दीवार की मोटाई और ऊंचाई नापी। मोटाई तीन मीटर और ऊंचाई तीन मीटर निकली।
6 वह मन्दिर के पूर्वी फाटक पर गया। वह उसकी सीढ़ी पर चढ़ा, और उसने ड्योढ़ी की लम्बाई नापी। फाटक की ड्योढ़ी की लम्बाई तीन मीटर निकली।
7 उसने बाजू की पहरेदारों की कोठरियां नापीं। प्रत्येक कोठरी तीन मीटर लम्बी और तीन मीटर चौड़ी थी। बाजू की कोठरियों के मध्य में अढ़ाई मीटर की दूरी थी। उसने फाटक की दूसरी ड्योढ़ी नापी। यह ड्योढ़ी फाटक के ओसारे के पास, भवन के भीतर की ओर थी। उसकी लम्बाई तीन मीटर थी।
8 उसने फाटक का ओसारा भी नापा। उसकी लम्बाई चार मीटर निकली।
9 ओसारे में दो खम्भे थे। प्रत्येक खम्भा एक मीटर मोटा था। वह ओसारा मन्दिर की ओर था।
10 पूर्वी फाटक के दोनों ओर पहरेदारों की तीन कोठरियां थीं। इन-सब की नाप एक-जैसी थी। इनके खम्भे भी एक ही नाप के थे, जो दोनों ओर थे।
11 इसके पश्चात् उसने फाटक के प्रवेश-द्वार की चौड़ाई को नापा। वह पांच मीटर थी। उसने सम्पूर्ण प्रवेश-द्वार की चौड़ाई नापी। वह साढ़े छ: मीटर निकली।
12 दोनों ओर की कोठरियों के सामने एक चबूतरा था। वह दोनों ओर से आधा-आधा मीटर ऊंचा था। कोठरियां दोनों ओर तीन-तीन मीटर लम्बी थीं।
13 इसके बाद उसने एक ओर की कोठरियों के पिछले भाग से दूसरे ओर की कोठरियों के पिछले भाग तक फाटक को नापा। इस प्रकार कोठरियों के दरवाजों से होकर फाटक की चौड़ाई साढ़े बारह मीटर निकली।
14 उसने ओसारे को भी नापा। उसकी चौड़ाई दस मीटर थी। फाटक के ओसारे के चारों ओर आंगन था।
15 फाटक के बाहरी द्वार के सामने से उसके भीतरी ओसारे के अन्त तक की लम्बाई पच्चीस मीटर थी।
16 फाटक में चारों ओर खिड़कियां थीं, जो भीतर की ओर बाजू के कोठरियों के खम्भों तक संकरी होती चली गई थीं। इसी प्रकार ओसारे में भी भीतर की ओर चारों तरफ खिड़कियां थीं। खम्भों पर खजूर के वृक्ष खुदे थे।
17 तत्पश्चात् वह मुझे बाहरी आंगन में ले गया। वहां मैंने यह देखा: आंगन के चारों ओर कमरे और एक फर्श है। फर्श पर तीस कमरे बने हुए हैं।
18 यह निचला फर्श था, और फाटकों से सटा था। फर्श की लम्बाई और फाटकों की लम्बाई समान थी।
19 तब उसने निचले फाटक के सामने से भीतरी आंगन के बाहरी भाग तक की दूरी नापी। दूरी पचास मीटर निकली। वह मेरे आगे-आगे उत्तर की ओर गया।
20 वहाँ एक फाटक था। उसका मुख उत्तर की ओर था। यह मन्दिर के बाहरी आंगन का फाटक था। उसने फाटक की लम्बाई और चौड़ाई नापी।
21 फाटक के दोनों ओर तीन-तीन कोठरियां थीं। इस फाटक की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप पहले फाटक के समान थी। फाटक की लम्बाई पच्चीस मीटर और चौड़ाई साढ़े बारह मीटर थी।
22 इसकी भी खिड़कियों, ओसारे, तथा खम्भों पर खुदे खजूर के वृक्षों की नाप पूर्वमुखी फाटक के समान थी। इस पर चढ़ने के लिए सात सीढ़ियां बनी थीं। फाटक का ओसारा भीतर की ओर था।
23 पूर्वमुखी फाटक की तरह ही उत्तरी फाटक के सामने एक फाटक था, जिस से भीतरी आंगन में प्रवेश करते थे। उसने दोनों फाटकों की दूरी नापी। वह पचास मीटर निकली।
24 वह मुझे दक्षिण की ओर ले गया। मैंने देखा कि वहां एक फाटक है। उसने दक्षिण के फाटक के खम्भों और ओसारे को नापा। उनकी नाप उतनी ही निकली जितनी दूसरे फाटकों के खम्भों और ओसारे की थी।
25 जैसी खिड़कियां दूसरे फाटकों में थीं, वैसे ही इस दक्षिणी फाटक और उसके ओसारे में भी चारों तरफ थीं। उसकी लम्बाई पच्चीस मीटर और चौड़ाई साढ़े बारह मीटर थी।
26 दक्षिणी फाटक पर जाने के लिए सात सीढ़ियां थी। उसका ओसारा भीतर की ओर था। फाटक के दोनों ओर, प्रत्येक खम्भे पर खजूर के वृक्ष खुदे थे।
27 मैं ने देखा कि मन्दिर के भीतरी आंगन के दक्षिण में एक फाटक है। उसने दोनों फाटकों की दूरी नापी। वह पचास मीटर निकली।
28 वह मुझे दक्षिणी फाटक से मन्दिर के भीतरी आंगन में ले गया, और उसने दक्षिणी फाटक को नापा। उसकी भी वही नाप निकली जो अन्य फाटकों की थी।
