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Exodus 18

:
Hindi - CLBSI
1 मूसा के ससुर, मिद्यान देश के पुरोहित यित्रो ने उन सब कार्यों के विषय में सुना जो परमेश्‍वर ने मूसा और अपने निज लोग इस्राएल के लिए किये थे। यित्रो ने सुना कि प्रभु इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया है।
2 मूसा का ससुर यित्रो मूसा की पत्‍नी सिप्‍पोरा को (जिसे मूसा ने पहले ही उसके पिता के घर भेज दिया था)
3 और उसके दो पुत्रों को लेकर आया। उनमें से एक पुत्र का नाम ‘गेर्शोम’ (क्‍योंकि मूसा ने कहा था, ‘मैं विदेश में प्रवासी हूं।’)
4 और दूसरे का नाम ‘एलीएजर’ था (क्‍योंकि वह कहते थे, ‘मेरे पूर्वजों का परमेश्‍वर मेरा सहायक था। उसने मुझे फरओ की तलवार से छुड़ाया था।’)
5 जहाँ मूसा परमेश्‍वर के पर्वत पर पड़ाव डाले हुए थे, वहाँ निर्जन प्रदेश में उनका ससुर यित्रो अपने साथ मूसा की पत्‍नी और उनके पुत्रों को लेकर आया।
6 किसी ने मूसा से कहा, ‘देखिए, आपके ससुर यित्रो आपकी पत्‍नी और दोनों पुत्रों को लेकर आप के पास रहे हैं।’
7 मूसा अपने ससुर से भेंट करने को शिविर से बाहर निकले। उन्‍होंने झुककर अपने ससुर का अभिवादन किया, उसका चुम्‍बन लिया। वे एक-दूसरे का कुशल-मंगल पूछते हुए तम्‍बू के भीतर आए।
8 मूसा ने अपने ससुर को उन कार्यों का वृत्तान्‍त सुनाया जो प्रभु ने इस्राएली लोगों के हितार्थ फरओ और मिस्र-निवासियों के साथ किए थे। उन रुकावटों का जो उनके मार्ग में आईं थीं, और किस प्रकार प्रभु ने उन्‍हें छुड़ाया, आदि का भी वर्णन किया।
9 यित्रो ने हर्ष प्रकट किया कि प्रभु ने इस्राएल के साथ भलाई की और मिस्र-निवासियों के हाथ से उन्‍हें मुक्‍त किया।
10 यित्रो ने कहा, ‘प्रभु धन्‍य है, जिसने तुम्‍हें मिस्र-निवासियों के हाथ से, फरओ के हाथ से मुक्‍त किया।
11 अब मुझे ज्ञात हुआ कि प्रभु समस्‍त देवताओं से महान है, क्‍योंकि जब मिस्र-निवासियों ने इस्राएलियों के साथ तिरस्‍कारपूर्ण व्‍यवहार किया तब उसने उनको मिस्र-निवासियों की अधीनता से मुक्‍त किया।’
12 तत्‍पश्‍चात् मूसा के ससुर यित्रो ने परमेश्‍वर को अग्‍नि-बलि एवं पशु-बलि चढ़ाई। हारून तथा इस्राएल के सब धर्मवृद्ध मूसा के ससुर के साथ परमेश्‍वर के सम्‍मुख रोटी खाने आए।
13 दूसरे दिन सबेरे मूसा लोगों का न्‍याय करने को बैठे। लोग सबेरे से सन्‍ध्‍या तक उन्‍हें घेरकर खड़े रहे।
14 जब मूसा के ससुर ने उन्‍हें लोगों का न्‍याय करते देखा तब उनसे पूछा ‘लोगों के लिए तुम यह क्‍या कर रहे हो? क्‍या तुम अकेले बैठते हो? क्‍यों लोग सबेरे से सन्‍ध्‍या तक तुम्‍हारे आस-पास खड़े रहते हैं?’
15 मूसा ने अपने ससुर से कहा, ‘लोग मेरे पास परमेश्‍वर के निर्णय की जिज्ञासा से आते हैं।
16 जब उनमें झगड़ा आदि होता है तब वे मेरे पास आते हैं। मैं वादी और प्रतिवादी के मध्‍य न्‍याय करता हूं। मैं उन्‍हें परमेश्‍वर की संविधि और व्‍यवस्‍था बतलाता हूं।’
17 मूसा के ससुर ने उनसे कहा, ‘जिस प्रकार तुम काम कर रहे हो, वह अच्‍छा नहीं है।
18 तुम और तुम्‍हारे साथ के ये लोग थक जाएंगे; क्‍योंकि यह कार्य तुम्‍हारे लिए अत्‍यन्‍त भारी है। तुम अकेले इसे नहीं कर सकते हो।
19 अब तुम मेरी बात सुनो। मैं तुम्‍हें परामर्श देता हूं। परमेश्‍वर तुम्‍हारे साथ हो। तुम परमेश्‍वर के सम्‍मुख लोगों का प्रतिनिधित्‍व करना, और उनके मुकद्दमे परमेश्‍वर के पास लाना।
20 तुम उन पर परमेश्‍वर की संविधि और व्‍यवस्‍था प्रकाशित करना। तुम उन्‍हें मार्ग बतलाना, जिस पर उन्‍हें चलना चाहिए; वे कार्य सिखाना, जो उन्‍हें करने चाहिए।
21 अब तुम सब इस्राएली लोगों में योग्‍य, परमेश्‍वर के भक्‍त, सत्‍य-निष्‍ठ और घूस से घृणा करने वाले व्यक्‍ति चुनो। ऐसे व्यक्‍तियों को हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास एवं दस-दस के समूह पर शासक नियुक्‍त करो।
22 वे हर समय लोगों का न्‍याय करें। प्रत्‍येक बड़ा मुकद्दमा तुम्‍हारे पास लाया जाए, किन्‍तु सब छोटे मुकद्दमों का न्‍याय वे स्‍वयं करें। इस प्रकार वे तुम्‍हारे साथ दायित्‍व संभालेंगे, और तुम्‍हारा भार हल्‍का होगा।
23 यदि तुम ऐसा करोगे और यदि परमेश्‍वर ऐसी आज्ञा देगा, तो तुम समर्थ बने रह सकोगे और लोग भी अपने-अपने निवास-स्‍थान को शान्‍ति से जाएंगे।’
24 मूसा ने अपने ससुर की बात सुनी। जो यित्रो ने कहा था, उन्‍होंने वही किया।
25 मूसा ने सब इस्राएली लोगों में योग्‍य व्यक्‍तियों को चुना और उन्‍हें लोगों का मुखिया बनाया। उन्‍हें हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास और दस-दस के समूह पर शासक नियुक्‍त किया।
26 वे हर समय लोगों का न्‍याय करते थे। वे कठिन मुकद्दमा मूसा के पास लाते, किन्‍तु छोटे मुकद्दमे का न्‍याय स्‍वयं करते थे।
27 मूसा ने अपने ससुर को विदा किया। यित्रो अपने देश चला गया।