2 Samuel 22
1 जिस दिन प्रभु ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं के हाथ से और शाऊल के हाथ से मुक्त किया, उस दिन दाऊद ने प्रभु को सम्बोधित करते हुए यह गीत गाया:
2 ‘प्रभु मेरी चट्टान, मेरा शरण-स्थल और मेरा मुक्तिदाता है!
3 वह मेरा परमेश्वर, मेरी चट्टान है; मैं उसकी शरण में आता हूँ। वह मेरी ढाल, मेरा शक्तिशाली उद्धारकर्ता, मेरा गढ़, मेरा आश्रय-स्थल है। प्रभु, हिंसा से तू मुझे बचाता है।
4 मैं प्रभु को पुकारता हूँ, जो सर्वथा स्तुति के योग्य है। मैं अपने शत्रुओं से मुक्त हुआ हूँ।
5 ‘मृत्यु की तरंगों ने मुझे लपेट लिया; विनाश की प्रचंड धारा ने मुझ पर आक्रमण किया।
6 मृतक-लोक के पाश-बन्धन ने मुझे उलझाया; मृत्यु का फन्दा मेरे सम्मुख आया।
7 ‘मैंने संकट में प्रभु को पुकारा; मैंने अपने परमेश्वर की दुहाई दी। उसने अपने मन्दिर से मेरी वाणी सुनी; मेरी दुहाई उसके कानों में पहुँची।
8 ‘तब धरती में कम्पन हुआ, वह डोल उठी; आकाश के आधार-स्तम्भ कांप उठे, वे हिल गए; क्योंकि प्रभु अत्यन्त क्रुद्ध था।
9 उसके नथनों से धुआं निकलने लगा; और उसके मुँह से भस्म करने वाली अग्नि, उससे दहकते अंगारे निकल पड़े।
10 वह स्वर्ग को झुकाकर नीचे उतर आया। उसके चरणों-तले गहन अन्धकार था।
11 वह करूब पर सवार हो, उड़ गया; वह पवन के पंखों पर वेगपूर्वक उतरा।
12 उसने अन्धकार को अपने चारों ओर ओढ़ लिया; गगन के काले मेघ उसका वितान थे।
13 उसके सम्मुख के आलोक से दहकते अंगारे फूट पड़े!
14 प्रभु आकाश में गरजने लगा, सर्वोच्च परमेश्वर ने नाद किया।
15 उसने बाण छोड़े, और शत्रुओं को छिन्न- भिन्न कर दिया। विद्युत की चमक ने उनमें भगदड़ मचा दी।
16 तब प्रभु की डाँट से उसकी नासिका के श्वास के धमाके से सागर के स्रोत दिखाई दिए; पृथ्वी की नींव प्रकट हुई।
17 ‘उसने उच्च स्थान से अपना हाथ बढ़ाया, और मुझे थाम लिया; उसने मुझे गहरे जल से ऊपर खींच लिया।
18 उसने मेरे शक्तिवान शत्रु से मुझसे बैर करने वालों से मुझे मुक्त किया।
19 वे संकट-काल में मुझ पर चढ़ आए, पर प्रभु मेरा सहारा था।
20 प्रभु ने मुझे खुले स्थान में पहुँचाया; उसने मुझे मुक्त किया, क्योंकि वह मुझसे प्रसन्न था।
21 ‘प्रभु ने मेरी धार्मिकता के अनुसार मुझे फल दिया; मेरे हाथों की शुद्धता के अनुरूप मुझे पुरस्कृत किया।
22 मैं प्रभु के मार्गों पर चलता रहा, मैं दुष्टतावश अपने परमेश्वर से पृथक नहीं हुआ।
23 उसके समस्त न्याय-सिद्धान्त मेरे सम्मुख रहे, मैंने उसकी संविधियों से मुँह नहीं मोड़ा।
24 मैं उसके सम्मुख निर्दोष रहा, मैंने अपने को अपराधों से बचाए रखा।
25 अत: प्रभु ने मेरी धार्मिकता के अनुसार, अपनी दृष्टि में मेरे निष्कलंक आचरण के अनुरूप मुझे पुरस्कृत किया।
26 ‘भक्त जन के साथ तू भक्त है; और निर्दोष के साथ तू निर्दोष है।
27 सिद्ध के लिए तू सिद्ध है; पर कुटिल के लिए तू कुटिल है।
28 तू विनम्र लोगों का उद्धार करता है; किन्तु अहंकार से चढ़ी आँखों को नीचा।
29 प्रभु, तू ही मेरा दीपक है; हे मेरे प्रभु, तू मेरे अन्धकार को आलोकित करता है।
30 तेरे सहारे मैं सेना को कुचल सकता हूँ; मैं अपने परमेश्वर की सहायता से प्राचीर लांघ सकता हूँ।
31 इसी परमेश्वर का मार्ग सीधा है, प्रभु की प्रतिज्ञा कसौटी-सिद्ध है। वह अपने सब शरणागतों की ढाल है।
32 ‘प्रभु के अतिरिक्त और कौन परमेश्वर है? हमारे परमेश्वर के अतिरिक्त और कौन चट्टान है?
