Bible

Designed

For Churches, Made for Worship

Try RisenMedia.io Today!

Click Here

2 Corinthians 7

:
Hindi - CLBSI
1 प्रिय भाइयो और बहिनो! हमें इस प्रकार की प्रतिज्ञाएं मिली हैं। इसलिए हम शरीर और मन के हर प्रकार के दूषण से अपने को शुद्ध करें और परमेश्‍वर पर श्रद्धा-भक्‍ति रखते हुए पवित्रता की परिपूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्‍न करते रहें।
2 आप हमारे प्रति उदार बनें। हमने किसी के साथ अन्‍याय नहीं किया, किसी को आर्थिक हानि नहीं पहुँचायी और किसी से अनुचित लाभ नहीं उठाया।
3 मैं आप लोगों को दोष देने के लिए यह नहीं कह रहा हूँ। मैं तो आप से कह चुका हूँ कि आप हमारे हृदय में घर कर गये हैं-हम जीवन-मरण के साथी हैं।
4 मैं आप लोगों से खुल कर बातें करता हूँ। मैं आप लोगों पर बड़ा गर्व करता हूँ। इससे मुझे भरपूर सान्‍त्‍वना मिलती है और मेरे सब कष्‍टों में आनन्‍द उमड़ता रहता है।
5 जब हम मकिदुनिया पहुँचे, तो हमारे शरीर को कोई विश्राम नहीं मिल रहा था। हम हर तरह से कष्‍टों से घिर रहे थे। हमारे चारों ओर संघर्ष थे और हमारे अन्‍दर आशंकाएँ थीं।
6 किन्‍तु दीन-हीन लोगों को सान्‍त्‍वना देने वाले परमेश्‍वर ने हम को तीतुस के आगमन द्वारा सान्‍त्‍वना दी।
7 और उनके आगमन द्वारा ही नहीं, बल्‍कि उस सान्‍त्‍वना द्वारा भी, जो उन्‍हें आप लोगों की ओर से मिली थी। मुझ से मिलने की आपकी उत्‍सुकता, आपका पश्‍चात्ताप और मेरे प्रति आपकी चिन्‍ता—इसके विषय में उन्‍होंने हम को बताया और इससे मेरा आनन्‍द और भी बढ़ गया।
8 यद्यपि मैंने आप लोगों को उस पत्र द्वारा दु:ख दिया, फिर भी मुझे उस पर खेद नहीं है। मुझे यह देख कर खेद हुआ था कि उस पत्र ने आप को थोड़े समय के लिए दु:खी बना दिया था,
9 किन्‍तु अब मुझे प्रसन्नता है। मुझे इसलिए प्रसन्नता नहीं कि आप लोगों को दु:ख हुआ, बल्‍कि इसलिए कि उस दु:ख के कारण आपका हृदय-परिवर्तन हुआ। आप लोगों ने उस दु:ख को परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार स्‍वीकार किया और इस तरह आप को मेरी ओर से कोई हानि नहीं हुई;
10 क्‍योंकि जो दु:ख परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार स्‍वीकार किया जाता, उसका परिणाम होता है हृदय-परिवर्तन तथा उद्धार। इसमें पछताना नहीं पड़ता। परन्‍तु सांसारिक दु:ख का परिणाम है मृत्‍यु।
11 आप देखते हैं कि आपने जो दु:ख परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार स्‍वीकार किया, उससे आप में कितनी निष्‍ठा उत्‍पन्न हुई, अपनी सफाई देने की कितनी तत्‍परता, कितना रोष, कितनी आशंका, कितनी अभिलाषा, कितना उत्‍साह और न्‍याय चुकाने की कितनी इच्‍छा! इस प्रकार आपने इस मामले में हर तरह से निर्दोष होने का प्रमाण दिया है।
12 वास्‍तव में मैंने वह पत्र इसलिए नहीं लिखा था कि मुझे अन्‍याय करने वाले अथवा अन्‍याय सहने वाले व्यक्‍ति की अधिक चिन्‍ता थी, बल्‍कि इसलिए कि आप लोग परमेश्‍वर के सामने यह अच्‍छी तरह समझ लें कि हमारे प्रति आपकी कितनी निष्‍ठा है।
13 इस से हमें सान्‍त्‍वना मिली। इस सान्‍त्‍वना के अतिरिक्‍त हम तीतुस का आनन्‍द देखकर और भी आनन्‍दित हो उठे-आप सब ने उनका मन हरा कर दिया!
14 मैंने उनके सामने आप लोगों पर जो गर्व प्रकट किया था, उसके लिए मुझे लज्‍जित नहीं होना पड़ा। मैंने आप लोगों से जो भी कहा, वह सत्‍य पर आधारित था। इस प्रकार तीतुस के सामने मैंने आप पर गर्व प्रकट करते हुए जो कहा था, वह सच निकला।
15 जब उन्‍हें याद आता है कि आप सब ने उनकी बात मानी और डरते-कांपते हुए उनका स्‍वागत किया, तो आप के प्रति उनका प्रेम और भी बढ़ जाता है।
16 मैं पूर्ण रूप से आप लोगों पर भरोसा रखता हूँ, इससे मैं आनन्‍दित हूँ।