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Ephesians 4

:
Hindi - CLBSI
1 परमेश्‍वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें-यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कैदी हूँ।
2 आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्‍य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें
3 और शान्‍ति के सूत्र में बंध कर उस एकता को, जिसे पवित्र आत्‍मा प्रदान करता है, बनाये रखने का प्रयत्‍न करते रहें।
4 एक ही देह है, एक ही आत्‍मा और एक ही आशा है, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।
5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास और एक ही बपतिस्‍मा है;
6 एक ही परमेश्‍वर है, जो सब का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्‍याप्‍त है।
7 मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में से प्रत्‍येक को कृपा प्राप्‍त हुई है।
8 इसलिए धर्मग्रन्‍थ कहता है, “वह ऊंचाई पर चढ़ा और बन्‍दियों को बांध ले गया। उसने मनुष्‍यों को वरदान दिये।”
9 वह ‘चढ़ा’-इसका अर्थ यह है कि वह पहले पृथ्‍वी के निचले प्रदेशों में उतरा।
10 जो ‘उतरा’, वह वही है जो आकाश से भी ऊंचे चढ़ा, जिससे वह सब कुछ परिपूर्ण कर दे।
11 उन्‍होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को शुभ समाचार-प्रचारक और कुछ को धर्मपाल तथा शिक्षक होने का वरदान दिया।
12 इस प्रकार उन्‍होंने सेवा-कार्य के लिए सन्‍तों को योग्‍य बनाया, जिससे मसीह की देह का निर्माण उस समय तक होता रहे,
13 जब तक हम सब विश्‍वास तथा परमेश्‍वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार परिपक्‍वता की मात्रा में पूर्ण मनुष्‍यत्‍व प्राप्‍त कर लें।
14 इस प्रकार हम बालक नहीं बने रहेंगे और भ्रम में डालने के उद्देश्‍य से निर्मित धूर्त्त मनुष्‍यों के प्रत्‍येक सिद्धान्‍त के झोंके से विचलित हो कर बहकाये नहीं जायेंगे।
15 हम प्रेमपूर्वक सत्‍य का अनुसरण करें, और मसीह में सब प्रकार की उन्नति करते जाएं। मसीह ही कलीसिया का शीर्ष हैं
16 और उनसे समस्‍त देह को बल मिलता है। तब देह अपनी सब सन्‍धियों द्वारा सुसंघटित हो कर प्रत्‍येक अंग की समुचित सक्रियता से अपनी परिपूर्णता तक पहुंचती और प्रेम द्वारा अपना निर्माण करती है।
17 मैं आप लोगों से यह कहता हूँ और प्रभु के नाम पर यह अनुरोध करता हूँ कि आप अब से विधर्मियों-जैसा आचरण नहीं करें, जो निस्‍सार बातों की चिन्‍ता करते हैं।
18 उनकी बुद्धि पर अन्‍धकार छाया हुआ है। वे अपने अज्ञान और हृदय की कठोरता के कारण ईश्‍वरीय जीवन से विमुख हो गये हैं।
19 वे नैतिक बोध से शून्‍य हो कर लम्‍पटता के वशीभूत हो गये हैं और उन में हर प्रकार के अशुद्ध कर्म की लालसा निवास करती है।
20 आप लोगों को मसीह से ऐसी शिक्षा नहीं मिली।
21 यदि आप लोगों ने उनके विषय में सुना और उस सत्‍य के अनुसार शिक्षा ग्रहण की है जो येशु में प्रकट हुआ,
22 तो आप लोगों को अपना पहला आचरण और पुराना स्‍वभाव त्‍याग देना चाहिए, क्‍योंकि वह बहकाने वाली दुर्वासनाओं के कारण बिगड़ता जा रहा है।
23 आप लोग पूर्ण रूप से नवीन आध्‍यात्‍मिक विचारधारा अपनायें
24 और एक नवीन स्‍वभाव धारण करें, जिसकी सृष्‍टि परमेश्‍वर के अनुसार हुई है और जो धार्मिकता तथा सच्‍ची पवित्रता में व्‍यक्‍त होता है।
25 इसलिए आप लोग झूठ बोलना छोड़ दें और अपने-अपने पड़ोसी से सत्‍य बोलें, क्‍योंकि हम एक दूसरे के अंग हैं।
26 यदि आप क्रुद्ध हो जायें, तो इस कारण पाप करें-सूरज के डूबने तक अपना क्रोध कायम नहीं रहने दें।
27 शैतान को अवसर नहीं देना चाहिए।
28 जो चोरी किया करता था, वह अब से चोरी नहीं करे, बल्‍कि किसी अच्‍छे व्‍यवसाय में अपने हाथों से परिश्रम करे। इस प्रकार वह दरिद्रों की भी कुछ सहायता कर सकेगा।
29 आपके मुख से कोई अश्‍लील बात नहीं, बल्‍कि ऐसे शब्‍द निकलें, जो अवसर के अनुरूप हों, और दूसरों के निर्माण तथा कल्‍याण में सहायक हों।
30 परमेश्‍वर ने विमोचन-दिवस के लिए आप लोगों पर पवित्र आत्‍मा की मुहर लगायी है। आप परमेश्‍वर के उस पवित्र आत्‍मा को दु:ख नहीं दें।
31 आप लोग सब प्रकार की कटुता, उत्तेजना, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, परनिन्‍दा और हर तरह की बुराई अपने बीच में से दूर करें।
32 एक दूसरे के प्रति दयालु तथा सहृदय बनें। जिस तरह परमेश्‍वर ने मसीह में आप लोगों को क्षमा कर दिया, उसी तरह आप भी एक दूसरे को क्षमा करें।