2 Samuel 7
1 राजा दाऊद अपने महल में रहने लगा। प्रभु ने उसके चारों ओर के शत्रुओं से उसे शान्ति प्रदान की।
2 एक दिन राजा दाऊद ने नबी नातान से यह कहा, ‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, परन्तु परमेश्वर की मंजूषा तम्बू के भीतर पड़ी है।’
3 नातान ने राजा से कहा, ‘जाइए; जो कुछ आपके हृदय में है, उसको आप कर डालिए; क्योंकि प्रभु आपके साथ है।’
4 उसी रात को प्रभु का यह सन्देश नातान को सुनाई दिया:
5 ‘जा, और मेरे सेवक दाऊद से यह कह, “प्रभु यों कहता है: क्या तू मेरे निवास के लिए भवन बनाएगा?
6 जिस दिन मैंने इस्राएली समाज को मिस्र देश से बाहर निकाला, उस दिन से आज तक मैं भवन में नहीं रहा। मैं तम्बू और शिविरों में यात्रा करता रहा।
7 जहाँ-जहाँ मैंने इस्राएली समाज के साथ यात्रा की, क्या मैंने इस्राएलियों के शासकों से, जिन्हें मैंने ही अपने निज लोग, इस्राएलियों की देख-भाल के लिए नियुक्त किया था, कभी यह कहा था ‘तुमने मेरे लिए देवदार का भवन क्यों नहीं बनाया?’ ”
8 अत: अब तू मेरे सेवक दाऊद से यों कहना: “स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: मैंने तुझे चरागाह से निकाला। भेड़-बकरियों के पीछे जाने से रोका कि तुझे अपने निज लोग इस्राएलियों का अगुआ बनाऊं।
9 जहाँ-जहाँ तू गया, मैं तेरे साथ रहा। मैंने तेरे शत्रुओं को नष्ट किया। अब मैं तेरे नाम को पृथ्वी के महान् नामों के सदृश महान् करूँगा।
10 मैं अपने निज लोग इस्राएलियों के लिए एक स्थान निर्धारित करूँगा। मैं उन्हें वहाँ बसाऊंगा जिससे वे अपने स्थान में निवास करेंगे, और उन्हें फिर नहीं सताया जाएगा। दुर्जन उन्हें फिर दु:ख नहीं देंगे, जैसे वे पहले करते थे,
11 जब मैंने अपने निज लोग, इस्राएलियों के लिए शासक नियुक्त किए थे। मैं तेरे सब शत्रुओं से तुझे शान्ति प्रदान करूँगा। इसके अतिरिक्त मैं-प्रभु तुझ पर यह बात प्रकट करता हूँ: मैं-प्रभु तुझे ‘भवन’ बनाऊंगा।
12 जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपने मृत पूर्वजों के साथ सो जाएगा, तब मैं तेरे पश्चात् तेरे वंश को, तेरी देह के फल को उत्तराधिकारी नियुक्त करूँगा, और उसके राज्य को सुदृढ़ बनाऊंगा।
13 वह मेरे नाम के निवास के लिए भवन बनाएगा। मैं उसके राज्य-सिंहासन को सदा-सर्वदा के लिए सुदृढ़ कर दूँगा।
14 मैं उसका पिता होऊंगा, और वह मेरा पुत्र होगा। यदि वह अधर्म करेगा तो मैं मनुष्यों के समान उसे छड़ी से दण्ड दूँगा, आदमियों के सदृश उसे कोड़े से मारूँगा।
15 परन्तु जैसे मैंने तेरे पूर्ववर्ती राजा शाऊल के प्रति करुणा करना छोड़ दिया था, वैसे मैं उसके प्रति नहीं करूँगा।
16 तेरा वंश और तेरा राज्य मेरे सम्मुख सदा स्थिर रहेंगे। तेरा सिंहासन सर्वदा अटल रहेगा।” ’
17 नातान ने ये बातें तथा यह दर्शन दाऊद को बताया।
18 तब राजा दाऊद तम्बू के भीतर गया और प्रभु के सम्मुख बैठ गया। उसने यह प्रार्थना की, ‘हे प्रभु, हे स्वामी! मैं क्या हूँ और मेरे वंश का महत्व क्या है, कि तूने मुझे इतना ऊंचा उठाया?
19 फिर भी यह तेरी दृष्टि में कितनी छोटी बात है। हे प्रभु, हे स्वामी! तूने अपने सेवक के वंश को सुदूर भविष्य के लिए भी वचन दिया। काश यह मनुष्यों के लिए शिक्षा का कारण बने! हे प्रभु, हे स्वामी!
20 दाऊद तुझसे और क्या कह सकता है? तू अपने सेवक को जानता है। हे प्रभु, हे स्वामी!
21 अपने वचन के कारण, और अपने हृदय के अनुरूप, तूने अपने सेवक को यह बताया, और यह महाकार्य किया।
22 इसलिए हे प्रभु, हे स्वामी, तू महान् है! तेरे समान और कोई ईश्वर नहीं है। तेरे अतिरिक्त और कोई परमेश्वर नहीं है। यह हमने स्वयं अपने कानों से सुना है।
23 तेरे निज लोग, इस्राएली राष्ट्र के समान पृथ्वी पर और कौन राष्ट्र है? हे परमेश्वर, तू स्वयं उनको मुक्त करने के लिए गया था। तूने स्वयं एक नाम धारण किया था। तूने उनके हितार्थ महान् और आतंकपूर्ण कार्य किए थे। तूने अपने निज लोगों के सम्मुख से, जिन्हें तूने अपने लिए मिस्र देश से मुक्त किया था, अनेक राष्ट्रों और उनके देवताओं को भगाया था।
24 तूने अपने लोग इस्राएलियों को स्थापित किया कि वे युगानुयुग तेरे ही निज लोग बने रहें। हे प्रभु, तू उनका परमेश्वर बन गया।
25 अब हे प्रभु परमेश्वर, जो वचन तूने अपने सेवक और उसके वंश के विषय में कहा है, उसको सदा पूरा करता रह। अपने वचन के अनुसार कार्य कर।
26 अत: लोग तेरे नाम का गुनगान करेंगे। वे यह कहेंगे, “स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु ही इस्राएलियों का परमेश्वर है।” तब तेरे सेवक दाऊद का वंश तेरे सम्मुख बना रहेगा।
27 हे स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु, हे इस्राएल के परमेश्वर, तूने अपने सेवक दाऊद के कानों में यह बात प्रकट की है, “मैं तुझे स्वयं ‘भवन’ बनाऊंगा!” अत: तेरे सेवक को साहस प्राप्त हुआ, और उसने तुझ से यह प्रार्थना की।
28 प्रभु, हे स्वामी, तू ही परमेश्वर है। तेरे वचन सत्य हैं। तूने अपने सेवक के साथ यह भलाई करने की प्रतिज्ञा की है।
29 इसलिए अब तू प्रसन्न हो और अपने सेवक के परिवार को आशिष दे, जिससे वह तेरे सम्मुख सदा बना रहे। हे प्रभु, हे स्वामी, तूने यही वचन दिया है। तेरी आशिष से तेरे सेवक का वंश सदा, आशिषमय रहेगा।’