33 यही परमेश्वर मुझे शक्ति-सम्पन्न करता है; वह मेरे मार्ग को कन्टकहीन बनाता है।
34 वह मेरे पैरों को हरिनी के पैरों जैसी गति देता है; वह मेरे पर्वतीय गढ़ों में मुझे दृढ़ करता है।
35 वह युद्ध के लिए मेरे हाथों को प्रशििक्षत करता है; मैं अपनी बाहों से पीतल के धनुष को मोड़ सकता हूँ।
36 तूने अपने उद्धार की ढाल मुझे दी है। तेरे अनुग्रह ने मुझे महान बनाया है।
37 मेरे पग आगे बढ़ाने के लिए तूने मेरा मार्ग प्रशस्त किया था; अत: मेरे पैर नहीं फिसले थे।
38 मैंने अपने शत्रुओं का पीछा किया, और उन्हें दबा दिया। जब तक मैंने उन्हें नष्ट नहीं कर दिया, तब तक मैं नहीं लौटा।
39 मैंने उन्हें समाप्त कर दिया। मैंने उन्हें ऐसा मारा कि वे फिर उठ न सके। वे मेरे पैरों पर गिर पड़े।
40 तूने मुझे युद्ध के लिए शक्ति-सम्पन्न किया था; तूने आक्रमणकारियों को मेरे सम्मुख झुका दिया था।
41 तूने मेरे शत्रुओं को विवश किया कि वे पीठ दिखाकर भागें; मैंने उन्हें नष्ट कर दिया, जो मुझसे बैर करते थे।
42 उन्होंने दुहाई दी, पर उन्हें बचाने वाला कोई न था; उन्होंने प्रभु को पुकारा, पर प्रभु ने भी उन्हें उत्तर नहीं दिया।
43 मैंने उन्हें कूट-कूटकर भूमि की धूल जैसा बना दिया; मैंने उन्हें पथ की कीच के सदृश रौंद दिया।
44 ‘तूने मुझे जातियों के संघर्ष से छुड़ाया; तूने मुझे राष्ट्रों का अध्यक्ष बनाया; उन जातियों ने मेरी सेवा की, जिन्हें मैं जानता भी न था
45 जैसे ही उन्होंने मेरा नाम सुना, मेरे आदेशों का पालन किया। विदेशी झुककर अभिवादन करते हुए मेरे सम्मुख आए।
46 विदेशी हताश हो गए; वे अपने किलों से काँपते हुए निकले।
47 ‘प्रभु जीवित है; धन्य है मेरी चट्टान! मेरे उद्धार की चट्टान, मेरे परमेश्वर की स्तुति हो!
48 वह ऐसा परमेश्वर है, जिसने मेरे लिए प्रतिशोध लिया, जिसने कौमों को मेरे अधीन कर दिया।
49 प्रभु ने मेरे शत्रुओं से मुझे मुक्त किया, उसने मेरे बैरियों की अपेक्षा मुझे उन्नत किया। उसने हिंसक व्यक्तियों से मुझे छुड़ाया।
50 ‘इस कारण, प्रभु, मैं राष्ट्रों में तेरा गुणगान करूँगा, मैं तेरे नाम का स्तुतिगान करूँगा।
51 तू अपने राजा को महान विजय प्रदान करता है; तू अपने अभिषिक्त पर, दाऊद और उसके वंश पर युग-युगान्त करुणा करता है।’