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Ezekiel 10

:
Hindi - CLBSI
1 मैंने आंखें ऊपर कीं और यह देखा: करूबों के सिर के ऊपर आकाशमण्‍डल है, और इस आकाशमण्‍डल में सिंहासन-सा कुछ है, जो नीलमणि के समान चमक रहा है।
2 फिर उसने लिपिक से कहा, जो सूती वस्‍त्र पहिने हुए था, ‘देख, करूबों के नीचे पहिए घूम रहे हैं। तू उनके बीच जा, और करूबों के मध्‍य से दोनों मुिट्ठयों में जलते हुए अंगारे उठा ला, और उनको यरूशलेम नगर के ऊपर बिखेर दे।’ वह मेरी आंखों के सामने भीतर गया।
3 जब वह गया तब मैंने देखा कि करूब प्रभु के भवन के दक्षिण में खड़े हैं, और एक बादल भीतरी आंगन में समा गया है।
4 उसी क्षण प्रभु का तेज करूबों के पास से भवन की ड्‍योढ़ी में चला गया, और सम्‍पूर्ण भवन बादल से ढक गया। आंगन प्रभु के तेज के प्रकाश से भर गया।
5 बाहरी आंगन तक करूबों के पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देने लगी। जैसी आवाज सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के बोलने पर होती है, वैसी ही करूबों के पंखों की फड़ाफड़ाहट थी।
6 उसने सूती वस्‍त्र पहिने हुए लिपिक को आदेश दिया, ‘करूबों के मध्‍य से, घूमते हुए पहियों के बीच से अंगारे उठा।’ लिपिक तुरन्‍त भीतर चला गया, और एक पहिए के पास खड़ा हो गया।
7 तब करूबों में से एक ने उस आग की ओर अपना हाथ बढ़ाया, जो करूबों के मध्‍य में थी। उसने कुछ अंगारे उठाए और सूती वस्‍त्र पहिने हुए लिपिक के हाथ पर रख दिए। लिपिक अंगारे लेकर बाहर चला गया।
8 करूबों के पंखों के नीचे मनुष्‍य के हाथ जैसा कुछ दिखाई दे रहा था।
9 तब मैंने देखा कि करूबों के समीप चार पहिये हैं: प्रत्‍येक करूब के समीप एक पहिया है। पहियों का रूप-रंग फीरोजा के समान चमकीला है।
10 सब पहियों की आकृति समान थी मानो एक पहिये के भीतर दुसरा पहिया हो।
11 जब वे चलते थे तब चारों दिशाओं में वे बिना मुड़े ही चल सकते थे। किन्‍तु सामने का पहिया जिस दिशा में चलता था, शेष पहिए उसके पीछे-पीछे जाते थे, और चलते समय वे मुड़ते नहीं थे।
12 मैंने देखा कि करूबों की सम्‍पूर्ण देह में पीठ, हाथ और पंखों में तथा उनके समीप के पहियों में भी सब ओर आंखें ही आंखें हैं। मैंने उनका नाम सुना: घूमनेवाले पहिए।
13
14 प्रत्‍येक प्राणी के चार मुंह थे: पहला मुंह करूब का, दूसरा मुंह मनुष्‍य का, तीसरा मुंह सिंह का और चौथा मुंह गरुड़ का था।
15 करूब भूमि से ऊपर उठ गए। ये वे ही जीवधारी थे जिनको मैंने कबार नदी के तट पर देखा था।
16 जब करूब जाते थे, तब उनके बाजू में, साथ-साथ ये पहिये भी जाते थे। जब करूब भूमि से ऊपर उड़ने के लिए पंख फैलाते थे, तब भी पहिये उनके पास से दूर नहीं होते थे।
17 जब वे खड़े होते थे तब पहिये भी खड़े हो जाते थे। जब वे ऊपर उठते थे तब ये भी उन के साथ ऊपर उठ जाते थे; क्‍योंकि इन जीवधारियों की आत्‍मा उनमें भी थी।
18 इसके पश्‍चात् मैंने यह देखा: प्रभु का तेज भवन की ड्‍योढ़ी में से बाहर निकला, और करूबों के ऊपर स्‍थित हो गया।
19 तब करूबों ने अपने पंख फैलाए, और मैंने देखा कि वे भूमि से ऊपर उठे और चले गए। जब वे गए तब उनके साथ-साथ पहिये भी गए। वे प्रभु-भवन के पूर्वी फाटक पर रुक गए। इस्राएल के परमेश्‍वर का तेज उन पर छाया हुआ था।
20 ये वे ही प्राणी थे जिनको मैंने कबार नदी के तट पर देखा था, और जिन पर इस्राएल का परमेश्‍वर आसीन था। मैं जानता हूँ कि वे करूब थे।
21 हर एक प्राणी के चार मुंह और चार पंख थे। उनके पंखों के नीचे मनुष्‍यों के से हाथ थे।
22 उनके मुखों की आकृति वैसी ही थी, जो मैंने कबार नदी के तट पर देखी थी। उनके मुख ही नहीं, वरन् देह भी वैसी ही थी। वे सीधे सामने की ओर चलते थे।