29 उसकी पहरेदारों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप अन्य फाटकों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप के बराबर थी। दक्षिणी फाटक पर चारों ओर खिड़कियां थीं। उसके ओसारे में भी खिड़कियां थीं। फाटक की लम्बाई पच्चीस मीटर और चौड़ाई साढ़े बारह मीटर थी।
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31 उसके ओसारे का मुंह मन्दिर के बाहरी आंगन के सामने था। उसके खम्भों पर भी खजूर के वृक्षों की आकृति खुदी थी। फाटक पर चढ़ने के लिए आठ सीढ़ियां थीं।
32 फिर वह मुझे भीतरी आंगन के पूर्वी भाग में ले गया, और उसने फाटक को नापा। उसकी भी वही नाप निकली जो अन्य फाटकों की थी।
33 उसकी पहरेदारों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप अन्य फाटकों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप के तुल्य थी। इस फाटक तथा उसके ओसारे के चारों ओर खिड़कियां थीं। उसकी लम्बाई पच्चीस मीटर और चौड़ाई साढ़े बारह मीटर थी।
34 उसके ओसारे का मुंह मन्दिर के बाहरी आंगन के सामने था। उसके दोनों खम्भों पर भी खजूर के वृक्षों की आकृति खुदी थी। फाटक पर चढ़ने के लिए आठ सीढ़ियां थीं।
35 फिर वह मुझे उत्तरी फाटक पर ले गया और उसने उसको नापा। उसकी भी वही नाप निकली जो अन्य फाटकों की थी।
36 उसकी पहरेदारों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप अन्य फाटकों की कोठरियों, खम्भों और ओसारे की नाप के बराबर थी। इस फाटक के चारों ओर खिड़कियां थीं। उसकी लम्बाई पच्चीस मीटर और चौड़ाई साढ़े बारह मीटर थी।
37 उसके ओसारे का मुंह मन्दिर के बाहरी आंगन के सामने था। उसके दोनों खम्भों पर भी खजूर के वृक्षों की आकृति खुदी थी। फाटक पर चढ़ने के लिए आठ सीढ़ियां थीं।
38 वहां एक कक्ष था। उसका दरवाजा फाटक के ओसारे से लगा हुआ था। इस कक्ष में अग्नि-बलि में चढ़ाए जाने वाले पशु को धोया जाता था।
39 फाटक के ओसारे में ही उसके दोनों ओर, दो-दो तख्ते थे। इन तख्तों पर अग्नि-बलि, पाप-बलि और दोष-बलि में चढ़ाए जानेवाले पशु वध किए जाते थे।
40 उत्तरी फाटक के प्रवेश-द्वार पर, ओसारे के बाहर उसके दोनों ओर, दो-दो तख्ते रखे थे।
41 इस प्रकार फाटक के ओसारे में चार तख्ते और उसके बाहर भी चार तख्ते थे। इन आठ तख्तों पर बलि-पशु वध किए जाते थे।
42 वहां अग्नि-बलि चढ़ाने के लिए तराशे हुए पत्थरों की चार चौकियां थीं। प्रत्येक चौकी पचहत्तर सेन्टीमीटर लम्बी, पचहत्तर सेन्टीमीटर चौड़ी, और पचास सेन्टीमीटर ऊंची थी। इन चौकियों पर विशेष औजार रखे जाते थे, जिनसे अग्नि-बलि तथा अन्य बलि के पशुओं का वध किया जाता था।
43 उनके किनारों पर, भीतर की ओर, चारों तरफ आंकड़ियां लगी थीं। ये आठ-आठ सेन्टीमीटर ऊंची थीं। चौकियों के ऊपर बलि-पशु का मांस रखा जाता था।
44 इसके पश्चात् वह मुझे बाहर से भीतरी आंगन में ले गया। वहाँ मैंने दो कमरे देखे। एक कमरा उत्तरी फाटक के दक्षिण में था, और दूसरा कमरा दक्षिणी फाटक के उत्तर में था।
45 उसने मुझसे कहा, ‘यह कमरा, जिसका द्वार दक्षिण दिशा में है, उन पुरोहितों के लिए है जो मन्दिर का दायित्व सम्भालते हैं।
46 दूसरा कमरा, जिसका द्वार उत्तर दिशा में खुलता है, उन पुरोहितों के लिए है, जो वेदी का दायित्व सम्भालते हैं। ये सादोक-वंशी पुरोहित हैं। ये लेवी कुल में से चुने गए पुरोहित हैं, और केवल ये पुरोहित ही प्रभु की सेवा करने के लिए उसके निकट आ सकते हैं।’
47 उसने आंगन को नापा। आंगन वर्गाकार था। वह पचास मीटर लम्बा और पचास मीटर चौड़ा था। वेदी मन्दिर के सामने थी।
48 फिर वह मुझे मन्दिर की ड्योढ़ी में ले गया। उसने ड्योढ़ी के दोनों ओर के खम्भों को नापा। प्रत्येक खम्भा अढ़ाई मीटर मोटा था। प्रवेश-द्वार की चौड़ाई सात मीटर थी। द्वार के दोनों ओर दीवारें थीं। प्रत्येक दीवार डेढ़ मीटर चौड़ी थी।
49 ड्योढ़ी की लम्बाई दस मीटर और चौड़ाई छ: मीटर थी। उस पर चढ़ने के लिए दस सीढ़ियां थीं। उसके खम्भों के पास, दोनों ओर स्तम्भ थे।