Acts 6
1 उन दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो यूनानी-भाषी शिष्यों ने इब्रानी-भाषी शिष्यों के विरुद्ध यह शिकायत की कि दैनिक दान-वितरण में उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही है।
2 इसलिए बारह प्रेरितों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, “यह उचित नहीं है कि हम खिलाने-पिलाने की सेवा के लिए परमेश्वर का वचन सुनाना छोड़ दें।
3 अत: भाई-बहिनो, आप लोग अपने बीच से सात सच्चरित्र पुरुषों को चुन लीजिए, जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे,
4 और हम लोग प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”
5 यह बात समस्त सभा को अच्छी लगी। उन्होंने स्तीफनुस नामक व्यक्ति को, जो विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, तथा फ़िलिप, प्रोखुरुस, निकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया-निवासी नवयहूदी निकोलास को चुना
6 और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया। प्रेरितों ने प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे।
7 परमेश्वर का वचन फैलता गया। यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई; और बहुत-से पुरोहितों ने इस विश्वास को स्वीकार कर लिया।
8 स्तीफनुस अनुग्रह तथा सामर्थ्य से परिपूर्ण हो कर जनता के सामने आश्चर्य-कर्म तथा बड़े-बड़े चिह्न दिखाता था।
9 ‘दास्यमुक्त लोगों का सभागृह’ कहलाने वाले सभागृह के कुछ सदस्य और कुरेने तथा सिकन्दरिया नगरों और किलिकिया तथा आसिया प्रदेशों के कुछ लोग स्तीफनुस का विरोध करने लगे। वे उससे वाद-विवाद करने आये।
10 किन्तु वे स्तीफनुस की बुद्धि तथा आत्मा का सामना न कर सके, क्योंकि वह आत्मा से प्रेरित हो कर बोलता था।
11 तब उन्होंने घूस दे कर कुछ व्यक्तियों को यह कहने के लिए फुसलाया, “हमने स्तीफनुस को मूसा तथा परमेश्वर की निन्दा करते सुना है।”
12 इस प्रकार जनता, धर्मवृद्धों तथा शास्त्रियों को भड़काने के बाद वे अचानक स्तीफनुस के पास आ धमके और उसे पकड़ कर धर्म-महासभा के सामने ले गये।
13 वहां उन्होंने झूठे गवाहों को खड़ा किया, जो बोले, “यह व्यक्ति सदा इस पवित्र मन्दिर तथा मूसा की व्यवस्था की निन्दा करता है।
14 हमने इसे यह कहते सुना है कि येशु नासरी यह स्थान नष्ट कर देगा और मूसा के द्वारा दी गई प्रथाओं को बदल देगा।”
15 धर्म-महासभा के सब सदस्य स्थिर दृष्टि से स्तीफनुस की ओर देख रहे थे। उसका मुखण्डल उन्हें स्वर्गदूत के जैसा दीख पड़ा।